मत्तगयंद सवैयासात भगण अंत दो गुरु211 211 211 211, 211 211 211 22साजन छोड़ गए परदेश लगे घर सून मुझे दिन राती।दूर पिया सुध में प्रियसी दिन रात जलूं जस दीपक बाती।कौन कसूर हुआ हमसे प्रिय छोड़ गए सुलगे निज छाती।ब्याह किया खुश थे कितना पर आज कहें मुझको अपघाती।निश्चल प्रेम किया उनसे समझे न पिया दिल की कछु बा
बिना मिठास के फल ही क्या ?बिना रस के काव्य की रचना ही कैसे हो भला.चलो रस भरते है जीवन में, काव्य रचते है रंग बिरंगे से हम.प्रेम रस के रूप अनेकश्रृंगार, वात्सल्य, भक्ति का का होता संचार.कभी मिलन है तो कभी विरह है, श्रृंगार रस.कभी कृष्ण तो कभी राधा है इसका दूसरा नाम.कभी ममत