मानो तो सब है अपना मानो तो सब पराया,
स्वारथ के इस जहां में दौलत से मोह माया,
रिश्ते हुए बजारू धन की है खूब माया,
बापू से पूछे बेटा तूने है क्या बनाया।
घर में हुए जो दाखिल बीवी ने भी सुनाया,
बोलो हे मेरे प्रीतम कितना तूने कमाया,
खर्चे लगी सुनाने,चर्चे हमारे गायब,
शादी की वह मोहब्बत,हुई है अब पराया।
बेटा कमाने वाला,वालिद से पूछता है,
तुमने हमारी खातिर,बोलो है क्या बनाया,
बेटे की बात सुनकर,नैनों से अश्रु आया,
जिनकी खुशी की खातिर,रातों को सो न पाया,
दिन भर किया मजूरी खाने को नून खाया।
जीवन किया निछावर,थी जिससे मोहमाया,
ओ अपने पूछते हैं,तूने है क्या बनाया,
आयी जरा अवस्था इंद्रिय ने साथ छोड़ा,
अपना जीने था समझा,उन सब ने मुंह है मोड़ा।
जिनके लिए ही मैंने ईश्वर को था भुलाया,
ओ आज इस व्यथा पर मेरा प्रेम है भुलाया,
कोई नहीं है अपना,कोई नहीं पराया,
स्वारथ के इस जहां में दौलत से मोह माया।।