मैं ज़िन्दगी का साथ अकेले निभा गया। रोका जिसे भी राह में वो भागता गया।।जिसके लिए भी राह में रुक कर चला था मैं।वो शख़्स साथ छोड़कर आगे चला गया।।मुझको लगा की ढूँढने आएंगे सब मुझे।क़दमों के मैं निशान वहाँ छोड़ता गया।।आवारगी फ़िजूल में लेकर गई मुझे।बढ़ते गए क़दम भी जिधर रास्ता गया।।मुफ़लिस कोई दिखाई दिया उससे राह में।लेकर उधार ग़म,मैं ख़ुशी बाँटता गया।। सुधीर बमोला