एक शाम के लिए|
हसती मुस्कराती दिन को गुजारती|
कर काम घर पर, बिस्तर सवांरती|
दिन भर की आवाजे तंग करती उसे|
दिन में तरह-तरह के ब्यंग भरती वह|
लौटती दोपहरी, जीवन के नएपन में|
हसता खिलखिलाता बचपन लौट आता|
बदल कपडे, दे कटोरा, दूधभात भरा हाथ में|
चौखट की माथे पर बैठ, मै कई निवाले खाती|
माँ अक्सर बैठ आँगन में, पूस की धुप सेंकती|
पढ़ती-पढ़ाती मुझे, स्कूल का काम पूरा कराती|
घर आंगन को झाड़ू से बुहारती कूड़ा फेकती|
ले लोटा पानीभरा अपने मुँख की धूल उतारती|
शाम आने की खुशी में अपने श्रृंगार को सवांरती|
हो खड़ी दर्पण के सामने, अपने आप कों निहारती|
जाकर रसोईघर में बनाती भोजन मेरे लिए|
खिलाती, पिलाती, सुलाती मुझे थपकी देकर |
खुद जागती, जमुहाती शाम को, न जाने किसके
लिए?