मेरे सपने हर रोज,मेरे दरवाजे पर दस्तक देते हैं ।
कहीं और दिल लगाएँ,
तो लगाएँ कैसे??
ये ख्वाहिशों का तूफान,
थमने का नाम नहीं लेता।
कुछ और सोचें,
तो सोच पाएँ कैसे??
जिम्मेदारियाँ रात भर सोने नहीं देतीं।
कोई और ख्वाब सजाएँ,
तो सजाएँ कैसे??
कई तानों,कई बातों ने,
दिल में छेद किए हैं।
उन बातों को भूलें,
तो भूल पाएँ कैसे??
जिस-जिसने दिल दुखाया है,
हर वो मंजर आँखों के,
सामने घूमता है ।
हम खुद को समझाना भी चाहें,
तो समझाएँ कैसे??
मेरे लहजे बहुत सच्चे और साफ़ हैं,
इसीलिए अक्सर लोग मेरे खिलाफ हैं।
इन दिनों हम खुद से भी रुठे हैं,
किसी और को मनाएँ कैसे??
मेरी शख्सियत,
मुझे झुकने की इजाजत नहीं देती।
किसी की हुकूमत के आगे सिर झुकाएँ,
तो झुकाएँ कैसे?
मेरी ख्वाहिशें कुछ और चाहने की,
मुझे मोहलत नहीं देतीं।
कोई चाहत दिल में सजाएँ कैसे??
मेरी मंजिल मेरे पहुंचने का,
इंतजार कर रही है ।
कहीं दो पल भी ठहरें,
तो ठहर पाएँ कैसे??
माँ-बाप के बहुत से कर्ज हैं मुझपर,
खाली हाथ घर जाएँ,
तो जाएँ कैसे??
मेरे जिद्दी मिजाज से वाक़िफ़ है जमाना।
हम हारना भी चाहें,
तो हार जाएँ कैसे???
-संध्या यादव "साही"