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नौकरी का पहला दिन

Gunjan Naveenkumar

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यह कुदरत भी ना !  हम गरीबों पर ही  सारे कहर ढ़ाहती  है । छोटा सा तो परिवार है हमारा । अम्मा .. बाबूजी ..  रज्जो ... मैं और मेरी फूल सी  ढाई वर्ष की बिटिया कमली । सब कुछ कितना अच्छे से चल रहा था । बाबूजी के साथ मिलकर मैं अपनी  जमीन के छोटे से टुकड़े पर इतनी फसल तो उगा  ही लेता था  कि  दो वक्त की रोटी हम सभी  खा सकें लेकिन इस बार मौसम के कहर  ने हमारी सारी फसल बर्बाद कर दी और हमें दाने - दाने के लिए मोहताज कर दिया । मेरे पास नौकरी भी नहीं है कि मैं इस आपदा की घड़ी में अपने आपको और अपने परिवार को  संभाल सकूं । क्या करूं मेरी तो कुछ समझ में ही नहीं आ रहा है ?   रामू  अपने आप में ही बुदबुदाएं ही  जा रहा था । रामू जिस चाय की टेकरी पर बैठा अपने हालातों पर रो रहा था और उसके प्रति चिंता व्यक्त कर रहा था उसी चाय की टेकरी पर मास्टर दीनदयाल भी बैठकर चाय पी रहे थे । रामू को उन्होंने  पहचान लिया था । वे जिस हाई स्कूल में शिक्षक थे रामू  ने उसी  हाई स्कूल से मैट्रिक की थी और वैसे भी अपने  स्कूल के मेधावी छात्रों को कौन शिक्षक नहीं पहचानता है । मास्टर दीनदयाल ने रामू को परेशानी में देखा तो उसके समीप जाकर बैठ गए । ' बेटा रामू ! क्या बात है   परेशान लग रहे हो ?'  मास्टर जी ने रामू के झुके  सर की तरफ देखते हुए उससे पूछा । मास्टर जी की बात सुनकर  रामू ने अपने झुके सर को ऊपर किया और मास्टर जी की तरफ देखते हुए कहा :- " प्रणाम मास्टर साहब ! हम ठीक हैं आप सुनाइए ।" ' कहाॅं ठीक हो रामू ! तुम्हारे चेहरे पर परेशानी साफ झलक रही है । कुछ ना कुछ तो बात अवश्य  है जिसकी वजह से तुम यहाॅं  होकर भी अपने आप में ही खोए हुए हो  और मैं तुम्हें आधे घंटे से देख रहा हूॅं  तुम अपने आप में ही खोए हो और ना जाने क्या बड़े बड़बड़ाएं जा रहे हो ? कोई परेशानी है तो मुझे बताओ ?'  मास्टर जी ने रामू के प्रति  स्नेह  के भाव अपने चेहरे पर लाते हुए कहा । मास्टर जी के द्वारा कही गई अपनापन  भरे शब्दों को सुनकर  रामू  ने भावुक होते हुए कहा :- " मास्टर साहब !  मेरी तो कुछ समझ में ही नहीं आ रहा है कि मैं क्या करूं ? इस बार मैंने अपने खेतों में जो फसल लगाई थी वह  सारी फसल बर्बाद हो गई है । पिछली बार कर्ज  लेकर बीज बोए थे इस उम्मीद में कि इस बार अच्छी फसल होगी तो कर्ज भी  चुका देंगे और हमें  किसी के आगे हाथ भी नहीं फैलाना पड़ेगा लेकिन मेरी उम्मीदों पर तो पानी फिर गया । मेरी सारी फसल नष्ट हो गई और मेरे सारे पैसे डूब गए । इतने दिनों से बचाए पैसे भी खत्म होने की कगार पर है । अब मेरी समझ में यह  नहीं आ रहा है कि मैं ऐसा क्या करूं  जिससे कि मेरे परिवार का भरण -  पोषण हो सके ? पिछले एक महीने से काम ढूंढ रहा हूॅं  लेकिन कोई काम भी नहीं मिल रहा है । ' तुमने तो हमारे  स्कूल से मैट्रिक की थी ।  क्या आगे भी तुमने पढ़ाई की है ?'   मास्टर दीनदयाल ने  रामू से पूछा । ' नहीं मास्टर साहब ! मुझे अपनी आगे की पढ़ाई रोकनी  पड़ी  और खेती - बाड़ी में अपने पिता का साथ देना पड़ा । ज्यादा पढ़ा-लिखा भी तो नहीं हूॅं कि  मुझे कहीं नौकरी मिल सके ?'    दुखी होते हुए रामू ने मास्टर दीनदयाल से कहा । ' अपने हाई स्कूल में चपरासी की जगह खाली है । तुमने मेट्रिक तो की ही हुई है । मुझे लगता है कि तुम्हें यह नौकरी मिल सकती  हैं लेकिन क्या तुम एक चपरासी की नौकरी करना पसंद करोगे ?'   मास्टर दीनदयाल ने रामू की तरफ देखते हुए कहा । ' मास्टर साहब ! परिस्थितियां हम इंसानों से वैसे भी काम करवा लेती है जिन्हें हम करना नहीं चाहते हैं । अगर मुझे यह नौकरी मिल जाती है तो मैं अपने आप को इस समय सौभाग्यशाली समझूंगा । वैसे भी मेरी नजर में कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता । मैं अपने काम को पूजा मानता हूॅं इसलिए चपरासी की नौकरी मेरे लिए पूजा के समान होगी जिस तरह मैं अपने खेतों में अपनी लगन और मेहनत से काम करता था  उसी तरह मैं स्कूल में भी उसी  लगन और मेहनत से काम करूंगा । मैं कोशिश करूंगा कि किसी को मुझसे शिकायत कोई भी  शिकायत  ना हो ।' रामू ने भावुकतावश  मास्टर दीनदयाल के पैरों को छूते हुए कहा । रज्जो ! आज मेरी नौकरी का पहला दिन है  और मैं पहले  दिन ही देरी से नहीं जाना चाहता । मास्टर साहब ने मेरे लिए जो  किया है उसे मैं हमेशा याद रखूंगा उनकी वजह से ही मुझे हाई स्कूल में चपरासी की नौकरी मिली है । मास्टर साहब बहुत ही भले आदमी हैं । सभी का भला सोचते हैं तभी तो मुझ जैसे गरीब हो वहां पर नौकरी दिलाने में एड़ी चोटी का जोर लगा दिया । रज्जो ! सुनने में तो यह भी आया था कि इस भ्रष्टाचार के युग  में कोई भी काम बिना पैसे की नहीं होता है और इस चपरासी की नौकरी में भी कुछ लोग ऐसे थे जो पैसे लेकर इस नौकरी को देने वाले थे लेकिन मास्टर साहब ने यह  नहीं होने दिया । सिर्फ और सिर्फ मास्टर साहब की वजह से ही यह नौकरी मिली है और आज मेरी  नौकरी का पहला दिन है । मास्टर साहब से मैने वादा किया है की अपनी इस नौकरी को पूजा की तरह करूंगा । अरे देखो !  तुम से बात करने में समय का पता ही नहीं चला ।  ८:०० बज चुके हैं और १०:००  बजे से पहले मुझे स्कूल में पहुॅंचना है । मैं तैयार होने जाता हूॅं और जब तक मैं तैयार होता हूॅं  तुम मेरा टिफिन तैयार कर दो ।'  रामू में अपनी पत्नी रज्जो  से कहा । ' अम्मा ...  बाबूजी .. मुझे आशीर्वाद दीजिए ।  आज मेरा नौकरी का पहला दिन है और वहाॅं पर  जाने से पहले मैं आप दोनों के आशीर्वाद के बिना कैसे जा सकता था ?'     रामू ने  मुस्कुराकर  अम्मा बाबूजी के पैर छुते हुए कहा । पापा ....  पापा ... अपनी बेटी की आवाज सुनकर रामू ने अपनी बेटी कमली को गोद में उठा लिया और उसे चूमते हुए कहा :- "  मैं शाम में आऊंगा फिर हम दोनों साथ में खेलेंगे तब तक तुम अपनी  माॅं ... दादा और दादी के साथ रहो । ' पापा ... छाम ( शाम )  में  झल्दी ( जल्दी )  आना ।' कमली ने अपने पिता राजू  को बाय करते हुए तोतली आवाज में कहा । रामू अब हाई स्कूल के मेन गेट पर खड़ा  हो उस हाई  स्कूल को निहार रहा है । ऐसा नहीं था कि रामू  आज पहली बार  इस हाई स्कूल में आया था ।  पहले वह इसी स्कूल में पढ़ने के लिए आता था लेकिन आज  अपनी नौकरी करने के लिए  इस स्कूल में उसने  कदम रखा था । पहली बार जब कोई  किसी काम को करने जाता हैं तो उसका अनुभव उसके  लिए बहुत ही खास होता है । उसके दिल में उस काम के प्रति एक अलग ही तरह की अनुभूति उसे खुद ही महसूस होती है और यह सारी चीजें रामू के साथ भी हो रही थी । मैं अपने काम को पूरी ईमानदारी ..... लगन और मेहनत के साथ करूंगा ऐसा   मैं अपने आप से वादा करता हूॅं । हे  ईश्वर !  मेरे खुद से किए गए इस वादे  में मेरी सहायता करना और मुझे हिम्मत देना कि मैंने जो अपने आप से वादा किया है उसे मैं निभा  सकूं । रामू मन ही मन बुदबुदा  रहा था तभी उसके कानों में बच्चों के हॅंसने की आवाज  सुनाई पड़ी । हॅंसने की आवाज की तरफ  उसने अपनी नजरें घुमाई । उसने देखा कि स्कूल के परिसर में ही  एक निर्माणाधीन इमारत है उसी की छत पर दो लड़के आपस में बात कर हॅंसे ही जा रहे हैं । पहले तो रामू को उन  दोनों बच्चे को देखकर अपने पुराने वाले दिन याद आ गए जब वह इसी स्कूल में पढ़ता था और इसी तरह अपने दोस्तों के साथ हॅंसी -  ठिठोली करता था लेकिन अगले ही पल उसने  देखा कि उन दोनों लड़कों में से एक लड़का  ऐसी जगह पर बात करते हुए आ रहा है  जहाॅं  से  अगर वह नीचे गिर गया तो  इतनी ऊंचाई से गिरने के बाद उसका बचना नामुमकिन ही  है । जिस बात का डर  रामू को था आखिर वही बात हुई । वह लड़का अपना संतुलन खोकर  गिरा  तो लेकिन  वह  नीचे जमीन पर गिरता उससे पहले ही  रामू ने अपने दाहिने हाथ से उसका हाथ थाम लिया । अगर रामू के उस लड़के का हाथ पकड़ने में  एक  सेकेंड की भी देरी हो जाती  तो वह लड़का नीचे जमीन पर गिर जाता और इस बात को रामू भी  जानता था और साथ ही वह  इस बात को भी जानता था कि अगर मेन गेट से वह चिल्लाता तो हो सकता था कि वह लड़का इधर - उधर देखने लगता और इसके कारण भी उसका संतुलन बिगड़ जाता  और वह नीचे जमीन पर गिर जाता इसलिए रामू ने  बगैर कोई देरी किए दूसरी तरफ की सीढियों का ऊपर चढ़ने के लिए इस्तेमाल किया और संजोग से जब वह  उस लड़के के  करीब पहुॅंचा उसने देखा कि उस लड़के  का संतुलन बिगड़ चुका है और वह  गिर  रहा है तब उसने अपना दाहिना हाथ आगे किया  और उस लड़के का हाथ  पकड़ लिया । दस  बज चुके थे इसीलिए स्कूल के सभी बच्चे और शिक्षक - शिक्षिकाएं भी स्कूल में उपस्थित हो चुकी थी और उन्हें एक -  दूसरे से इस बात की भी खबर लग चुकी थी कि इसी स्कूल का  एक लड़का  अभी उस निर्माणाधीन इमारत से गिरने से बचा है । सभी शिक्षक - शिक्षिकाओं के साथ मास्टर दीनदयाल भी उस स्थान पर पहुॅंचे जहाॅं यह  घटना घटने वाली थी । उन्होंने  रामू को उस  जगह पर खड़े देखा तो उन्होंने उससे पूछा फिर यहां क्या हुआ था ? रामू कुछ बोलता उससे पहले ही दो लड़कों में एक और लड़का जो गिरने वाले लड़के के साथ था उसने सारा वाकया  मास्टर दीनदयाल जी को सुना दिया । मास्टर दीनदयाल जी ने रामू का परिचय सभी से करवाया । उस लड़के  की सारी बातें सुनने के बाद हाई स्कूल के प्रधानाध्यापक  ने आगे बढ़कर रामू की पीठ थपथपाई और उससे कहा :- " रामू ! आज तुम्हारी नौकरी का पहला दिन था और नौकरी  के पहले ही  दिन तुमने जिस समझदारी और हिम्मत का परिचय दिया है उसे देखकर और सुनकर हम सभी को तुम पर गर्व हो रहा है । तुमने किसी घर  के चिराग की तो जान बचाई  ही है साथ ही  हमारे इस स्कूल को भी कलंक लगने से बचाया है । आज अगर यह  हादसा हो गया होता तो हम इस लड़के के माता - पिता को क्या जवाब देते ? सभी माता-पिता हम पर भरोसा करके अपने बच्चे को यहाॅं  पर पढ़ने के लिए भेजते हैं और जब तक यें  बच्चे इस स्कूल में रहते हैं यह  हमारी जिम्मेदारी होती है कि हम उनका पूरा ख्याल रखें । कभी-कभी बच्चों  की लापरवाही के कारण भी ऐसे हादसे  हो जाते हैं और आज वही होने वाला था लेकिन तुमने अपना फर्ज निभाते हुए इस हादसे को  होने से पहले ही रोक दिया । उम्मीद है अपनी नौकरी के पहले दिन की तरह बाकी के  और दिनों में भी   तुम अपना फर्ज  पूरी ईमानदारी और निष्ठा से निभाओगे । " रामू ने भी  प्रधानाध्यापक जी  को कहा कि वह  पूरी कोशिश करेगा  कि  उनकी  उम्मीदों पर खरा उतर सके ।  छुट्टी के बाद  अपनी साइकिल पर सवार रामू जब अपने घर जाने वाले रास्ते पर  चला आ रहा था उसका पूरा चेहरा खिला हुआ था और वह यह सोच कर मुस्कुरा रहा था कि आज ! उसकी नौकरी के पहले ही दिन स्कूल में सिर्फ उसके नाम की ही  चर्चा हो रही थी ।             ######## समाप्त #########                                                धन्यवाद 🙏🏻🙏🏻 " गुॅंजन कमल " 💓💞💗 

naukari ka pahla din

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