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शत्रु

12 दिसम्बर 2021

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दुश्मन(शत्रु)
भाग-1(chapter-1)
लेखक-सऊद "अहमद " खान

कहानी उस वक़्त की है जब भारत आज़ाद बस हुआ ही था| क़ई मुस्लिम परिवार पाकिस्तान गए मगर जिन्होंने हिंदुस्तान को ही अपना वतन माना वो सब यही रुक गए|

इसी बीच हिंदुस्तान के गुजरात राज्य में पनप रही थी एक कहानी एक अद्भुत मगर खूबसूरत, खतरनाक मगर दिलेरी से भरपूर थोड़ी दोस्ती ओर दुश्मनी की नींव पर टिकी दो मज़हब ओर रिश्तों को जोड़ने वाली यह कहानी|

कहानी शुरू होती है गुजरात के शहर जूनागढ़ से जहां हर कोई मिल जुल कर ओर सुख शांति से अपना जीवन बिता रहा था। इसी माहौल में कई सालों से कच्ची बस्ती सितारा होटल के पास एक बड़ा मकान था, तीन मंज़िल के इस मकान के आस पास सब कच्चे मकानों की कतारें थी,यह मकान था  हैदर अली का जिस के एक 5 साल की बेटी उमेरा अली  ओर 9 साल का बेटा असद अली था।
इन बच्चों की माँ ज़ुबैदा का असद को जन्म देते वक़्त इंतेक़ाल हो चुका था। हैदर अपने बच्चों को दिल ओ जान से चाहता था ओर उनकी खुशी में रज़ामंद रहता था। इलाके में लोग उनसे राय मशवरा लेने आते थे, हैदर अली उनकी परेशानियों को हल करने की कोशिश करता।लोग उसे खान बाबा कहते। उनकी राजनीति में भी अच्छी पैठ थी।

इनके पड़ोस में ही शिव मंदिर के पास सेठ मणिशंकर त्रिपाठी का घर था,लोग उन्हें त्रिपाठी जी के नाम से जानते थे,इनके मात्र एक ही औलाद थी रवि त्रिपाठी। भरा पूरा परिवार ओर सबसे छोटा होने के कारण दुलार भी रवि को सबसे ज़्यादा मिलता।त्रिपाठी जी भी राजनीति में अपनी पार्टी के मुख्य दावेदार थे।उनके चर्चे भी बहुत दूर-दूर तक थे।

रवि और असद दोनों एक दूसरे के बहुत अच्छे दोस्त थे,रवि मंदिर से प्रसाद लेकर असद को खिलाता तो असद भी पीर बाबा की नियाज़ की खीर असद को खिलाता| इन दोनों की दोस्ती उनके घर वालों को बिल्कुल भी पसंद नहीं थी, आए दिन इसी बात पर रवि और असद के घर में कोई ना कोई झगड़ा होता रहता था, मगर यह दोनों फिर भी मिलते और सभी बातों को नजरअंदाज करते रहते।

मंदिर के ठीक पीछे पुजारी जी का घर था, उनके एक मात्र पुत्री राधा थी और कोई उन का सगा संबंधी न था,राधा को बड़े प्रेम से पाला और पढ़ाया मगर राधा तो रवि के प्रेम में दीवानी थी,और रवि भी राधा पर अपनी जान छिडकता था| राधा असद को भाई भी से भी बढ़कर मानती थी,और राखी को असद को राखी बांधती थी, असद भी कहता मेरी एक नही दो बहनें हैं|
रात को छुपकर रवि-असद दोनों राधा के घर जाते असद ध्यान रखता और रवि राधा से बालकनी में मिलता,मगर किसको पता था इनकी खुशियां जल्दी ही मातम में बदलने वाली थी |
वक़्त बीतता गया असद-रवि और राधा नें जवानी में क़दम रखा| दोनों नोजवान गठीले बदन लंबी डील डॉल के साथ साथ -साथ रहते घर कारोबार की कोई फिक्र ना थी,कॉलेज और दोस्तों में आवारागर्दी करते कॉलेज में दोनों की दोस्ती का बोलबाला था,कोई इन दोनों से उलझने की हिम्मत नही करता था| कॉलेज में एक मनचला अर्जुन शेट्टी भी था जिसका काम ड्रग्स,और नशीले पदार्थ स्टूडेंट्स को बाँटना था,उस का भाई रुद्रा शेट्टी एक राजनैतिक पार्टी का अध्यक्ष था, वह भी बड़े पैमाने पर ड्रग्स का कारोबार करता था।बस यही वजह थी की कोई उस्से दुश्मनी मोल नहीं लेता था।
असद-रवि दोनों उसे कईं बार उसके कामों की वजह से उसे धमकी भी दे चुके थे।
राधा भी इसी कॉलेज में पढ़ती थी, राधा की सहेली रमा को अर्जुन शेट्टी के गुंडों ने जबरदस्ती ड्रग्स देने की कोशिश की राधा के विरोध करने पर उसका हाथ पकड़ लिया राधा ने उसे ज़ोरदार थप्पड़ मारा यह बेइज़्ज़ती वोह सह ना सका और राधा को अपने गुंडों से उठवा लिया| वोह उसे अपने अड्डे पर ले गया वो राधा के साथ कुछ करता उससे पहले ही वहां असद-रवि पहुंच गए और पच्चीस-तीस लोगों के झुंड से भीड़ गए दोनों को खूब चोटें आयी मगर वो राधा का बचाने में कामयाब हो अर्जुन शेट्टी को दिमागी चोट आई और वह कोमा में चला गया, असद-रवि,राधा को घर छोड़कर अपने-अपने घर गए और किसी को अपने घर कुछ न बतानें को कहा घर वालों नें पूछा तो रवि-असद नें मोटरसाइकिल से गिरने की बात कहकर टाल दिया|  

2।।।।।।।।।।।।

कुछ ही दिनों बाद .....

रवि के पिता(त्रिपाठी जी) और असद के पिता(हैदर अली उर्फ खान बाबा) में आपस में ज़मीन के मुद्दे को लेकर झगड़ा हो गया झगड़ा इस हद तक बढ़ गया की रवि-असद को यह चेतावनी दे दी गयी की दोनों एक दूसरे से ना मिलें मगर फिर भी चोरी छिपे दोनों एक दूसरे से मिलते|

ज़मीन का विवाद दिन-प्रतिदिन बढ़ता गया,शहर के बड़ों ने एक बड़ी मीटिंग बुलाकर इन दोनों के झगड़े को खत्म करने का फैसला किया|  
मीटिंग शुरू हुई और फैसला हैदर अली के हक़ में हुआ,त्रिपाठी जी को इस में अपनी बेइज़्ज़ती महसूस हुई त्रिपाठी जी का छोटा भाई रघु भी इस मीटिंग में था,वोह बहुत जल्दी गुस्से में आ गया,तू-तू में-में करने में बात बहुत बिगड़ गयी हैदर अली(खान बाबा) नें तमंचा निकाला और हवा में गोली चला दी इस पर त्रिपाठी जी को भी तैश आया और उन्होंने खान बाबा के हाथ को ज़ोर से पकड़ा दोनों की छीना झपटी में गोली चल गयी और सीधे खान बाबा के सीने में उतर गयी,चारों तरफ अफरा तफरी का माहौल छा गया,जब असद को यह बात मालूम हुई तो उसके सिर पर मानो खून सवार हो गया बाप की खून से लथपथ लाश और बहन के आंसू देख कर उसके मन में बदले की आग लग गयी,उसने आलमारी में से तमंचा निकाला और सीधा त्रिपाठी जी की हवेली पहुंच गया और ललकारने लगा|
इतने में ही रवि आ गया उसने बहुत समझाया की यह एक हादसा था मगर खान बाबा की खून से भरी लाश ने उसको पागल कर दिया था| रवि नें असद को अंदर बढ़ने से रोका दोनों एक दूसरे से लड़ने लगे बहुत देर तक यह लड़ाई जारी रही,रवि के चाचा रघु भी वहां आ पहुंचे ओर असद को रोकने लगे इस लड़ाई में रघु गिर पड़ा और उसकी एक आंख फूट गयी,यह सब देखकर रघु के आदमियों ने असद को बहुत मारा यहाँ तक की वो बेहोश हो गया अगले दिन अस्पताल में उसकी आंख खुली
इस तरह दो दोस्तों की अटूट दोस्ती अटूट दुश्मनी में बदल गयी |
असद की बहन उमेरा ने बहुत मिन्नतों से असद को समझाया और शहर छोड़ने के लिए मना लिया,दोनों सूरत अपने मामा के घर रवाना हो गए|

भाग-3
वक़्त बीतता गया पांच साल का समय बीत गया| असद नें सूरत में ही मामा के साथ कपड़ों का कारोबार शुरू कर लिया और उमेरा एक प्राइमरी स्कूल में टीचर बन गयी थी| तभी असद के घर डाकिया ख़त देकर जाता है,ख़त में सिर्फ इतना लिखा था, "अगर राधा की जान की सलामती चाहते हो तो फौरन इस पते पर आकर मिलो,नीचे पूरा पता लिखा था| इतने सालों बाद राधा की ऐसी खबर सुनकर असद का दिमाग चकरा गया,मामा ने सलाह दी की जूनागढ़ जाकर ख़ैर-ख़बर ली जाए |
असद शाम की ट्रैन से जूनागढ़ रवाना हुआ,पंडित जी नें बताया की उन की बेटी राधा चार दिन से गायब है,पुलिस में रिपोर्ट भी दर्ज करवाई मगर कोई सुराग हाथ नहीं लगा| पंडित जी को असद नें अपने ख़त के बारे में बताया तो पता चला की आज ही रवि को भी बिल्कुल ऐसा ही ख़त आया है|
रवि ठीक उसी वक़्त पंडित जी से मिलने आया दोनों की नफरत परवान पर थी,असद अपनें पिता की मौत नहीं भूला था और ना ही रवि अपनें पिता की बेइज़्ज़ती और मामा की फूटी आंख दोनों नें एक दूसरे से एक शब्द भी नही कहा पंडित जी दोनों के पैर पड़ कर बोले, " तुम दोनों से भीख माँगता हूँ मेरी बेटी को बचा लो" दोनों नें वचन दिया की वोह राधा को कुछ नहीं होने देंगे,
दोनों अपनें घर गए और जानें की तैयारी करने लगे असद जैसे ही अपनी पुरानी हवेली में आया उसे हर जगह अपनें अब्बू(खान बाबा) दिखाई देने लगे,उन्हें याद करते हुए असद की आंखों से आंसू आने लगे उसका पूरा बचपन उसकी आंखों के सामनें घूमने लगा,उसने अपनें आप को जैसे तैसे संभाला और निकल पड़ा राधा की तलाश में|
मगर रवि के घर पर सब कुछ ठीक नहीं था,रवि के पिताजी त्रिपाठी जी राधा को बिल्कुल पसंद नहीं करते थे,और वो नहीं चाहते थे,की रवि अपनी जान  राधा के लिए जोखिम में डाले। रवि अपनी जिद पर अड़ा रहा और त्रिपाठी जी भी अपनी जिद पर अड़े थे, त्रिपाठी जी ने अपने भाई रघु से कहकर घर के चारों तरफ पहरा करवा दिया ताकि रवि,ना जा सके। मगर रवि किसी ना किसी तरह से छत से कूद कर भागने में कामयाब हो गया और रेलवे स्टेशन की तरफ चला
इस तरह रवि-असद एक बार फिर रास्ते अलग मगर एक ही मंज़िल की तलाश में निकल जाते हैं| ख़त पर दिया हुआ पता राजस्थान के शहर जैसलमेर का था,असद रेलवे स्टेशन पहुंच जाता है,और टिकट लेकर गाड़ी चलने की राह देखने लगता है,गाड़ी चलने को ही होती है की अचानक असद के डब्बे में एक जानें पहचाने शख़्स की आवाज़ सुनाई देती है वो और कोई नहीं रवि ही था,रवि की सीट बिल्कुल असद के सामनें वाली थी,रेल चल चुकी थी,जैसलमेर पहुंचने का और कोई साधन ना था,ना चाहते हुए भी दोनों को एक साथ ही सफर करना था|

सफर रात के दस बजे के आस पास शुरू होता है,दोनों दोस्त या कहें अब जो दुश्मन थे,खामोश बैठे अपनें बीते हुए कल की सुनहरी यादों में खो गए की किस तरह वोह दोनों साथ हजूम करते थे,और किस तरह राधा उन दोनों का ध्यान रखती थी|
अचानक किसी जंक्शन पर ट्रैन रुकती है,लोग उतरनें चढ़नें लगते हैं,चारों तरफ चाय,बिस्किट,और दूसरे विक्रेताओं का शोर और फिर ट्रैन चल पड़ती है|
इस स्टेशन से कुछ लुटेरे भी डिब्बे में चढ़ जाते हैं, और लोगों से चाकू की नौक पर समान लूटते हैं,जैसे ही रवि के पास आते हैं,रवि सब दे देता है,लेकिन राधा की चांदी की पायल नहीं देता इसपर लुटेरे उस्से झगड़नें लगते हैं,हाथापाई शुरू हो जाती है,लुटेरों में से एक लुटेरा बच्ची की गर्दन पर चाकू रख देता है,और रवि को रुकने को कहता है,मगर सही वक़्त पर असद भी इस लड़ाई में कूद पड़ता है,बस फ़िर क्या था, दोनों ने मिलकर लुटेरों को खूब सबक सिखाया, और लुटेरों को रेलवे पुलिस के हवाले किया।
कुछ समय के लिए दोनों एक दूसरे को देख कर मुस्कुराए फिर पुरानी बातों के अंधेरे को याद करके दोनों वापिस अपनी जगह हो गए।
सब यात्रियों ने उन दोनों का बहुत-बहुत धन्यवाद दिया।
दोनों अपनी-अपनी सीटों की तरफ जाते हैं और फिर से सीटों पर बैठकर पुरानी यादों में खो जाते हैं।
त्रिपाठी जी को जैसे ही पता लगता है कि रवि रेल के रास्ते जैसलमेर जा रहा है तो वह,जूनागढ़ से जैसलमेर के रास्ते में रेलवे स्टेशन के पास जितने भी उनके मित्रगण हैं उन सब में यह बात पहुंचा देते हैं कि जैसे भी रवि मिले उन्हें सूचना दी जाए,और रवि की फ़ोटो भी सब को भिजवा देते हैं।
बिना बातचीत किए दोनों दोस्त एक दूसरे के सामने बैठे रहते हैं, अचानक राजस्थान के जोधपुर शहर में ट्रेन का इंजन फेल हो जाता है और दोनों को वहां उतरना पड़ता है, दोनों साधन की तलाश में रेलवे स्टेशन से बाहर आते हैं।जोधपुर में ही त्रिपाठी जी की पार्टी के महेंद्र सिंह राठौड़ रहते थे, उनके एक आदमी ने रवि को रेलवे स्टेशन से बाहर निकलते देखा और तुरंत राठौड़ जी को बताया, राठौड़ जी ने अपने आदमियों से कहा की उनके आने तक रवि को रोककर रखें, राठौर जी के आदमी रवि को रोकने के लिए उसकी तरफ बढ़ते हैं और उसे पकड़ लेते हैं ना चाहते हुए भी असद रवि को छुड़वाने लगता है।
बहुत से लोग होने की वजह से उन दोनों को पकड़ लिया जाता है और राठौड़ जी के घर ले जा रहे होतें हैं,की असद
एक आदमी को धक्का देता है,और उसकी पिस्तौल उस पर ही तान देता है,वोह आदमी असद से पिस्तौल छीनता है,और छीना झपटी में गोली उस आदमी को कंधे में लग जाती है,असद घबरा जाता है,दोनों को पकड़ कर राठौड़ जी के घर ले जाया जाता है।

भाग-3(Chapter-3)
राजपूत होने की वजह से राठौड़ जी का पुश्तैनी घर था, जो एक बहुत बड़ी हवेली है, जिसमें चारों तरफ मैदान एक बाड़ा और राठौड़ जी के आदमी होते हैं।
राठौड़ जी के आदमी दोनों को पकड़ लाते हैं,और राठौड़ जी के कहने पर एक कमरे में डाल देते हैं जो चारों तरफ से बंद होता है जिसमें बहुत कम रोशनी आती है और बाहर जाने का सिर्फ एक ही रास्ता होता है।
दोनों बहुत देर तक यूं ही आमने सामने बैठे रहते हैं,असद को याद आता है की किस तरह यहाँ आने से पहले उसने गलती से गोली चला दी थी,और राठौड़ जी के आदमी को कंधे मैं गोली लगी ,उसे वही हादसा याद आता है,जब त्रिपाठी जी से इसी तरह गलती से गोली चली थी,और उसके अब्बा की मौत हुई थी,उसे अपनी गलती महसूस होनें लगती है।
वोह रवि से बहुत कुछ कहना चाहता है,माफी भी मांगना चाहता है,मगर वोह ऐसा करनें से झिझकता है।राठौड़ जी उन दोनों को रात के खाने पर बुलाते हैं,दोनों को खाने की टेबल पर बैठाकर वोह धमकी देते हैं,की अगर दोनों में से किसी नें भी भागनें की कोशिश की तो वो भूल जाएंगे की रवि उनके दोस्त का बेटा है। राठौर जी रवि से असद के बारे में पूछते हैं, रवि उसे अपना दोस्त बताता है।
खाना खाने के बाद उन दोनों को फिर से उसी कमरे में डाल दिया जाता है। असद से रहा नहीं जाता, और रवि से माफी मांग लेता है। दोनों गले मिलकर रोते हैं और अपनी गलतियों पर शर्मिंदगी जताते हैं। और पुरानी बातों को भूला देने का वादा करते हैं।
अब दोनों मिलकर यहां से निकलने की योजना बनाते हैं, रात 12:00 बजे  किसी तरह दोनों दरवाजा खोलने में कामयाब हो जाते हैं और वहां से भाग निकलते हैं। अब दोनों साथ-साथ जोधपुर से एक बस में सवार होकर जैसलमेर के लिए रवाना हो जाते हैं। जैसलमेर में दिए हुए पते पर पहुंचते हैं, एक बड़ी हवेली में जैसे ही अंदर जाते हैं,तो एक सुनी सुनाई आवाज उनके कानों में पड़ती है,यह
 आवाज थी रुद्रा शेट्टी की, वही रूद्रा शेट्टी जिसके भाई अर्जुन शेट्टी को कॉलेज में असद और रवि नें कोमा में पहुंचाया था।
 आज इतने साल बाद भी अर्जुन शेट्टी पूरी तरह से ठीक नही हुआ था।
 अपने भाई का बदला लेने के लिये  रूद्रा शेट्टी कई सालों से दोनों की तलाश में था, कहानी अब तक

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