जागरण की नव प्रभाती
मिट रहा तम आज जग में , जागरण की नव प्रभाती |
क्षितिज तम को नष्ट कर अब ,
छा गयी विज्ञान – आँधी |
धर्म की सारी कहानी ,
हो चली विज्ञान – आँधी |
विश्व में उन्नति दीवाली , बृद्धि में है जगमगाती |
अरुण सम उत्थान किरणें ,
आ बिछायी यंत्र लाली |
यंत्र के अनुचर कहा के ,
ज्ञान के खाई मिटा ली |
रोंक सकता कौन अब जो , प्रलय की सरिता कहाती |
कर रहे बिस्तार स्थल ,
ध्वंस – तारक आज जग में |
छोड़ उल्का अंक नभ का ,
आ पड़ा है मूल पथ में |
आज इस विज्ञान घर में , मृत्यु है होली मनाती |