सुन तिरंगे देश की हालत क्या, तुझसे कह रही है,
और सच्चाई गरीबी, में सिमट कर रह रही है
जो गरीबों के हकों को,है यहाँ हर रोज खाते
उन को देखो वो सफेदी,के बने बैठे लिफाफे
अब कोई दिखता नही जो,इन लिफाफो को भी खोले
करदे दुनियाँ से रूबरू,और उन्हें सरेआम तोले
क्या हुआ दुनियां यहां अब,धन और दौलत कह रही है
और सच्चाई गरीबी में सिमट कर रह रही है।।
सच यहाँ मजबूर इतना,खुद को साबित कर न पाए
दौलती तुम झूट देखो,सच बनेगा रुक न पाये
हर कलम अब है न जज की,ये बनी सियासी इसारे
अब सजा उनको न होगी होगी,जो सियासत के है प्यारे
सुन तिरंगे झूट अब कुछ,गालियां भी कह रही है
और सच्चाई गरीबी में सिमट कर रह रही है
धर्म देखो दास बन बैठा,अधर्मी के करों में
वासना पैसे को हें ये,भोगते अपने घरों में
ये गरीबी इज्ज़तों का,रोज हें खिलवाड़ करते
हाँ रहे ये तिरंगे,देश को बर्बाद करते
सुन तिरंगे कोट से पहले,गवाही मर रही है।
और सच्चाई गरीबी में सिमट कर रह रही है।।
भारत भूषण त्यागी
ग्राम & पोस्ट -बगचौली खार
९४१४९२९९३६