सूत के धागों की तरह,उलझे होते हैं कुछ रिश्ते।
जिन्हें न हम छोड़ सकते हैं,
और न ही तोड़ सकते हैं ।
उलझनें ही उलझनें,
होती हैं सब तरफ।
ये रिश्ते न आम होते हैं,
और ना ही खास होते हैं ।
ये अपने आप में ही,
उलझा हुआ एहसास होते हैं ।
कुछ रिश्ते जिनमें,
दिलों की दूरियाँ बढ़ जाती हैं
लेकिन फिर भी पास होते हैं ।
कभी-कभी जी करता है,
कि तोड़ दें ये बंधन ।
मगर मजबूर होते हैं ।
दिखावे के लिए ही सही,
साथ रहना पड़ता है ।
भले ही दिल दूर होते हैं ।
ये रिश्तों की उलझनें,
होती ही कुछ ऐसी हैं ।
जिन्हें चाहकर भी हम,
सुलझा नहीं सकते।
पास रहने को जी नहीं करता,
और दूर जा नहीं सकते।
इन्हें जितना सुलझाओ,
ये उतने ही और उलझ जाते हैं ।
ये बिल्कुल वक़्त और
रेत की तरह होते हैं ।
लगता है कि मुट्ठी में आ गए,
मगर फिसल जाते हैं ।
कभी समझौता करते हैं ।
कभी माफी के मोती पिरोते हैं ।
कभी-कभी लोग
स्वाभिमान गिरवी रखकर भी,
रिश्ते सँजोते हैं ।
मगर सोचती हूँ
कि वो रिश्ता ही क्या??
जहाँ समझ नहीं समझौता हो।
जहाँ कोई बड़ा,कोई छोटा है ।
जहाँ प्रेम नहीं सौदा है ।
जिसका आधार स्वार्थ का पौधा हो।
अगर किसी रिश्ते के धागे,
ज्यादा उलझ जाएँ और उलझनें
सिर्फ दर्द दें तो तोड़ दो।
जिसे कद्र नहीं तुम्हारी,
उसे छोड़ दो।
मत सोचो कि कोई और नहीं मिलेगा,
बस जिंदगी को नया मोड दो।
किसी उलझन में,
इतना मत उलझो
कि जिंदगी ही उलझ जाए।
और कभी किसी रिश्ते को,
इतनी अहमियत मत दो,
कि वो न रहे तो तुम्हारी
दुनिया ही बिखर जाए।
- संध्या यादव "साही"