आज जिसे देखिए उसे ही शिकायत है। परिवार सेए पड़ोसी सेए समाज सेए देश से और ना जाने किस.किस से। कोई व्यक्ति अपने जीवन से संतुष्ट नहीं है। पर इन सब शिकायतों के बीच जो शिकायत करने जैसी है वो हम नहीं करते। वो है स्वयं से स्वयं की शिकायत। हम संपूर्ण संसार को सुधारने के लिए प्रयत्नशील रहते हैं लेकिन स्वयं सुधरने का प्रयास नहीं करते। बस परिस्थितियों पर दोषारोपण करते रहते हैं। परिस्थितियां पहले से खराब अवश्य हुई हैं लेकिन हमारी शिकायतें उसके अनुपात में ज्यादा ही बढ़ गई हैं। संसार में जितने दुख बढ़े हैं उससे ज्यादा सहनशक्ति कम हो गई है। अच्छा व्यवहार करना कोई नहीं चाहता पर अच्छा व्यवहार पाना हर कोई चाहता है। अगर हम सबके साथ वैसा ही व्यवहार करें जैसा हम अपने साथ चाहते हैं तो बहुत सारी समस्याएं स्वयमेव ही समाप्त हो जाएंगी। थोड़ा धैर्यए थोड़ा संतोष और थोड़ी सी सहनशक्ति इस संसार को बहुत बेहतर बना देगी। किसी ने सत्य ही कहा है ष्जिसे सहना आ गया उसे रहना आ गयाष्। मंगलमय दिवस की शुभकामनाओं सहित आपका मित्र रू. भरत मल्होत्रा।