न जाने किसकी नजर,मेरे मुस्कुराते हुए चेहरे को लग गई ।
जिंदगी अब गम की बरसात हो गई है ।
दिन लगते हैं दहकते कोयले की तरह,
बर्फ सी सर्द रात हो गई है ।
जिन लोगों से बातें खत्म नहीं होती थीं,
उनसे अब बात ही नहीं होती।
जिस रात हम सोएँ सुकून से,
अब वैसी रात ही नहीं होती।
दिल में एक दर्द हर वक़्त रहता है,
जैसे कोई खंजर अटक गया है ।
खुशियों के रास्तों से निकालकर,
वक़्त मुझे गम की खाई में पटक गया है ।
लोगों को मेरी तकलीफ मजाक लगती है ।
कितनी जल्दी बदल गई जिंदगी,
महज इत्तेफ़ाक़ लगती है ।
जीना अब जीना नहीं लगता,
लगता है कि उम्र का बोझ ढो रहे हैं ।
बेवजह ही आँखें नम करने वाले हम,
बिना आँसुओं के रो रहे हैं ।
न जाने कैसे अंधेरे में खोते जा रहे हैं ।
न चाहते हुए भी हम खामोश होते जा रहे हैं ।
अब जिंदगी तो जिंदगी है मेरी।
भले ही जहर हो,
पीना तो पड़ेगा ही।
लोगों के लिए ना सही
मुझे अपने लिए ही सही,
जीना तो पड़ेगा ही।।
- संध्या यादव "साही"