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sadak ke kinare

17 नवम्बर 2024

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Nov 23, 2023

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Sadak ke kinara
तारीख 23 नम्बर 2023
देहरादून,

हे.....ये मैं हूं अर्जुन, एक लेखक, एक संगीत प्रेमी, या तुम मुझे सिर्फ अर्जुन
भी कह सकते हो.........

यह बात जून जुलाई की थी, मैं रोज की तरह आफिस के लिए निकला था समय पर , पर जैसे
की मेरी आदत है, चीजें भूलने की, और मैं अपना छाता घर भूल आया,

और आज का मौसम भी कुछ ज्यादा ही ठंडा था, बादल आसमान पर छाये हुए थे, और कभी भी
बरस सकते थे, मैंने रोज की तरह स्टेशन पर बस के लिए रूका था,

एक तेज आवाज के साथ बस आयी , और सभी स्टेशन पर खड़े लोग बस की तरफ बढ़े,और मैं भी।
चढ़ते हुए वही रोज की तरह कन्डेक्टर को फीकी सी स्माइल दी, हां उसने आज भी खिड़की
वाली सीट खाली छोड़ी थी मेरे लिए, मैं भी चुपचाप वहां बैठ गया ....बस चल पड़ी,
घुर्रररररररररररररररररररर.........

अहममम हां.. मैं एक काल सेंटर में जाब करता हूं, और हर महीने सैलरी बचाकर एक बाइक
लेने की सोच रहा हूं, पर फिलहाल बस में ही आफिस जाता हूं, बस में मुझे थोड़ा समय
मिल जाता है अपने संगीत के बारे में या फिर अपनी नोबल के बारे में सोचने का .....

खैर करीब आधे घंटे के बाद मैं आफिस के बाहर पहुंच गया था, मौसम जयू का त्यूं, मैं
आफिस के अन्दर गया, कुछ नयापन नहीं था, वही रोज की तरह गार्ड भैय्या का सलाम साहब
जी।

बगल वाली सीट पर बैठे मिश्रा का मुझे टान्ट मारना कि भई आज भी देर कर दी.... और
मेरा सब बातों को इग्नोर कर अपने काम पर लगना, मन मारकर, रोज अजीब अजीब तरह के
काल्स को अटैंड करना।
और फिर श्याम को कमरे पर लौटना ये जानते हुए वहां भी कुछ नयापन नहीं है,

लेकिन तब तक मुझे तुम नहीं मिली थी....................

मैं अपना काम खत्म कर , आफिस से बाहर निकला, मौसम ठंडा हो गया था, हल्की हल्की
बूंदें आसमान से गिरने लगी। आफिस के गेट के बाहर गार्ड मुझे देखकर मुस्कुराते हुए
बोला....

अरे अर्जुन बाबा आज छाता नहीं लाए क्या , बारिश तेज होने वाली है, भीग जाओगे।
मैं यह कहते हुए तेजी से बस स्टैंड की तरफ दौड़ा की काका स्टैंड से बस मिल जाएं
तो काम चल जायेगा।

सर को बचाने के लिए मैंने बैग उपर किया और दौड़ते हुए बस स्टैंड तक पहुंचा, बारिश
की बूंदें तिरछी पड़ रही थी कपड़े थोड़ा बहुत भीग ही गये थे, मैं रूमाल से मुंह और
सर को पोंछने लगा।


तब मुझे तुम दिखी थी, जो खुद को बारिश से बचाने की नाकाम कोशिशें कर रही थी, और
दौड़ते हुए मेरे बगल में खड़ी हो गयी थी।


काव्या-ओह हो ये मौसम भी ना कभी भी धोखा दे जाता है, जब रोज छाता लाती थी तो तब
आसमान साफ रहता था, और आज छाता लाना क्या भूली, मौसम ने अपनी औकात दिखा दी.........

तुम्हारी इन बातों से मुझे काफी हंसी आयी थी, और मैं हंसा भी था, जब तुमने मुझे
तिरछी नजरों से देखकर बोला भी था - मिस्टर क्यों हंस रहे हो, कोई जोक क्रैक किया
मैंने क्या।

मेरी तो बोलती ही बन्द हो गयी थी , यूं अचानक तुम्हारा तीखी छूरी वाला रूप देखकर।
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फिर जब तेज बारिश के कारण बस लेट हो गयी थी तो तुम्हारा निराशा वाला प्यारा सा
चेहरा, देखकर तो दिल पिघल गया था।

और हमारी वो बातचीत -..........

काव्या- वैसे मिस्टर तुम क्या रोज बस का इंतजार करते हो यहां

अर्जुन - हां मैं बस से ही आफिस और घर जाता हूं,

काव्या- तो फिर आज ये इतनी देर क्यों लग रही है ( अपनी घड़ी की ओर देखते हुए)

अर्जुन - मेबी बारिश के कारण, और मेरा नाम अर्जुन हैं।

काव्या- ओके काव्या हियर, वैसे सारी अगर मैंने तुम्हें गुस्से में कुछ ज्यादा
बोला हो,

अर्जुन - नो नो ‌इटस ओके....

काव्या- न्यू जाब है यार काफी प्रेशर है, सो कुछ भी मुंह से निकल जाता है, वैसे
तुम क्या करते हो।

अर्जुन थोड़ा हिचकिचाहट में बोला - फिलहाल एक काल सेंटर में जाब करता हूं। और तुम?

काव्या- आर्किटेक्ट हूं।
अर्जुन - ओह नाईस ,
काव्या-- काल सेंटर भी बुरा नहीं है यार।
अर्जुन - हममम जो ‌करे वही जाने,,, दिन भर अजीब अजीब लोगों के काल्स अटेंड करो,
और ‌गालिया भी सुनो

काव्या हंसने लगी और बोली - अच्छा वैसे आज तक की सबसे फनी कस्टमर कौन सा रहा
तुम्हारा, जिसकी काल्स तुम दोबारख अटेंड नही करना चाहतें।

अर्जुन - हममम था एक बार बार मुझे फोन करता और पूछता कि सर मेरी बकरी नहीं मिल
रही प्लीज़ आप ढूंढ दो।

मैंने समझाया भाई यहां ये काम नहीं होता, तो वो बोला - मुझे भी पता है पर बकरी
आपके आफिस के बाहर से ही लापता हो ‌गयी, सो अगर आपको सीसीटीवी में दिखे तो प्लीज़
बताना जरूर...

अर्जुन की बातें सुनकर काव्या जोर जोर से हंसने लगी - हाहाहाहाहा हाहाहाहाहा
हाहाहाह क्या फनी किस्सा है यार........... बकरी और काल सेंटर हाहाहाहाहाहाहाह


आस पास के सभी लोग उन दोनों को देखने लगे .... काव्या को रियलाइज हुआ कि सभी उसे
देख रहे हैं तो उसे खुद पर शर्म आने लगी, अर्जुन भी बस उसे ही देख रहा था।

थोड़ी देर की खामोशी के बाद काव्या बोली - वैसे क्या तुम स्टोरी टैलर हो, या कोई
राइटर।

अर्जुन - हां थोड़ा बहुत लिखता तो हूं पर तुम्हें कैसे पता...
काव्या - तुम्हारे किस्से को सुनाने के अंदाज से लग रहा था,

अच्छा कोई स्टोरी या नोबल लिखी तुमने..........

अर्जुन जो बस काव्या के आंखों में खोया था, वह उसकी बातों को नहीं सुनता, काव्या
दोबारा उसके सामने चुटकी बजाकर बोली, अरे कहां खो ‌गये मिस्टर

अर्जुन हड़बड़ाकर बोला हां हां लिखी है ना, लिखी है।
काव्या - अच्छा कौन सी , मुझे कहानियां काफी पसंद है, मुझे बताओं मैं पढ़ूंगी,
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अर्जुन - हां एक है " सड़क के किनारे" नाम से लेकिन मैंने इसे अभी कम्पलीट नहीं
किया, जैसे ही होगी मैं फर्स्ट कापी तुम्हें ही दूंगा।

काव्या - हममममम नाम से ही इंटरेस्टिंग लग रही है।
अर्जुन - हममम

अब एक दो मिनट तक दोनों के बीच खामोशी रही.... बारिश भी थमने लगी थी, और दूर से
उन्हें बस आने की आवाज सुनाई देने लगी।

अर्जुन काव्या से उसे दोबारा मिलने को कहना चाहता था, पर कह नहीं पाया, काव्या को
भी ये मुलाकात काफी पसंद आयी, वो इतनी परेशानियों और काम के टेंशन में भी अर्जुन
के साथ खुलकर हंसी थी इन लम्हों में।

पर दोनों एक दूसरे को कुछ नहीं बोले, बस करीब आयी, अर्जुन ने देखा, ये तो उसकी बस
नहीं है, काव्या बस में चढ़ी, और अर्जुन को बस में चढ़ने का इशारा करने लगी।

अर्जुन बोला - ये मेरी ‌बस नहीं है ,
काव्या के चेहरे पर एक अधूरी खुशी और पूरी उदासी छा गयी, बस धीमें धीमें आगे
बढ़ने लगी..... और ‌ अर्जुन बस को देखते रह गया...............


अर्जुन

वैसे मैंने तुमसे झूठ कहा था काव्या - सड़क के किनारे, कहानी मैंने लिखी नही थी ,
पर तुम्हारे मिलने के बाद मैं ये कहानी लिखना चाहता था , और ‌लिख भी चुका हूं आधी,
पूरा करने के लिए हमें दोबारा मिलना होगा........... और अब तुम्हें ढूंढ रहा हूं
उसकी पहली कापी देने के लिए,

क्या तुम अभी भी उस बस स्टैंड पर आती हो , मैं रोज तुम्हारा इंतज़ार करता हूं, और
तुम्हारी वाली बस में रोज एक किताब ( सड़क के किनारे) एक सीट पर रख देता हूं, क्या
पता तुमहे वो मिल जाए,......

अर्जुन...............
मिले तो तुम्हारा इंतज़ार रहेगा,




आज फिर अर्जुन आफिस से घर की ओर आया और बस स्टैंड की तरफ बढ़ा जहां उसने दोबारा
उसी बस में खिड़की से एक पतली सी किताब सीट पर रख दी, और बस आगे निकल गयी...... औल
‌अरजुन अपनी बस का इंतजार करने लगा।



पर ‌आज वो किताब किसी के हाथ आ गयी थी, और वह उसे पढ़ते हुए मुस्कराने
लगी........ शायद वो काव्या थी ।
वह बुक को पलट कर देखती है जहां उसे एक कान्टेक्ट नम्बर भी दिख जाता है, वह बिना
देर किए फोन उठाती है और उस नम्बर पर काल करती है।

ट्रिंग!ग!ग!ग!ग!ग!ग!ग!ग!ग!ग!ग!ग

अर्जुन -‌ हेलो अर्जुन हेयर ................
~ ✍︎ ASHISH


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सड़क के किनारे
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कभी कभी हमारी पहली मुलाकात भी हमारी आखिरी मुलाकात बन जाती है, खासकर उन लोगों के साथ जिनसे हम दोबारा मिलना चाहते हैं, काल सेंटर में जाब करने वाला अर्जुन अपनी भागदौड़ भरी जिंदगी में जब मिलता है एक अनजान लड़की काव्या से , और पहली ही मुलाकात में बिछड़ जाता है, क्या वो वापस मिलेगा और कर पाएगा इजहार सड़क के किनारे

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