वो मेरा रूठ जाना,
तेरा वो मनाना।
टीचर से डांट लगवा कर,
तेरा पागलों की तरह खिल-खिलाना।
बात-बात पर मेरा मजाक बनाना।
अलग -अलग नामों से चिढाना।
मुझे दुखी देखकर,
तेरा वो उदास हो जाना।
किसी से झगड़ा होने पर,
मुझसे पहले जाकर भिड जाना।
खुद मजाक बनाये तो ठीक।
कोई और ये करे,
तो उसे जी भर के सुनाना।
मेरा मूड ठीक करने के लिए,
तेरा वो बेसुरा गुनगुनाना।
मुझे परेशान करने के लिए,
किसी और के साथ बैठ जाना।
हर झंझट में मुझे जबरदस्ती फंसाना।
तेरी हरकतों से मेरा वो मुँह बनाना।
मुझे फिजूल की बातें बताना।
ना सुनने पर तेरा वो चिल्लाना।
हर चीज़ मुझे याद दिलाकर,
तेरा खुद भूल जाना।
बेमतलब मेरे साथ आना-जाना।
मुझे पागलों की तरह हर जगह घुमाना।
मुझे आखरी दिन खुद से रुखसत होते देख,
वो तेरी आँखों का भर आना।
फिर मेरी तरफ देखकर,
तेरा वो उदास मुस्कुराना।
कितनी बेफिकर जिन्दगी थी ना वो,
मगर उतनी ही कम भी।
धीरे-धीरे रेत की तरह
हाथों से फिसल गया,
सुनहरा सा वो स्कूल का जमाना।।
-संध्या यादव "साही"