गरीब की बेटी
रोज जीती है रोज मरती है ,
हज़ारो जाम दुःख के पीती है ,
खुद मे खुद सिमट सी जाती है ,
इक गरीब की बेटी !
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घर भी रोता है ,दर भी रोता है ,
जमीन- ओ आसमा रोता है ,
जब भी मुस्करा के चलती है,
इक गरीब की बेटी !
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