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शापित आईना

Gunjan Naveenkumar

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जज साहब ! मैं झूठ नहीं बोल रही हूॅं ।  मैं सच कह रही हूॅं ।  मेरी पति उसी आईने में कैद है जिसे वह पगलिया औरत  शापित आईना कह कर संबोधित कर रही  थी । सबके साथ -  साथ  पुलिस इंस्पेक्टर भी  कहते हैं कि मैंने अपने पति का क़त्ल  किया है और उनकी  बॉडी को कहीं छुपा दिया है लेकिन मैं ऐसा क्यों करूंगी ?  मैंने ऐसा कुछ नहीं किया हैं जज साहब । मेरी बात का कोई यकीन नहीं कर रहा है । आप तो मेरी बात का यकीन कीजिए । हाथ जोड़कर  गिड़गिड़ाते  हुए सिद्धी ने जज साहब की तरफ आंसुओं से भरी अपनी आंखें करते हुए कहा था । लेकिन सारे सबूत तो तुम्हारी तरफ ही  इशारा कर रहे हैं कि तुम ही ने अपने पति का कत्ल किया है और अदालत किसी की दलील पर नहीं बल्कि सबूत पर विश्वास करती  है । व्यक्तिगत तौर पर मैं तुम्हारी दलील  से प्रभावित हूॅं । तुम मेरी बेटी की उम्र की हो और जहां तक मैंने सुना है जो  कोर्ट में भी  बताया गया है कि एक बार तुमने अपने पति की जान बचाने के लिए अपनी खुद की जान को ही दांव पर लगा दी थी । व्यक्तिगत तौर पर मुझसे पूछो तो मैं तुम्हें गुनहगार बिल्कुल भी नहीं मानता लेकिन सारे सबूत तुम्हारे खिलाफ है जो तुम्हें गुनहगार  साबित कर रहे हैं लेकिन कई बार ऐसा होता है कि किसी बेगुनाह को भी सबूत के अभाव में सजा मिल जाती है। मैं अपनी अदालत में ऐसा नहीं चाहता हूॅं । तुम मुझे शुरू से लेकर अभी तक की घटना विस्तार से बताओ हम सभी सुन रहे हैं लेकिन हां इतना जरूर  ध्यान रखना कि  कोई भी एंगल छूटना नहीं चाहिए और मैं उम्मीद करता हूॅं  कि तुम इस अदालत के  सामने गीता पर हाथ रखकर जो भी कहोगी सच कहोगी । झूठ बिल्कुल भी नहीं बोलोगी  ।  जज साहब ने कटघरे में खड़ी सिद्धि की तरफ स्नेह भरी नजरों से देखते हुए उससे कहा था । सिद्धि जो कटघरे में ही रोते हुए बैठ गई थी जज  साहब की बात सुनकर उठ खड़ी हुई और  अपने दुपट्टे से अपने गालों पर लुढ़क रहें  आंसुओं को पोंछा  और कहना शुरू किया :- मुझे शुरू से ही उत्तराखंड की हसीन वादियां अपनी तरफ लुभाती थी ।  यहां की हरियाली ...  पेड़ -  पौधे ... पहाड़ी .... नदियां यें सभी  मुझे ऐसा लगता था कि मुझे अपने पास बुला रही है । मैंने कई बार अपने पति से कहा भी था कि मुझे वहां पर घुमाने  के लिए लें चलें  लेकिन काम की व्यस्तता की वजह से वह मुझे यहां नहीं ला पाए थे लेकिन एक दिन उन्होंने हमारे लखनऊ वाले घर में मुझे जब यह खुशखबरी दी कि उनका ट्रांसफर उन्हीं हसीन  वादियों में हुआ है तो यह सुनते ही  मैं खुशी से फूली  नहीं समा रही थी । मेरे कदम जमीन पर पड़ ही नहीं रहे थे । अगले दस  दिनों के अंदर में हम उत्तराखंड  की हसीन वादियो में थे । यहां पर हमें एक  खूबसूरत बंगले में शिफ्ट कर दिया गया । वह बंगला इतना खूबसूरत था कि उसकी खूबसूरती मुझे अपनी तरफ खींचती थी । आस - पड़ोस में कोई घर तो नहीं था लेकिन हां थोड़ी दूर जाने पर एक घर था । मेरी आदत थी लोगों से मिलने - जुलने की  लेकिन यहां तो  मुझे कोई पड़ोसी भी मिल नहीं रहा था इस कारण मैं थोड़ी दुखी थी । जब तक नौकर घर में रहते हो मेरा समय तो कट जाता था लेकिन जब वह चले जाते थे तब मैं घर में अकेली रहती थी क्योंकि राजन तो अपने काम में ही बिजी रहते थे । इसी तरह दिन महीनों  में बीतने लगे । कभी-कभी मुझे आभास होता था कि कोई मुझे देख रहा है लेकिन इस बात पर मैंने कोई खास ध्यान नहीं दिया । जब हम आए थे हमारे पास बहुत कम सामान था लेकिन आने के बाद मैंने धीरे-धीरे अपनी जरूरत की सारी चीजें अपने हिसाब से यहां व्यवस्थित करवा ली थी । यह बंगला  बड़ा था और इसमें दो  बेडरूम थे । मेरे पति राजन को वह बेडरूम पसंद आया जिसमें हम अभी रह रहे हैं हालांकि  मुझे वह दूसरा वाला  बेडरूम ज्यादा आकर्षक लगता था जिसमें वह बड़ा सा आईना था । पहले दिन से ही वह आईना  मुझे अपनी तरफ खींचता था । कुछ देर  भी अगर मैं उस आईने को देख लेती थी मेरे कदम खुद - ब - खुद उसकी तरफ बढ़ने  लगते थे । एक दिन तो ऐसा हुआ कि मेरे पति राजन मुझे बुला रहे थे आवाज दे रहे थे लेकिन मुझे तो कुछ सुनाई नहीं दे रहा था मुझे ऐसा लग रहा था कि उस आईने के अंदर से कोई मुझे बुला रहा है कोई मेरा हमदर्द है जो बहुत तकलीफ में है जिसकी मदद मुझे करनी है। मुझे अपनी मदद के लिए बुला रहा है इसी आवाज पर मैं आगे बढ़ती ही जा रही थी मैं आईना को छूने ही वाली थी कि राजन ने मुझे पीछे से पकड़ लिया । राजन के मुझे  पकड़ते हुए वें  आवाज जो कुछ देर पहले तक मेरे कानों में गूंज रही थी वह अचानक से  गायब हो गई । राजन मुझ पर गुस्सा कर रहे थे कि इतने  नजदीक से बोलने के बावजूद भी मैं उनकी बातों का जवाब नहीं दे रही थी और मैं सोच रही थी कि मुझे राजन की आवाज तो नहीं सुनाई दे रही थी ।  मेरे कानों में तो कुछ और ही आवाज आ रही थी ।  किसकी आवाज थी वह ? उस आवाज में कैसा दर्द था ?  मुझे ऐसा क्यों लग रहा था कि  वह आवाज मुझे अपनी तरफ खींच रही  है ...  अपनी तरफ बुला रही है ? अगली सुबह जब में जगी तो मैंने देखा कि उस बेडरूम के दरवाजे पर  ताला लगा हुआ है । उस दिन राजन  बहुत जल्दी चले गए थे । मेरी तबीयत ठीक नहीं थी इस कारण उन्होंने मुझे जगाया नहीं था । जब मैंने नौकरों  से पूछा कि इस कमरे में किसने ताला  लगाया है ? उनका जवाब था कि इस कमरे में ताला साहब ने लगाया है । मेरा सर दर्द अभी तक गया नहीं था   इसीलिए मैंने उस बात को ज्यादा तूल नहीं दिया । नाश्ता करने के बाद मैं  फिर से सोने चली गई थी । लगभग दो  महीने बाद दीपावली थी । घर के  और कमरों  की सफाई करवाने के बाद मैंने नौकरों से कहा कि उस रूम की भी सफाई कर दें । राजन ने उस  दूसरे बेडरूम की चाबी अलमारी में ही  रखी थी यह बात मुझे पता थी इसलिए मैंने एक नौकर  को चाबी दी  और कहा कि जाकर सफाई कर दे । उसने सफाई कर दी और मुझसे पूछा कि क्या मैं उसमें फिर से ताला लगा दूं ? मैंने मना कर दिया । बगल में ही सर्वेंट्स  क्वार्टर थे । सभी  आराम करने वहीं पर चलें गए । मैं अपने कमरे में जा ही रही थी कि तभी मुझे किसी लड़की के सिसकने  की आवाज सुनाई दी । मैं असमंजस में थी कि सिसकने  की आवाज वों  भी किसी लड़की की  उस बेडरूम से कैसे आ रही है ? वह बेडरूम तो  महीनों से बंद है । दिमाग में यही  बातें चल रही थी और कदम उस दूसरे बेडरूम की तरफ बढ़ रहे थे । सिसकियों की आवाज अब बढ़ती ही जा रही थी । कुछ देर बाद मैं उसी आईने के पास खड़ी थी और सोच रही थी कि लड़की की सिसकियां  इस आईने  के अंदर से कैसे आ रही है ? मैंने डरते - डरते  उस आईने को  छूने  के लिए अपना हाथ  धीरे - धीरे आगे बढ़ाया । जैसे ही मेरी  उंगलियों ने उस आईने को छूआ ।  मुझे लगा कि किसी ने मेरी कलाई पकड़ कर अपनी तरफ खींचा है । डर के मारे मैंने अपनी आंखें बंद कर ली । मैंने धीरे-धीरे जब अपनी आंखें खोली तो देखा कि  सामने एक और रूम था । मेरे आस-पास  कोई नहीं था । मैंने अपनी नजरें डरते - डरते चारों तरफ दौड़ाई । मेरी नजर एक कोने में जाकर रुक गई । ध्यान से उस तरफ  देखने के बाद मुझे पता चला कि उस कोने में एक  लड़की बैठी हुई  है जिसने अपने सिर को अपने दोनों घुटनों पर रख रखा है । मैंने उससे पहले ना तो वह कमरा ही कभी देखा था और ना ही उस लड़की को ही कभी देखा था । कौन है यह लड़की ? इस सवाल ने मेरे सिर में दर्द और भी बढ़ा दिया। मैं इस सवाल के जवाब चाहती थी । मैंने हिम्मत की और उस लड़की के पास जाकर बैठ गई । उसके काले बालों पर हाथ रखते हुए मैंने उससे पूछा कि तुम कौन हो ? उसने अपनी नजरें उठाई । बड़ी-बड़ी काली -  काली आंखों में मोटे - मोटे आंसुओं का सैलाब बह रहा था । उसका रोना  मेरे दिल को चीर रहा था । मैंने बहुत ही मुश्किल से उसे चुप कराया । जब वह लड़की थोड़ी शांत हुई मैंने उसके रोने की वजह पूछी । उसने जो मुझे कहानी सुनाई वह इस प्रकार थी :- उसका नाम स्नेहा था ‌। कॉलेज में फर्स्ट ईयर की छात्रा थी वो । एक दिन घर लौटते समय उसकी बस छूट गई । वह  पैदल ही अपने घर की तरफ चल पड़ी क्योंकि उसकी  जो बस छूटी  थी वह अंतिम बस थी जो उसके घर तक जाती थी । गरीब घर की लड़की के पास इतने पैसे नहीं थे कि वह टैक्सी से घर जा सके । तेज कदमों से वह आगे बढ़ ही  रही थी कि तभी उसके पास एक जीप आकर खड़ी हुई ‌ ।  एक पचास  से पचपन  साल का आदमी उस जीप  को चला रहा था । उसने स्नेहा से पूछा कि इतने  सुनसान रास्ते पर वह अकेली  कहां जा रही  हैं ? स्नेहा ने उसे अपनी बस छूटने की बात बता दी । उस आदमी ने स्नेहा से कहा कि वह उसके बाप की  उम्र का है इसलिए वह उस पर विश्वास कर सकती  हैं । वह उसे  उसके घर का पता बता दें ताकि वह  जीप से उसके घर वह उसे  छोड़ सकें । स्नेहा ने उसे अपने घर का पता बता दिया । उसके बाद स्नेहा उस आदमी पर विश्वास कर जीप में बैठ गई । कुछ दूर जाने पर उस आदमी ने स्नेहा से कहा कि इसी रास्ते में उसका  घर है । आज उसने अपनी बीपी की दवाई नहीं खाई है क्योंकि वह दवा घर पर ही रखी हुई  है । उसने कहा कि वह उसके साथ उसके घर चले । वह दवा खाकर उसे उसके घर तक पहुंचा देगा । स्नेहा ने इस बार भी उस पर विश्वास कर लिया और इस तरह वह आदमी उसे अपने घर ले गया । घर आने के बाद स्नेहा को जीप में ही बैठा देखकर उसने कहा कि वह भी उसके साथ  घर के अंदर चले ताकि वह अपनी  दवा खा सकें । बहुत जिद करने के बाद स्नेहा  घर के अंदर जाने के लिए मान गई । स्नेहा के घर के अंदर आते ही उस आदमी ने चुपके से  मेन दरवाजा बंद कर दिया और पीछे से आकर स्नेहा को दबोच लिया । स्नेहा चिल्ला ना सके इसलिए उसने अपना एक हाथ उसके  मुंह पर रख दिया । हट्टे -  कट्टे आदमी के सामने स्नेहा की एक न चली और वह उस आदमी की हवस का शिकार बन गई । चूंकि  उस आदमी ने उसके मुंह पर हाथ रखा था इसलिए स्नेहा की सांसें उखड़ने लगी कुछ देर बाद उसकी सांसे ही बंद हो गई । उस आदमी को लगा था कि स्नेहा बेहोश हो गई  हैं। जब तक उसका जी नहीं भरा तब तक वह स्नेहा के शरीर के साथ अपनी मनमानी करता रहा । अब तो स्नेहा कर शरीर भी इसका विरोध नहीं कर रहा था ‌। अपनी  मनमानी करने के बाद उसने स्नेहा को धमकाना शुरू किया कि अगर इस बात की चर्चा उसने किसी से भी की तो सिर्फ उसकी ही बदनामी होगी । मेरी उम्र  देखकर कोई यह नहीं मानेगा कि मैंने यह सब  किया है । स्नेहा की तरफ से कोई उत्तर ना मिलने पर उसने उसे हिलाना डुलाना शुरू किया अब जाकर उसे पता चला कि वह तो मर चुकी है । उसे कुछ सूझ  ही नहीं रहा था कि वह क्या करें ? तभी वह कुछ देर बाद एक हथौड़ा लेकर आया और उसने दीवार तोड़नी  शुरु कर दी । थोड़ी सी  दीवार तोड़ने के बाद उसने स्नेहा की लाश को दीवार में टिका दिया । उसने ईट बालू और सीमेंट से उस दीवार को भर दिया । वह आदमी वहां पर अकेला ही रहता था इसीलिए किसी को कुछ भी पता नहीं चला । दूसरे दिन उसने  मजदूर बुला कर उस पर प्लास्टर चढ़ा दिया और  उसकी पुताई भी करवा दी । जहां उस आदमी ने स्नेहा की लाश को दीवार के सहारे टिकाया था उसी के आगे उसने एक बहुत बड़ा आईना टांग दिया । स्नेहा तो  मर चुकी थी लेकिन उसकी आत्मा उसी दीवार और आईने में कैद होकर रह गई थी । कुछ दिन बाद ही वह आदमी वहां से हमेशा के लिए चला गया और होने की वजह से स्नेहा कुछ नहीं कर पाई । जज साहब ! यह वही घर था जिस घर में मैं गई थी । जब मैं उस घर में गई तो स्नेहा को मुझसे उम्मीद बंधी कि मैं उसके लिए कुछ कर सकती हूॅं । उसने मुझे अपनी सारी कहानी सुनाई । ना जाने कैसे स्नेहा के पास उस आदमी की तस्वीर भी थी । उसने मुझे वह तस्वीर दिखाई थी । उसने मुझे मेरे हाथों में तस्वीर पकड़ते हुए कहा था कि तुम मेरी मदद करो । मैं चाहती हूॅं  कि उस आदमी को कड़ी से कड़ी सजा मिले जिसने मेरी जिंदगी बर्बाद की और मुझे मौत के हवाले कर दिया । मैंने उससे वादा किया कि मैं उसके लिए जरूर कुछ करूंगी । उसने मुझसे  कहा कि तुम अपनी आंखें बंद करो ‌। मैंने अपनी आंखें बंद कर ली कुछ देर बाद जब मैंने अपनी आंखें खोली तो मैं  उस बड़ी सी आईने वाले बेडरूम में भी नहीं थी बल्कि मैं अपने बेडरूम में अपने बेड पर लेटी  हुई थी । मैं याद करने की कोशिश करने लगी कि मैं कहां थी ? जब  मैंने अपने हाथों में एक आदमी की तस्वीर देखी  तो मुझे स्नेहा की बातें याद आने लगी । यह बात मैंने राजन को बताई  लेकिन उन्होंने मेरी बातों पर विश्वास नहीं किया । उन्हें लग रहा था कि मुझे सफाई करने के दौरान ये तस्वीर मिली है और मैं कोई कहानी बना रही हूॅं । मैंने उन्हें बहुत समझाने की कोशिश की लेकिन उन्होंने मेरी एक न सुनी । मैं स्नेहा  के लिए चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रही थी । मैं अकेली क्या करती ? वैसे मैंने अपनी तरफ से सोशल मीडिया पर उस आदमी को ढूंढने की कोशिश की लेकिन मुझे इसमें सफलता नहीं मिली । एक दिन जब मैं सुबह उठी तो मैंने राजन को उस रूम में जाते हुए देखा मैं जब तक उनके पास पहुंचती वह उस आईने के अंदर जा चुके थे । मैंने भी उस आईने के अंदर जाना चाहा लेकिन उस दिन लाख कोशिश के बावजूद भी मैं उस आईने के अंदर नहीं जा पा रही थी । मैं चिल्ला रही  थी  कि राजन उस पार है लेकिन सब मुझे पागल समझ रहे थे । कोई भी मेरी बातों पर यकीन नहीं कर रहा था । उस दिन मेरे मुंह से क्या निकल रहा था मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था । जब पुलिस मुझे पकड़ कर ला रही थी पुलिस के अनुसार मैं कह रही थी कि मैंने अपने पति को मार डाला है लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था ।  मैं अपने पति को मार ही नहीं सकती । जज साहब ! सिर्फ एक बार आप लोग मेरी बात पर यकीन करिए और मेरे साथ उस जगह पर चलिए जहां पर यह  घटना घटी है  यानी कि मेरे घर पर चलिए । सिर्फ एक बार चलिए।  मैं अपने आप को निर्दोष साबित कर दूंगी । मेरे पति भी सही सलामत वहीं पर मुझे मिलेंगे ऐसा मेरा विश्वास है । सिद्धि की बातों पर यकीन कर जज साहब और उनकी पूरी टीम उसी बंगले के दूसरे बेडरूम में पहुंची । सिद्धि ने अपना हाथ जब उस आईने के ऊपर रखा वह  आईना अचानक से टूट कर बिखरने लगा । सभी ने देखा कि राजन एक लड़की के साथ खड़ा है । राजन दौड़कर  सिद्धि के पास आ जाता है और उससे कहता है कि मैंने तुम्हारी बात पर विश्वास नहीं किया था । तुम पर विश्वास करने के लिए इस लड़की ने मुझे सम्मोहित कर  इस आईने के अंदर बुला लिया था । इसके हाथ में भी वही तस्वीर थी जो तुमने मुझे दिखाई थी । मैंने अपने आदमियों से कहा था कि इस तस्वीर के बारे में पता करने के लिए । मुझे फोन भी आया था कि उस आदमी  का पता चल चुका है । मैं तो इस बेडरूम में इस  आईने को जिससे मैं शापित  मान चुका था  देखने आया था लेकिन इस शापित आईने के सम्मोहन में ऐसा फंसा कि  इसके अंदर ही चला गया । मुझे विश्वास था कि तुम  मुझे बचा लोगी और देखों  हुआ भी यही है । राजन ने जज साहब की उपस्थिति में ही  उस आदमी का पता पुलिस को बताया । पुलिस तुरंत ही  उस जगह पर पहुंच गई जहां वह आदमी छुप कर रह रहा था । उस बंगले में उस आदमी को लाया गया । स्नेहा ने उस आदमी को देखा और जोर - जोर से हंसने लगी । देखा तुमने अपने किए गुनाहों की सजा एक न एक दिन जरुर मिलती  हैं । मेरा बदला पूरा हुआ । जिस आईने को तुमने मुझे छुपाने के लिए लगाया था उसी आईने ने मुझे तुम तक पहुंचा दिया । एक औरत होने के नाते सिद्धि दीदी ने मेरे दर्द को समझा । मैं  इनके पति को दर्द नहीं देना चाहती थी । ना ही कोई  तकलीफ ही  देना चाहती थी  लेकिन क्या करूं ? यह सब मुझे करना पड़ा ताकि तुम्हें मुझ तक लाया जा सके । मुझे अपने देश के कानून पर पूरा विश्वास है । तुम्हारे  गुनाहों की सजा अब  तुम्हें कानून देगा । जज साहब भी तो यहीं पर  उपस्थित है और मेरी गवाही के कारण तुम्हें सजा  मिलेगी ही । कोई भी गुनाह किया हुआ कभी छुपता नहीं है ।  कुछ समय के लिए ओझल  जरूर हो सकता है लेकिन एक - न - एक दिन गुनाहगार को अपने किए  गुनाहों की सजा अवश्य मिलती है । अब मेरे जाने का समय हो चुका है । यह कहते हुए वह लड़की अदृश्य हो गई । दोनों हाथों में हथकड़ी पहने वह आदमी कभी दीवार को तो कभी उस शापित समझे जाने वाले टूटे हुए आईने को देखे जा रहा था । उसे तो अभी भी यकीन  नहीं हो रहा था कि उस लड़की ने ऐसा कुछ किया है ।                                                धन्यवाद 🙏🏻🙏🏻 " गुॅंजन कमल " 💗💞💓 # दैनिक प्रतियोगिता हेतु  

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