व्याधि क्षमता (IMMUNITY)
'व्याधिक्षमत्व व्याधिबल विरोधत्वं व्याध्युत्पाद प्रतिबन्धक त्वमितितावत'
शरीर मे उत्पन हुई व्याधि के बल का विरोध कर ( शरीर को फिर से निरोग बनाना ) तथा शरीर मे व्याधि उत्पन हो ही नहीं इस प्रकार उस का प्रतिबन्धन करना इस को व्याधि क्षमता कहते है !
विमर्श :-- प्रणियों के शरीर मे जन्म से ही विधमान रोगो से लड़ने वाली सामान्य व्याधि क्षमता को नैसर्गिक व्याधि क्षमता ( Natural Immunity) कहते है ! उचित आहार-विहार के पालन से ये क्षमता बढ़ती है तथा अनुचित आहार-विहार करने से ये घटती है ! व्यक्ति के आहार-विहार ,रहन-सहन और पथ्य-अपथ्य पालन के आधार पर यह व्याधि क्षमता अलग-अलग लोगो मे भिन्न-भिन्न होती है ! इस लिए कुछ व्यक्ति तो उत्तम व्याधि क्षमता वाले होते है तो कुछ व्यक्ति क्षीण व्याधि क्षमता वाले होते है !
चरक सहिंता मे कहा गया है :---
'शरीराणि चतिस्भुलान्यतिकृशान्यनिविष्टमांस शोणिता स्थिनि दुर्बलान्य सात्म्याहारो पचितान्यल्पाहारण्यल्प तत्त्वानी च्य भवन्त्यव्याधिसहानी विपरीतानिपुनव्यार्धीसहानी '
अर्थात जिन के शरीर अतिस्थूल हो,अति कृष हो,जिन के शरीर मे मांस ,रक्त ,अस्थि आदि सुसगठित न हो,जो दुर्लब हो,जीन का शरीर अहितकर आहार से पला हो,जिन का आहार अल्प हो,और जो अल्पस्त्तव हीन मनोबल हो, ऐसे व्यक्ति रोग के आक्रमण को रोकने मे असमर्थ होते है ! इस के विपरीत जिस व्यक्ति का शरीर सबल हो,जीन का शरीर सुसंगठित हो,जिन का पालन हितकर आहार से हुआ हो,जो पूर्ण आहार लेने वाले हो उच्च मनोबल वाले हो वे रोग के आक्रमण रोकने मे समर्थ होते है ! व्याधि क्षमता जब बलवान होती है तब शरीर प्रया निरोगी रहता है ! अगर रोग हो भी जय तो जल्दी ठीक हो जाता है इस कारण ऐसे लोगो की आयु दीर्ध होती है ! इस के विपरीत जिन मे व्याधि क्षमता कम हो उन का शरीर बार बार रोगग्रस्त होता रहता है और रोग जल्दी ठीक नहीं होता ! इसी कारण ऐसे लोगो की आयु अल्प होती है !
व्याधि क्षमता के कुच्छ प्रकार होते है ! कुच्छ संक्रामक रोगो के होने पर शरीर मे उन रोगो के प्रति उत्त्पन होने वाली व्याधि क्षमता को रोगार्जित व्याधि क्षमता (Acqried Immunity) कहते है !यह कुच्छ मे अल्पकालीन,कुच्छ मे दीर्धकालीन और कुच्छ मे आजीवन रहती है जैसे चेचक ! वेसिनेशन द्वारा वशिष्ट व्याधि क्षमता उत्त्पन की जाती है उसे कृतिम व्याधि क्षमता (Artificial Immunity) कहते है