shabd-logo

श्री कान्त वर्मा के बारे में

श्रीकांत वर्मा (18 सितम्बर 1931- 25 मई 1986) का जन्म बिलासपुर छत्तीसगढ़ में हुआ। वह गीतकार, कथाकार तथा समीक्षक के रूप में जाने जाते हैं। राजनीति से भी जुडे थे तथा राज्यसभा के सदस्य रहे। श्रीकांत वर्मा ने प्रारम्भिक शिक्षा के लिए बिलासपुर के एक अंग्रेज़ी स्कूल में दाखिला करवाया गया, लेकिन वहाँ का वातावरण उन्हें रास नहीं आया। श्रीकांत वर्मा ने उस स्कूल को छोड़ दिया और नगरपालिका के स्कूल से शिक्षा ग्रहण की। मैट्रिक पास कर लेने के बाद उन्होने आगे की शिक्षा के लिए उन्हें इलाहाबाद भेजा गया। वहाँ उन्होंने ‘क्रिश्चियन कॉलेज’ में दाखिला लिया। यहीं से उन्होंने बी.ए. तक की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद में उन्होने प्राइवेट से ‘नागपुर विश्वविद्यालय’ से एम.ए. किया। श्रीकांत जी के पिता वकील थे और परिवार भी समृद्ध था, फिर भी श्रीकांत वर्मा को काफ़ी कठिन दिन देखने पड़े। 1952 तक वे बेकारी झेलते रहे। घर की आर्थिक स्थिति ख़राब होती जा रही थी। अब उन्होंने स्कूल शिक्षक की नौकरी शुरू की। वे परिवार में सबसे बड़े थे, इसलिए परिवार की जिम्मेदारी भी उन पर आ पड़ी। 1954 में उनकी भेंट गजानन माधव ‘मुक्तिबोध’ से हुई। उनकी प्रेरणा से बिलासपुर में श्रीकांत वर्मा ने नवलेखन की पत्रिका ‘नयी दिशा’ का संपादन करना शुरू किया। 1956 से नरेश मेहता के साथ प्रख्यात साहित्यिक पत्रिका ‘कृति’ का दिल्ली से संपादन एवं प्रकाशन कार्य किया। वर्ष 1956 से लेकर 1963 तक का समय उनके लिए संघर्ष का काल था। 1964 में रायपुर की सांसद मिनी माता ने उन्हें दिल्ली के अपने सरकारी आवास में रहने के लिए बुला लिया, जहाँ वे अगले ग्यारह साल तक रहे। दिल्ली में वे पत्रकारिता से भी जुड़े। 1965 से 1977 तक ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ के प्रकाशन समूह से निकलने वाली पत्रिका ‘दिनमान’ में उन्होंने विशेष संवाददाता की हैसियत से काम किया। १९५७ में प्रकाशित 'भटका मेघ', १९६७

no-certificate
अभी तक कोई सर्टिफिकेट नहीं मिला है|

श्री कान्त वर्मा की पुस्तकें

श्री कान्त वर्मा  की प्रसिद्ध  कविताएँ

श्री कान्त वर्मा की प्रसिद्ध कविताएँ

श्रीकान्त वर्मा की कविताओं में कवि के अनुभव आज के जीवित संस्कारों से सीधे टकरा रहे हैं। कवि को मालूम है कि राजनीति के घुसपैठियों ने शब्दावली बदल-बदल कर लम्बे-चौड़े वादों से जनता को बहकाया है और जनता मूर्खों की तरह उस तरफ आशा लगाए बैठी है। श्रीकान्त

5 पाठक
82 रचनाएँ

निःशुल्क

श्री कान्त वर्मा  की प्रसिद्ध  कविताएँ

श्री कान्त वर्मा की प्रसिद्ध कविताएँ

श्रीकान्त वर्मा की कविताओं में कवि के अनुभव आज के जीवित संस्कारों से सीधे टकरा रहे हैं। कवि को मालूम है कि राजनीति के घुसपैठियों ने शब्दावली बदल-बदल कर लम्बे-चौड़े वादों से जनता को बहकाया है और जनता मूर्खों की तरह उस तरफ आशा लगाए बैठी है। श्रीकान्त

5 पाठक
82 रचनाएँ

निःशुल्क

श्री कान्त वर्मा के लेख

नगर निवासी

20 अगस्त 2022
0
0

रोज़ शाम  सड़कों पर  फटे  हुए उड़ते  सुबह के  अख़बार! 

वसंतसेना

20 अगस्त 2022
0
0

सीढ़ियाँ चढ़ रही है  वसंतसेना  अभी तुम न समझोगी  वसंतसेना  अभी तुम युवा हो  सीढ़ियाँ समाप्त नहीं  होती  उन्नति की हों  अथवा  अवनति की  आगमन की हों   या  प्रस्थान की  अथवा  अवसान की 

बाबर और समरकंद

20 अगस्त 2022
0
0

बाबर समरकंद के रास्ते पर है  समरकंद बाबर के रास्ते पर  बाबर हर थोड़ी दूर पर  पूछता है,  समरकंद अब कितनी दूर है?  बाबर को कोई जवाब नहीं मिलता।  ऊपर चिलचिलाती हुई धूप है  नीचे धूल है,  बाबर

जलसाघर

20 अगस्त 2022
0
0

यही सोचते हुए गुज़र रहा हूँ मैं कि गुज़र गई बग़ल से गोली दनाक से। राहजनी है या क्रांति? जो भी हो, मुझको गुज़रना ही रहा है शेष। देश नक़्शे में देखता रहा हूँ हर साल नक़्शा बदलता है कच्छ हो या

दिनारंभ

20 अगस्त 2022
0
0

शहरों के छतों में  ह-ल-च-ल  हुईं  मक्खियाँ  बैठ गईं  मँ-ड़-रा  अपनी-अपनी  मेज़ों  पर। 

जो युवा था

20 अगस्त 2022
0
0

लौटकर सब आएँगे  सिर्फ़ वह नहीं  जो युवा था युवावस्था लौटकर नहीं आती।  अगर आया भी तो  वही नहीं होगा।  पके बाल, झुर्रियाँ,  ज़रा,  थकान  वह बूढ़ा हो चुका होगा।  रास्ते में  आदमी का बूढ़ा

मणिकर्णिका का डोम

20 अगस्त 2022
0
0

डोम मणिकर्णिका से अक्सर कहता है,  दु:खी मत होओ  मणिकर्णिका  दु:ख तुम्हें शोभा नहीं देता  ऐसे भी श्मशान हैं  जहाँ एक भी शव नहीं आता  आता भी है,  तो गंगा में  नहलाया नहीं जाता 

वह मेरी नियति थी

20 अगस्त 2022
0
0

कई बार मैं उससे ऊबा  और  नहीं—जानता—हूँ—किस ओर  चला गया।  कई बार मैंने संकल्प किया।  कई बार  मैंने अपने को  विश्वास दिलाने की कोशिश की हममें से हरेक  संपूर्ण है।  कई बार मैंने निश्चय किया 

एक और ढंग

20 अगस्त 2022
0
0

भागकर अकेलेपन से अपने  तुममें मैं गया।  सुविधा के कई वर्ष  तुममें व्यतीत किए।  कैसे?  कुछ स्मरण नहीं।  मैं और तुम! अपनी दिनचर्या के  पृष्ठ पर  अंकित थे  एक संयुक्ताक्षर!  क्या कहूँ! लिपि की

स्वरों का समर्पण

20 अगस्त 2022
0
0

डबडब अँधेरे में, समय की नदी में अपने-अपने दिये सिरा दो; शायद कोई दिया क्षितिज तक जा, सूरज बन जाए!! हरसिंगार जैसे यदि चुए कहीं तारे, अगर कहीं शीश झुका बैठे हों मेड़ों पर पंथी पथहारे, अगर किसी

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए