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शर्मशार होती इंसानियत

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डियर दिलरुबा दिनांक - 23/9/22 दिन - शुक्रवार डियर दिलरुबा, आज फिर तुम्हारे साथ अपने मनोभावों को शेयर करना है,,, हर बात शेयर करने के लिए तुम ही तो हो मेरे पास जो बिना कुछ कहे मेरी सारी बातें सुनती रहती

आज समाज में जहां एक ओर इंसान के अच्छे कामों की चंद मिसालें हैं तो वहीं दूसरी ओर इंसानियत को शर्मसार करने वाले ऐसे अनेकों कारनामें देखने को मिल जाते हैं जिससे लगता है कि वाकई आज के इंसान इंसानियत की पर

वक्त बदल गया दुनिया में,बदल गई  इंसान की नीयत।हर तरफ एक शोर मचा है,शर्मसार हो रही इंसानियत।।शिक्षा व्यवस्था बदहाल हो गई,व्यापार बना अमीरों का।खंडहर हो गई सरकारी शिक्षा,मोल हो गया जमीरों का।।शिक्ष

शर्मसार होती इंसानियत जब आज का टैग मिला तो मैं समझ नहीं पाया की किस मुद्दे पर लिखा जाए. क्योंकि 'शर्मसार होती इंसानियत'  इस विषय पर लिखने के लिए मुद्दों की कमी नहीं है , उलटा इस विषय पर लिखने क

आज का दैनिक लेखन का विषय बड़ा ही संवेदनशील, विचारणीय और चिंतनीय है। आज देश-प्रदेश या हमारे आस-पास के कई इंसान कहलाने वाले जीवों के ऐसे-ऐसे घृणित, कुत्सित, पाशविक प्रवृत्ति के चहेरे हमारे सामने आ रहे है

धरती पर इंसानों का अस्तित्व एक बुद्धिजीवी जीव के रूप में हुआ है । इंसानों ने आदिकाल से आज तक अपने जीवन में बहुत बदलाव लाएं हैं । नई - नई खोज की , नए आविष्कार किए ,  जो किसी और जीव के लिए मुमकिन न

मेरे प्यारे अलबेले मित्रों !बारम्बार नमन आपको 🙏🙏भूखे को भोजन और प्यासे को पानी !रोगी को उपचार और स्नेहील वाणी !!बड़े-बुजुर्गों और माता-पिता को सम्मान !निर्बल को सहायता और सेवक को मान !!माँगे मदद जब द

प्रिय सखी ।कैसी है ।हम अच्छे है और मौसम से दुःखी है । लगातार बरसात हो रही है ।आज तुम्हें पता है दैनिक प्रतियोगिता का विषय बड़ा ही उम्दा है । "शर्मशार होती इंसानियत "सच मे सखी कहां नही है इंसानियत शर्म

शर्मसार होती इंसानियतक्यों पाक नही आज किसी की नियतक्यों नही होता इंसानियत का आगाज़ इंसानों का ये कैसा अंदाजऔरत को लाज शर्म की मर्यादा बताते हैइंसानियत खुद क्यों भुल जाते हैऔरत को सदा ही मर्दों ने

डियर काव्यांक्षी                कैसी हो प्यारी🥰 मैं कैसी हूं?आज मन अच्छा नही प्यारी अब क्यों नही है तो क्या ही बताऊं तुम्हे, और आज विषय भी ऐसा मिला शर्मसा

ईश्वर ने इस धरती को रचा है | और ईश्वर द्वारा बनायी गयी सबसे अच्छी खोज थी इन्सान | जिसमे ईश्वर ने बल के साथ-साथ बुद्धि भी डाली थी | ताकि बेजुबान पशु पक्षी सभी की मदद कर सके इंसान | किंतु कलयुग का जैसे

आज जहां देखो वहीं ईष्या द्वेष और जलन की भावना ने उग्र रूप धारण कर लिया लोगों में मानो प्रेम सद्भावना का भाव अब कहीं दिखलाई नहीं देता मानो वो कोहरे की धुंध की भांति लुप्त सा हो गया है और इंसान इंसान

इंसान को जीवन दिया,भगवन ने कर्म करने वास्ते।कर्म करो तुम कर्म करो,मंजिल तय करने के रास्ते।।इंसान को समझाया भगवन ने,सही गलत तय करने के रास्ते।बुद्धि और विवेक प्रशस्त कर,तू बंदे अपने जीवन के वास्ते।।कर्

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