मेरे सपनो का भारत दम तोड़ रहा है,
मेरा अपना ये भारत दम तोड़ रहा है,
अंतिम श्वांसे गिनता रहता मेरा ये प्यारा देश,
गुलामी के दिनों जैसा अनुभव होता जेसे पेश,
पूत सपूत जने थे मगर क्यों बने कपूत,
भारत माँ की गरिमा की रक्षा को,
क्या शूरवीरों को नहीं मिल रही दीक्षा,
अब देश क्यों मांग रहा है भिक्षा,
ग़रीबी,भुखमरी और बेरोजगारी,
क्यों तरक़्क़ी पर हो रही भारी,
क्या दीमक चाट गयी है सारी,
या सिर्फ सफेदी है मारी,
देश के हैं जो नौनिहाल,
क्यों हो रहे हैं बेहाल,
नेताजी खा गए क्या,
खुशहाली,समृद्धि देश की सारी,
नेता जो हो रहे मोटे,
जनतंत्र क्यों ये कचोटे,
बुद्धिमानों के भविष्य हुए हैं भोटे,
अयोग्यों के सामने हुए छोटे,
बदहाली पर अपनी निकल रही जो,
सिसकियाँ बदलती करुण क्रंदन में,
भूल राष्ट्र वंदन को,
नेता घिस रहे स्वार्थ के चन्दन को,
जागों देश के बाकी सपूतों,
बचाओ देश की लुटती हुई लाज,
वरना लूट ही लेंगे,
ये बेशर्म लाज आज,
देश की समृद्धि को बढ़ाना है,
स्वार्थी बेईमानों को भगाना है,
न पैदा होगा कोई राम,
और न ही आने वाला कोई घनश्याम,
गर हम ना जागे आज,
तो हमें मिलेगी देश की लूटी हुई लाज,
लाज को राक्षसों से बचाओ,
और देश के सच्चे सपूत कहलाओ।