मेरे गम को कभी पहचान नहीं पाओगे।
मुझे देख लोगे हजारों दफा,
कभी जान नहीं पाओगे।
दर्द का गहरा समंदर है ।
मुस्कान चेहरे पर है,
सारा गम अन्दर है ।
आँखों में अश्क़ नहीं आते अब,
शायद थक चुके हैं ।
जो मेरे अपने थे कभी,
सब सपने बन चुके हैं ।
लोग जो सांत्वना देते हैं,
अन्दर ही अन्दर मेरी बेवसी पर हँसते हैं ।
लगता है उनको अंजान हूँ मैं,
मुझे मुखौटे के पीछे भी चेहरे दिखते हैं ।
मैं खामोश अंजान नहीं हूँ ।
अभी शांत हूँ, बेजान नहीं हूँ ।
मेरी क्षमताओं से जमाना वाक़िफ़ नहीं है ।
और खुद बखान करुँ,
मैं वो इंसान नहीं हूँ ।
मुझे अब तक नहीं समझा कोई,
अब समझाना भी नहीं है ।
अपनापन सब दिखावे का होता है,
मुझे कोई अपना बनाना भी नहीं है ।
जिन रास्तों पर ठोकर मिली हैं मुझे,
अब उन रास्तों पर जाना भी नहीं है ।
जिंदगी में जिन गलतियों से,
मेरा नुकसान हुआ है ।
अब उन गलतियों को दोहराना भी नहीं है ।
जो सबक जख्म देकर मुझे वक़्त ने सिखाए हैं,
अब उन सबकों को भुलाना भी नहीं है ।
जिस किरदार में मुझे तोहमत मिली है,
अब उस किरदार में वापस आना भी नहीं है ।
तकलीफ को हँसकर सहने की आदत हो चुकी है,
किसी के आगे आँसू बहाना भी नहीं है ।
जिनको मेरी मौजूदगी-ग़ैरमौजूदगी
से फर्क नहीं पड़ता ।
उनकी महफिलों में नजर आना भी नहीं है ।
दिल मे न सही सबके दिमाग में घर है मेरा,
मुझे किसी के दिल में बसना-बसाना भी नहीं है ।
मैं खुद को बहुत पसंद हूँ,
अब किसी और को पसंद आना भी नहीं है ।
और जलने वालो! थोड़ा दूर रहा करो मुझसे।
मेरी तरक्की से जल गए ,
तो कोई मरहम काम आना भी नहीं है ।।
-संध्या यादव "साही"