औरत को सदा ही मर्दों ने
बेजार किया ,
भरी महफ़िल में
हर बार शर्मसार किया |
मासूम बच्ची हो ,
साड़ी में लिपटी काया,
हर रूप में औरत ने ,
इज्जत मान गवाए |
छोटे कपड़ों को ,
अस्मिता लूटने का कारण बताया,
फिर नन्ही कलियां साड़ी में सिमटी ,
काया ने अपनी इज्जत को गंवाया |
क्या हो जो औरत आए भरे बाजार ,
खुद अलग कर दे अपने परिधान,
मर्दों तुम्हारी मर्दानगी को ललकारे,
खुद सामने आकर तुम्हारी इज्जत उतारे |
तुमसे जो औरत कह जाए ,
हो हिम्मत तो छूकर दिखाएं ,
तुम भी हो जाओगे शर्मसार ,
फिर तुम बतलाना ,
आसान है क्या यू जी पाना |
कैद पंछी से जब औरत को रखते ,
इज्जत मान सम्मान के पाठ ,
सामने औरत के पढ़ते हो ,
लाज शर्म की मयार्दा बताते हो |,
कैद में रख हक़ तुम जताते हो |
तुम जो कुछ भी हासिल करो ,
ये तुम्हारी काबिलियत ,
जो औरत सफलता पाए ,
तो बेशर्मी बतलाकर ,
दिखते अपनी असलियत ,
तुमने ये बात नहीं बताई ,
दोगला जीवन जीते शर्म ,
कभी तुम्हे है आई |
बहुत जली मोमबत्तियां ,
न्याय की बड़ी गुहार लगाई ,
अब औरत बनी आग ,
आंगरे अब ना बुझ पाए ,
आग के दरियें में सब जल जाना है ,
अस्मिता और मान से जो ,
औरत के खेले अब तय है ,
उसको राख हो जाना है |
अब तूफान को तुम पहचानो ,
अब ना मिले दया रहम ,
बात ये तुम जानो ,
रीत रिवाज बंधन ,
अपने सुहुलियत के परिधान ,
अब अपने संभालों |
बेवजह ना अब कैद के पाओगे ,
आज की नारी को ना ज़ंजीरों मे बांध
पाओगे ,
औरत खुद मे बलशाली ,
अपनी ताकत औरत ने अब पहचानी ,
ना औरत को तुम अब कम जानो ,
ना अब और सताना कहना अब मानो |
जो खुद औरत आ जाए ,
खुद मे है औरत जलजला ,
सब तबाह कर जाए ,
अपनी में मर्यादा को औरत तज़ कर आ गई ,
ना खुद से नज़रे मिला पाओगे ,
शर्मसार भर महफिल खुद को पाओगे ,
औरत ने जब सब कुछ गंवा दिया ,
क्या होगा जो असली रूप तुम्हारा सबको ,
दिखा दिया |