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झरना

21 जुलाई 2022

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झरना

चल पड़ा जब एक निर्झर

 हिम शिखर घर अंक  वरसे ।

नवल क्षण था

 प्रात का वह ।

तोड़ता था

 फोड़ता था 

वज्र सी पत्थर शिलाएं ।

बह रहा था

अनवरत था

वेगमय थी धार जिसकी

फेन उज्जवल मुस्कुराता ।

साधना के कठिन पथ में 

चल रहा था 

सह रहा था 

सकल पथ  की यातनाएं ।

सामने थे जो अडिग  पत्थर

खा उन्हीं से

चोट भीषण 

रो रहा था

 घोर  गर्जन में प्रलय या के ।

मैं वहां

अब मूक सा

अवलोकता सा

सोंचता था कुछ खड़ा ।

पहुंचे कर नजदीक

फिर मेरे वचन यों –

" ऐ तपी ! तू ध्यान कर ले

मार्ग में तेरे बिछे हैं 

कंटको  के जाल पत्थर 

कुछ न कुछ विश्राम कर ले ।"

सुन स्रवन कहने लगा वह 

" मुझ दुखारी को नहीं विश्राम है ।"



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रचनाएँ
निषाद कवितावली
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नम्र निवेदन के दो शब्द  प्रिय पाठक गण ,                          वर्तमान युग के भौतिक वाद क्षेत्र में वैज्ञानिक विचारधारा से प्रभावित मानव जगत अछता अवशेष नहीं है | ऐसे समय में साहित्य रचना अथवा काव्य रचना लेखक या कवि के लिए कठिन साधनोपरांत भी सी प्रतीत हो रही है  |                            परंतु जब पतिक किसी निश्चित दिशा  की ओर अपना उद्देश्य लेकर पथ पर गमन करता है | तब समय के झंझावातों  को भी पार कर जाता है |  इसी प्रकार मेरा भी यह बाल प्रयास स्वरूप काव्य रचना है |                            अस्तु आप सभी पाठक बन्धुओ से मेरा नम्र निवेदन है  कि  नीरसत्य व काव्य नियमो का अभाव देखते हुए भी त्रुटियो पर ध्यान न  देना | मैं अत्यंत आभारी हूँ  |                             धन्यवाद !
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