मंगलाचरण
जन्म लिए कष्ट देख , वासुदेव पित्र के |
द्वारिका के वासी बने , दुःख मेट जन के |
कंस को पछार भूमि , दुःख हरा पित्र का |
मान बढ़े , कीर्ति बढ़े , नन्द बाल श्याम का |
नहीं बनाओ गंगासागर , रामेश्वर , काशी ,। कैलाश |
चरण – पादुका मुझे बना लों , दृष्टि समझ रहूँ तव पास |
बनूँ नहीं मैं सुमन सुगंधित , चंढू देव सिर , इठलाऊँ |
बना मुझे लो ,चरण कमल का , भ्रमर बास निशिदिन। पाऊँ |
बंदन शत– शत अविनाशी अज , सर्व-रहित व्यापक तुम निरगुन |