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शत्रु

Saud Ahmed Khan

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दुश्मन(शत्रु) भाग-1(chapter-1) लेखक-सऊद अहमद कहानी उस वक़्त की है जब भारत आज़ाद बस हुआ ही था| क़ई मुस्लिम परिवार पाकिस्तान गए मगर जिन्होंने हिंदुस्तान को ही अपना वतन माना वो सब यही रुक गए| इसी बीच हिंदुस्तान के गुजरात राज्य में पनप रही थी एक कहानी एक अद्भुत मगर खूबसूरत, खतरनाक मगर दिलेरी से भरपूर थोड़ी दोस्ती ओर दुश्मनी की नींव पर टिकी दो मज़हब ओर रिश्तों को जोड़ने वाली यह कहानी| कहानी शुरू होती है गुजरात के शहर जूनागढ़ से जहां हर कोई मिल जुल कर ओर सुख शांति से अपना जीवन बिता रहा था। इसी माहौल में कई सालों से कच्ची बस्ती सितारा होटल के पास एक बड़ा मकान था, तीन मंज़िल के इस मकान के आस पास सब कच्चे मकानों की कतारें थी,यह मकान था हैदर अली का जिस के एक 5 साल की बेटी उमेरा अली ओर 9 साल का बेटा असद अली था। इन बच्चों की माँ ज़ुबैदा का असद को जन्म देते वक़्त इंतेक़ाल हो चुका था। हैदर अपने बच्चों को दिल ओ जान से चाहता था ओर उनकी खुशी में रज़ामंद रहता था। इलाके में लोग उनसे राय मशवरा लेने आते थे, हैदर अली उनकी परेशानियों को हल करने की कोशिश करता।लोग उसे खान बाबा कहते। उनकी राजनीति में भी अच्छी पैठ थी। इनके पड़ोस में ही शिव मंदिर के पास सेठ मणिशंकर त्रिपाठी का घर था,लोग उन्हें त्रिपाठी जी के नाम से जानते थे,इनके मात्र एक ही औलाद थी रवि त्रिपाठी। भरा पूरा परिवार ओर सबसे छोटा होने के कारण दुलार भी रवि को सबसे ज़्यादा मिलता।त्रिपाठी जी भी राजनीति में अपनी पार्टी के मुख्य दावेदार थे।उनके चर्चे भी बहुत दूर-दूर तक थे। रवि और असद दोनों एक दूसरे के बहुत अच्छे दोस्त थे,रवि मंदिर से प्रसाद लेकर असद को खिलाता तो असद भी पीर बाबा की नियाज़ की खीर असद को खिलाता| इन दोनों की दोस्ती उनके घर वालों को बिल्कुल भी पसंद नहीं थी, आए दिन इसी बात पर रवि और असद के घर में कोई ना कोई झगड़ा होता रहता था, मगर यह दोनों फिर भी मिलते और सभी बातों को नजरअंदाज करते रहते। मंदिर के ठीक पीछे पुजारी जी का घर था, उनके एक मात्र पुत्री राधा थी और कोई उन का सगा संबंधी न था,राधा को बड़े प्रेम से पाला और पढ़ाया मगर राधा तो रवि के प्रेम में दीवानी थी,और रवि भी राधा पर अपनी जान छिडकता था| राधा असद को भाई भी से भी बढ़कर मानती थी,और राखी को असद को राखी बांधती थी, असद भी कहता मेरी एक नही दो बहनें हैं| 

shatru

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