सावन
आज हर्ष की नव बेला है , अपनी भू पर राज हमारा ।
आज मेदनी के कण-कण में , हमें दृष्टिगत हर्ष हो रहा ।
निज माता धरती अंचल में , अन्न बाल अब मोद ले रहा ।
दूर क्षितिज में हरियाली अब , मोद दे रही हर्ष छा रहा ।
नई लताएं नव शाखाएं , नए कुसुम तरुओ में झूले ।
सावन की छाई बहार में , जन - जन तन मन धन से फूले ।
रिम - झिम रिम -झिम बूंदे पड़ती , अब फुहार पड़ती सुखदाई ।
नव तरु की डाली - डाली अब , स्वर्ण राशि देगी दरसाई ।