shabd-logo

श्रंगार

hindi articles, stories and books related to Shrangar


मत्तगयंद सवैयासात भगण अंत दो गुरु211 211 211 211, 211 211 211 22साजन छोड़ गए परदेश लगे घर सून मुझे दिन राती।दूर पिया सुध में प्रियसी दिन रात जलूं जस दीपक बाती।कौन कसूर हुआ हमसे प्रिय छोड़ गए सुलगे निज छाती।ब्याह किया खुश थे कितना पर आज कहें मुझको अपघाती।निश्चल प्रेम किया उनसे समझे न पिया दिल की कछु बा

एक शाम के लिए|हसती मुस्कराती दिन को गुजारती|कर काम घर पर, बिस्तर सवांरती|दिन भर की आवाजे तंग करती उसे|दिन में तरह-तरह के ब्यंग भरती वह|लौटती दोपहरी, जीवन के नएपन में|हसता खिलखिलाता बचपन लौट आता|बदल कपडे, दे कटोरा, दूधभात भरा हाथ में|चौखट की माथे पर बैठ, मै कई निवाले खाती|माँ अक्सर बैठ आँगन में, पूस

किताब पढ़िए