ऐ हमदम...✒️मन के मनके, मन के सारे, राज गगन सा खोल रहे हैंअंधकार के आच्छादन में, छिप जाने से क्या हमदम..?शोणित रवि की प्रखर लालिमानभ-वलयों पर तैर रही है,प्रातःकालिक छवि दुर्लभ हैशकल चाँद की, गैर नहीं है।किंतु, चंद ये अर्थ चंद को, स्वतः निरूपित करने होंगेश्रुतियों के अभिव्यंजन की अब, प्रथा नहीं है ऐ ह
लहरों जैसे बह जाना✒️मुझको भी सिखला दो सरिता, लहरों जैसे बह जानाबहते - बहते अनुरागरहित, रत्नाकर में रह जाना।बड़े पराये लगते हैंस्पर्श अँधेरी रातों मेंघुटनयुक्त आभासित होलहराती सी बातों मेंजब तरंग की बलखातीशोभित, शील उमंगों कोक्रूर किनारे छूते हैंकोमल, श्वेत तमंगों कोबंद करो अब और दिखावे, तटबंधों का ढह
लहरों जैसे बह जाना ✒️मुझको भी सिखला दो सरिता, लहरों जैसे बह जानाबहते - बहते अनुरागरहित, रत्नाकर में रह जाना।बड़े पराये लगते हैंस्पर्श अँधेरी रातों मेंघुटनयुक्त आभासित होलहराती सी बातों मेंजब तरंग की बलखातीशोभित, शील उमंगों कोक्रूर किनारे छूते हैंकोमल, श्वेत तमंगों कोबंद करो अब और दिखावे, तटबं
चाँद की दीवानगी-१✒️छिप गई है चाँदनी भी, रात के आगोश में यूँओ सितारों! भान है क्या, चाँद की दीवानगी का?मस्त अपनी ही लगन में, मस्तियों का वह मुसाफ़िरओस की संदिग्ध चादर, ओढ़कर पथ पर बढ़ा है।बादलों के गुप्तचर हैं, राह में जालें बिछाए,चाँद, टेढ़ा है ज़रा सा, और थोड़ा नकचढ़ा है।है रचा इतिहास जिसने, द्वैध संबंधों
नासा ने सर्वप्रथम 1969 में चंद्रमा पर अपना यान भेजा था और इस यान के माध्यम से ही चंद्रमा पर पहला व्यक्ति उत्तर पाया था। लेकिन नासा ने 1972 के बाद कोई भी व्यक्ति को चंद्रमा पर नहीं उतारा है। नासा के वैज्ञानिकों का कहना है कि चांद पर व्यक्ति को भेजने और वहां व्यक्ति उतारने
चलो अब चाँद से मिलनेछत पर चाँदनी शरमा रही है ख़्वाबों के सुंदर नगर में रात पूनम की बारात यादों की ला रही है। चाँद की ज़ेबाई सुकूं-ए-दिल लाई रंग-रूप बदलकर आ गयी बैरन तन्हाई रूठने-मनाने पलकों की गली से एक शोख़
हिन्दूधर्म में व्रत -त्यौहारों की महिमा एवं महत्त्व अत्यधिक है । आज (8अक्टूबर) सुहागिनोंका त्यौहार करवा चौथ है । करवा चौथ का व्रत कार्तिक मासके कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन मनाया जाता है । अपने पति की लंबी आयु के लिएमहिलाएं इस दिन व्रत रखती हैं और अपने चंद्रम
गज़ल चाँद बोला चाँदनी, चौथा पहर होने को है. चल समेटें बिस्तरे वक्ते सहर होने को है. चल यहाँ से दूर चलते हैं सनम माहे-जबीं. इस जमीं पर अब न अपना तो गुजर होने को है. है रिजर्वेशन अजल, हर सम्त जिसकी चाह है. ऐसा लगता है कि किस्सा मुख़्तसर होने को है. गर सियासत ने न समझा दर्द जनता का तो फिर. हा