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स्वदेश में नही रहना

24 नवम्बर 2022

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वैसे तो ब्रजेश अमेरिका में सॉफ्टवेयर इंजीनियर है, और उसे अपने देश आने का मन तो करता है लेकिन सिर्फ घूमने के लिए और अपने रिश्तेदारों से मिलने के लिए।
उसके पास भी उसका अपना परिवार भी तो है , उसकी जिम्मेदारियां भी तो हैं सिर पर। 
एक दिन यूँही जब ब्रजेश अपने देश, अपने घर लौटा तो उसके पापा ने कहा कि
बेटा तुम एक काम क्यों नहीं करते कि जो काम अमेरिका में करते हो, वो अपने देश मे ही कर लिया करो, इससे स्वदेशी भी बने रहोगे और हर काम भी होता रहेगा। वैसे भी गांधी जी भी हमेशा विदेश में ही नहीं रहे। 
अपने देश के लिए जीये और हमेशा उसी के लिए सब कुछ करते रहे।
इस पर ब्रजेश बोला ... क्या पापा आप भी ना ...
ऐसी बातें करते हो। 
भूल गए वो दिन .. जब कितनी मुश्किल हो जाती थी स्कूल की फीस भरने में। .. वो भी सरकारी स्कूल में।
औऱ तो और .... नीच जाति का होना, आज के दौर में, हमारे देश में वरदान बन गया है। 
जो चाहो करो, कोई बोलने वाला नहीं है, 
सरकार भी पहले उन्ही की सुनती है।
जितना चाहे पढ़े, जो भी डिग्री लेना हो ले सकते हैं, उन्हें क्या खून पसीने की पूरी कमाई फीस के नाम पर देना।
फीस के नाम पर चंद रुपयों के देने के बदले वजीफे के नाम पर ढेर सारा रुपया मिल जाता है यहां ..
ऐसा देश है मेरा....
कहने को तो कोई भेदभाव नहीं है यहां ...
लेकिन वो भी कागजों में।
असलियत में तो ख़ुद सरकार ही भेदभाव पालती रहती है, अपनी कुर्सी के लिए।
चंद झूठे वोटों के लिए वो आपस में ही भेदभाव करती रहती है और आपस में लड़ाती रहती है।
वैसे भी अंग्रेजों के सिद्धांतों पर ही तो चलेंगी ये सरकारें...
फूट डालो....राज करो ...
जिस देश में एक धर्म के लोगों में ही भेदभाव किया जाता हो, ऐसा देश सिर्फ अपनी नज़र में महान हो सकता है।
जिस देश में योग्यता - अयोग्यता, अमीरी - गरीबी और भी बहुत सारी बातें। जाति और धर्म के आधार पर निर्धारित की जाती हों, ऐसा देश कितना विकास करेगा। वो तो भगवान जाने।
इस पर ब्रजेश के पापा ने कहा ....
नहीं बेटा ऐसा नहीं है, हमारा देश बहुत महान है। बड़े बड़े सिद्धांत खोजने वाले, बड़ी उपलब्धि हासिल करने वाले भारतीय ही तो रहे हैं।
इस पर ब्रजेश को थोड़ा गुस्सा आ गया।
वो बोला... पापा बेशक़ वो सब भारतीय ही हैं लेकिन भारत में रहकर उनकी काबिलियत का आकलन उतना नहीं हो पापा, जितना होना चाहिये।
इन्हीं सब बातों में उलझे उलझे ब्रजेश का अमेरिका जाने का समय आ गया और ब्रजेश अपनी जीवन संगिनी और अपने बेटे के साथ अमेरिका लौट गया।
ब्रजेश के पापा ने कितना भी स्वदेश लौटने के लिए समझाया हो लेकिन वो सब व्यर्थ ही रहा।
शायद ब्रजेश के अन्दर पुरानी बातें घर कर गई हों, जो उसके साथ बचपन में और आगे की पढ़ाई करने के समय जो घटनाएं घटित हुई। वो हमेशा के लिए स्वदेश में रहने के लिए आने के पक्ष में नहीं था।
उसके मानस पटल पर बड़ी गहराई के साथ वो बातें बैठ चुकी थीं, जो कथनी और करनी में अंतर करती थी।
किस तरह देश का संविधान, देश का कानून, अपने लचीलेपन की वजह से , अपने देशवासियों के दिल और दिमाग में एक रेखा सी खींच रहे थे। ......
ब्रजेश इन्हीं सब बातों की वजह से हमेशा के लिए अपने स्वदेश नहीं लौटना चाहता था।
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