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सरबजीत – डटा रहा
दो देश की नफरत की आग मैं तू पिस्ता रहा ,पर तू डटा रहा
सरहदों के उस पार तू झुजता रहा ,पर तू डटा रहा
तेरी हर पुकार अनसुनी रही
तेरी हर मुराद अधूरी रहीं
तेरा हर दर्द अनसुना रहा , पर तू डटा रहा
तेरी हर लहू मैं इंसाफ की तड़प पनपती रही
तेरी हर श्वास मैं विराकडी से मिलने की आस बनती रही
यह सब तू चुप चाप सेहता रहा ,पर तू डटा रहा
चट्टान जैसे सीने पर वतन की आबरू लिखता रहा
इंसाफ की लिए दर दर भटकता रहा , पर तू डटा रहा
मानवता के उस दर्द सहने के चरम सिमा पर तू बढ़ता गया
अश्रु को भी अपना जीवन साथी बनाता गया ,
तू हारा नहीं ,
तू झुका नहीं ,
तू टुटा नहीं ,
तू बस सेह्ता गया ,तू डटा रहा |
वतन के वीरपुत्र मैं तेरा नाम हमेश आएगा
क्यूंकि तेरी यह कहानी सबके लिए नया पैगाम लाएगी
हम सबको डट कर रहने का साहस आएगा
क्यूंकि तू डटा रहा |
dedicated to sarbajit singh by every indian
आपका मित्र ,
दीपेश मोटावत
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