ईश महिमा
विस्तृत नील – गगन का आँगन , बता रहा तेरा विस्तार |
रवि – शशि तेरे बन आते है ,जगती के जीवन का हार ||
सुख –प्रद त्रिविध पवन चलता है ,शीतलता का ले मृदु भार | जिसकी अविरल गति लहरों को ,देता रहता शक्ति अपार ||। खिले मधुरतम मृदु पुष्पों में, दिखा रहा सौन्दर्य अपार |आकर्षित है निकर भ्रमर का जो करता रहता गुंजार ||