श्याम रंग
खग वृंद करें छंद, पवन है मंद मंद
आज मेरी वाटिका तरंग में नहाई है
पुष्प संग झूम रही, लिए मन मकरंद
भ्रमर का नाद सुन कली मुसकाई है
मन की उमंग देख, परवश अंग देख
आज मेरी कविता प्रथम लजाई है|
टेसुओं में पड़े रंग, नयी रश्मियों के संग
सप्तरंग फागुन ने ली अंगडाई है
कोयल है कूक रही, पत्र-पत्र उन्मत्त
बड़, आम