मैं क्यों लिखता हूंं. ..। लिखने से जीवन या समाज में क्या वाकई कुछ बदलता है..। छात्र जीवन से अब तक ढेर सारे पन्ने काले किए। लेकिन निजी जिंदगी या जनजीवन में क्या बदला। मैने इस पर बहुत सोचा। लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। लेकिन मैं फिर भी लिखता हूं ...। जब कभी हृदय की पीड़ा ओवर फ्लो होने को होती है... पन्नों पर शब्द अपने -आप उतरने लगते हैं। लिखना शायद मेरे जीवन में पेन कीलर के समान है।