कृष्ण जन्माष्टमी, जिसे कृष्णा जन्माष्टमी व गोकुलाष्टमी , श्रीकृष्ण जन्मोत्सव, श्रीकृष्ण जयंती के रूप में भी जाना जाता है, एक वार्षिक हिंदू त्योहार है जो विष्णुजी के दशावतारों में से आठवें और चौबीस अवतारों में से बाईसवें अवतार भगवान श्रीकृष्णजी के जन्म के आनन्दोत्सव के लिये मनाया जाता है। यह हिंदू चंद्रमण वर्षपद के अनुसार, कृष्ण पक्ष (अंधेरे पखवाड़े) के आठवें दिन (अष्टमी) को भाद्रपद में मनाया जाता है ।
शीर्षक--मेरे कान्हामेरेकान्हा ओ मेरे कान्हातेरा जन्म पापों का उद्धार किया हैजब जब धरती पर बढ़ी है बुराईतब तब तूने आकरउनका किया संहारओ मेरे कान्हा ओ मेरे कान्हापाप की मटकी भरी हैआकर अब तो आकरफोड़ दोजग
नहीं समय ये है कान्हा कि तुम अपना जन्मदिवस मनाओ नहीं समय ये है कि पालने में झूलो माखन मिसरी खाओ है समय की मांग सुनो हे गिरिधारी बिलख रही है वसुंधरा मातालुट रही लाज पुत्रियों क
देखो श्री कृष्ण जन्माष्टमी आई संग अपने खुशी की बहार लाई द्वापर,कान्हा का जन्म हुआ था सृष्टि में प्रेमी नवसंचार हुआ था यशोदा के लल्ला, ब्रज के राज गोपि
गोपाल का जन्म हुआ, मथुरा नगरी आई बहार,कंस के कारागार में, छाया आनंद का संसार।यशोदा के नंदलाला, वसुदेव-देवकी के लाल,तोड़ दीं सब बेड़ियाँ, खुल गए बंदीगृह के ताल।कृष्णा की लीला न्यारी, माखन-चोर बन खेले र
कब तक भटके श्याम मेरे इस कालचक्र के पथ पर काले बादल घुमड़ रहे हैं भावों के अध्यात्मिक रथ पर।छाया चारों ओर अंधेरा ही अंधेरा हमें अर्जुन सा पथ दरसा दो खाली पड़ी मन की भूमि,निर्म
कान्हा के रंग में रंगी राधा, नन्द के आँगन गूंजे बधाई, यशोदा के लाल ने जन्म लिया, धरती पर आई एक नई सवाई।मथुरा नगरी में जब जन्म हुआ, कंस के आतंक से मच गई धूम,
गीता के उपदेशों से जीवन को राह दिखाए, कर्म और भक्ति का मार्ग हमें सिखाए। श्रीकृष्ण का जन्म है अत्यंत महत्वपूर्ण, भारतीय संस्कृति का हिस्सा, यह हमारे दिलों का मंगल चरण। सौलह कला से सम्पूर्ण मनोहर म