आज पुरानी यादों की गुल्लक,
हाथों से छूट गई ।
बहुत कोशिश की बचाने की,
मगर फूट गई ।
बहुत कुछ बाहर निकल पड़ा ।
कुछ सपने थे,
जो बचपन में अधूरे रह गए थे ।
कुछ अधूरे अरमान थे,
जो आँसुओं में बह गए थे ।
कुछ ख्वाहिशें थीं।
कुछ पुरानी तस्वीरें थीं।
कुछ पुराने पन्नों पर,
बेतरतीब खिंची लकीरें थीं।
कुछ पुराने दोस्तों की
हँसी कैद थी।
कुछ पुराने वक़्त की
मस्ती कैद थी।
कुछ नासमझी थी।
कुछ नादानी थीं।
कुछ जिदें बिखरी पड़ी थीं,
जो बचपन में करने की ठानी थी ।
कुछ खुशियों के लम्हे थे।
कुछ गम भी थे।
कुछ चोटें मिलीं,
कुछ मरहम भी थे।
कुछ लोग मिले
जो उस वक़्त खास थे।
कुछ से आज भी
मुलाकात होती है ।
कुछ सिर्फ एहसास थे।
कुछ अपनों के दिए जख्म थे।
कुछ गैरों की लगाई दवा भी थी।
कुछ लोगों के श्राप थे,
कुछ लोगों की दुआ भी थी।
कुछ लोग थे,
जिन्होने गिराना चाहा था।
कुछ लोग थे,
जिन्होने सहारा दिया था ।
कुछ लोग थे,
जिन्होने हर मुमकिन मदद की थी।
कुछ लोग थे,
जिन्होने जवाब करारा दिया था ।
कुछ मधुर यादें थीं।
कुछ कड़वी बातें थीं।
कुछ गमों के तोहफे थे,
कुछ खुशियों की सौगातें थीं।
कुछ लोगों के बदलते
चेहरे कैद थे।
कुछ चुभती हुई नजरों के
पहरे कैद थे।
आज वक़्त ने गुजारे हुए वक़्त से,
सामना करा दिया ।
आँखों में नमी थी,
और होठों पर मुस्कुराहट।
लगता था जिससे जीतकर आई हूँ,
उस वक़्त ने मुझे फिर हरा दिया।
समेट ली मैने सारी यादें।
उन्हें फिर से एक डिब्बे में कैद कर दिया।
अजीब सा खालीपन था,
जैसे मैने अपने ही एक हिस्से को
कैद कर दिया।
फिर किसी वक़्त
इन यादों की रिहाई होगी।
फिर मेरे किसी हिस्से की,
मुझसे ही जुदाई होगी।।
-संध्या यादव "साही"