"रोहन तुम आगे आ कर बैठो । कितनी बार समझाया है तुम्हें, अनिल के साथ मत बैठा करो । ये तुम्हें भी अपनी संगत में ढाल कर मूर्ख बना देगा ।" सर जी ने रोहन को डांटते हुए आगे बैठने का आदेश दिया ।
"लेकिन सर अनिल को मेरी ज़रूरत है । वो मुझसे कल के लेसन के बारे में पूछ रहा है ।"
"अरे ये बैल बुद्धि है । कितना भी समझाओ इसके पल्ले...।" सर जी की आधी बात उनके मुंह के अंदर दबे गुटखे की पीक में ही घुल कर रह गयी ।
"क्या बात है सर । किस बात पर इतना भड़क रहे हैं ।" सर जी ये भूल गये थे कि ये समय प्रिंसीपल सर के राउंड मारने का होता है ।
"गुड मॉर्निंग सर ।" सर जी के साथ सभी बच्चों ने भी प्रिंसीपल सर को विश किया ।
"गुड मॉर्निंग बच्चों । सिट डाउन । आपने बताया नहीं कि किस बात पर आप इतना भड़क रहे थे ।
"सर, ये अनिल, इसका ध्यान कभी क्लासरूम में नहीं रहता । अभी भी मैं पढ़ा रहा था और ये जनाब खिड़की से बाहर झांक रहे थे ।" सर जी ने अपनी बात ना बता कर अनिल पर इल्ज़ाम लगा दिया ।
"क्यों अनिल ? क्या ये सच है ?"
"न..." अनिल कुछ बोलता इससे पहले रोहन ने उसका हाथ दबा दिया । अनिल समझ गया कि वो क्या कहना चाहता है । हालांकि अनिल को ये बात जमी नहीं लेकिन उसे रोहन पर यकीन था कि वो कभी भी उसे गलत सलाह नहीं देगा ।
"सॉरी सर । अब ऐसा नहीं होगा ।" प्रिंसीपल सर शांत स्वभाव के थे । वो बच्चों की बड़ी से बड़ी गलती पर भी उन्हें डांटते नहीं थे ।
"ये गलत बात है अनिल । अगर ऐसा करोगे तो फिर अच्छे से कैसे पढ़ पाओगे । तुम्हें पता है ना पढ़ाई कितनी ज़रूरी है । मुझे तुम पर यकीन है कि आगे से तुम ऐसी गलती नहीं करोगे । बोलो, मैं तुम पर यकीन कर सकता हूं ना ?"
"जी सर ।" अनिल ने अनमने मन से कहा क्योंकि उसे उस गलती के लिए सॉरी बोलना पड़ रहा था जो उसने की ही नहीं थी ।
अनिल और रोहन हमेशा एक साथ ही लंच करते थे और जब वो दोनों एक साथ ना होते तो रोहन को पता होता कि वो आखिर कहां होगा । आज भी ऐसा ही था । रोहन वहां पहुंच गया जहां अनिल अकेला बैठा था ।
"यहां क्यों बैठा है ? लंच नहीं करना क्या ?"
"नहीं करना । मुझे भूख नहीं । तुम जाओ लंच करो अपना ।" अनिल ने नाराज़गी जताते हुए कहा ।
"अरे, मुझ पर या खाने पर क्यों भड़कना भाई । इन आलू के पराठों की क्या ही गलती । ये तो तुमसे दोस्ती करने आए हैं । साथ में दही और चटनी को भी लाए हैं ।" रोहन ने अनिल को शांत करने की कोशिश की । उसे पता है ऐसा खाना अनिल की कमज़ोरी है । मगर समस्या ये थी कि आज ये खाना भी अनिल के गुस्से को कम नहीं कर पाया ।
"नहीं मन है यार ।"
"मगर क्यों ?"
"यार बिना मतलब के डांट सुननी पड़ती है मुझे । और ऊपर से तू मुझे कभी भी सच नहीं बोलने देता ।"
"तेरे सच बोलने से क्या होगा ?"
"श्याम सर का झूठ पकड़ा जाएगा ।"
"उसके बाद ? वो टीचर हैं, उन्हें वारनिंग मिलेगी और उसके बाद वो अपना सारा गुस्सा तुम पर निकालने लगेंगे । और उनका गुस्सा उनकी अभी की हरकतों से बहुत ज़्यादा परेशान करेगा तुझे ।" रोहन ने अनिल को समझाया ।
"तो क्या करूं ? उनकी बातें सुनता रहूं ? हां माना कि मैं दिमाग से तुम्हारे जितना तेज नहीं हूं मगर मैं कोशिश करता हूं । मेरी क्या गलती जो मुझे बातें देर से समझ आती हैं ।" अनिल अपनी बात कहते हुए रुआंसा हो गया ।
"किसने कहा तुम्हारा दिमाग तेज नहीं । हम सबका दिमाग एक जैसा ही होता है भाई । बस पढ़ने के तरीके अलग अलग होते हैं । और ऐसा नहीं कि तुम कुछ नहीं करोगे । तुम वो करोगे जिसका श्याम सर को अंदाजा भी नहीं होगा ।"
"मैं ऐसा क्या कर सकता हूं ?"
"इस बार मेरी जगह क्लास में तुम फर्स्ट आ सकते हो ।" रोहन की बात सुन कर अनिल बेहोश होते होते बचा ।
"भाई बहलाने का ये मतलब नहीं कि तुम मुझे ऐसे सपने दिखाओ जो सच से इतनी दूर हो जितना धरती से आकाश ।"
"मैं सपने नहीं, रास्ता दिखा रहा हूं मेरे भाई । वो रास्ता जो तुम्हारे मन को संतुष्टि देगा ।"
"मगर ऐसा होगा कैसे ?"
"मैं हूं ना । सब हो जाएगा । बस तुम इतना करना कि कुछ भी हो जाए शांत रहना । श्याम सर कुछ भी करें कोई जवाब मत देना । और अब से सिर्फ़ अपने ऐम पर फोकस करना है ।"
"वो सब तो ठीक है मगर ये आवाज़ कैसी है ?" अनिल की बात पर रोहन ने चारों तरफ देखा ।
"कैसी आवाज़ ?"
"अरे ध्यान से सुनो ना कोई कह रहा है अनिल मुझे खा लो । मैं चटनी और दही के साथ लंच बॉक्स में बंद हूं ।" अनिल ने इतना कहते हुए रोहन से डिब्बा छीन लिया और दोनों हंसते हंसते लंच करने लगे ।
उस दिन के बाद अनिल पढ़ाई पर कुछ ज़्यादा ही ध्यान देने लगा । अगर उसका ध्यान पढ़ाई से भटकता तो रोहन उसे फिर से रास्ते पर ले आता । श्याम सर अनिल के पीछे पड़े रहते मगर उसने उनकी हरकतों पर ध्यान देना बंद कर दिया था ।
अनिल के पापा एक साधारण सी दुकान चलाते थे । वो ट्यूशन लगाकर बेकार में उन्हें परेशान नहीं करना चाहता था । उसने सोचा था कि फाइनल एग्ज़ाम से कुछ महीने पहले ट्यूशन पढ़ लेगा मगर श्याम सर को ये बिल्कुल पसंद नहीं था । वहीं रोहन के पापा की अच्छी पहुंच थी । इसीलिए वो उसे स्पेशल ट्यूशन देने उसके घर जाते और उसके पापा से अपने बहुत तरह के काम करवा लेते । उन्होंने ने तो रोहन के पापा से कई बार शिकायत भी की थी अनिल को लेकर । वो रोहन को अनिल से दूर रखना चाहते थे ।
समय बीतता रहा । सब कुछ हमेशा की तरह ही चलता रहा । अनिल की पढ़ाई अच्छी होती जा रही थी लेकिन रोहन को डर था कि श्याम सर एग्ज़ाम में उसके साथ कुछ ना कुछ गलत ज़रूर करेंगे लेकिन इसका भी हल उसने खोज लिया था ।
एक शाम रोहन को पढ़ाते हुए श्याम सर और उसके पापा की भेंट हो गई ।
"नमस्कार सर ।"
"नमस्कार आनंद बाबू ।"
"तो कैसी है रोहन की तैयारी ?"
"हमेशा की तरह ए-वन सर । मेरे होते हुए टेंशन किस बात की ? रोहन इस बार भी फर्स्ट ही आएगा ।" श्याम सर ने मक्खन का तड़का मारते हुए अपनी बात कही ।
"सर मुझे टेंशन भी तो इसी बात की है ।"
"फर्स्ट आने पर टेंशन ? मैं समझा नहीं आनंद बाबू ।"
"पहले तो रोहन के फर्स्ट आने पर खुशी होती थी लेकिन अब ये सोच कर चिंतित हूं कि क्या ऐसा कोई स्टूडेंट नहीं है रोहन की क्लास में जो उसके बराबर या उससे ज़्यादा इंटेलिजेंट हो ? इसे उम्र भर इसी स्कूल में तो रहना नहीं है । अगर इसे कोई कंपटीशन नहीं मिला तो इसे ये भ्रम हो जाएगा कि इसे सब कुछ आता है और ये कभी फेल नहीं हो सकता । सोच रहा हूं बोर्ड से पहले इसका स्कूल चेंज करवा दूं । शायद तब इसे कोई टफ कंपटीशन मिले । आप क्या कहते हैं ?" आनंद के स्कूल चेंज करने की बात ने श्याम सर को डरा दिया ।
"आप बेकार में टेंशन ले रहे हैं सर । ये तो उसके हार्डवर्क और मेरे पढ़ाने का कमाल है जो वो हर साल फर्स्ट आता है ।"
"सर आप तो इसकी क्लास के शायद 40 बच्चों को पढ़ाते हैं फिर वो सब टॉप क्यों नहीं करते ?" आनंद बाबू के सवाल ने श्याम सर के सिर को पसीने की बूंदों से भर दिया ।
"रोहन जितनी मेहनत कोई नहीं करता ना इसलिए ।"
"मगर सर मैं तो अनिल को देखता हूं वो लड़का इसके साथ बहुत मेहनत कर रहा है ।" श्याम सर अनिल के बारे में सुन कर चौंक गए ।
"आनंद बाबू आपको मैंने उस लड़के के बारे में बताया था आप फिर भी उसे रोहन के साथ दोस्ती बढ़ाने दे रहे हैं ।"
श्याम सर की बात पर आनंद बाबू ने मुस्कुराते हुए कहा "ऐसा है सर, मैं जिस पद पर बैठा हूं ना वहां से मैंने एक बात सीखी है और वो ये कि किसी की कही हुई बात पर कभी विश्वास ना करो । मुझे जो दिखता है मैं उसी के हिसाब से फैसला करता हूं । और मैंने देखा कि अनिल जितनी मेहनत कर रहा है उतनी मेहनत शायद रोहन भी नहीं कर पाता ।"
"आप गलत समझ रहे हैं सर ।" श्याम सर की आवाज़ में डर और घबराहट की मात्रा बढ़ गई थी ।
"तो मैं चाहता हूं कि आप इस एग्ज़ाम में मुझे सही तरह से समझाएं । या फिर मुझे ये डिस्कशन प्रिंसीपल सर के साथ करना पड़ेगा और ऐसा हुआ तो आप्के लिए अच्छा नहीं होगा ।" प्रिंसीपल का नाम सुनते ही श्याम सर कांप गए ।
"नहीं सर उन्हें बीच में क्यों लाना । आप जो कहेंगे वो हो जाएगा ।"
"मैं कौन होता हूं कुछ कहने वाला सर । मैं तो बस यही चाहता हूं कि आप सभी बच्चों को बराबर आंख से देखें ।"
"बिल्कुल सर । आप भरोसा रखें ऐसा ही होगा ।"
"जी वो तो एग्ज़ाम के बाद दिख ही जाएगा और ऐसा ना हुआ तो वैसा होगा जैसा आपको पसंद नहीं आएगा ।" आनंद बाबू की बात जलेबी की तरह टेढ़ी तो थी मगर उतनी मीठी नहीं । इस बात की कड़वाहट ने श्याम सर को बेचैन कर दिया । इसके बाद श्याम सर वहां से चले गए ।
रोहन के पापा इसके कमरे में गए और मुस्कुराते हुए उसका सर सहलाने लगे । रोहन भी उनकी तरफ देख कर मुस्कुरा दिया । आनंद बाबू की आंखों में रोहन के लिए इतना गर्व था जितना कभी उसके फर्स्ट आने पर भी नहीं हुआ था । रोहन ने ही ये सार प्लान सेट किया था । उसने अपने पापा को श्याम सर और अनिल के बीच की सारी बात समझा दी थी ।
कुछ महीनों बाद ही फाइनल एग्ज़ाम हुए । श्याम सर को आनंद बाबू ने उनका वादा फिर से याद दिला दिया । ना चाहते हुए भी श्याम सर को अनिल समेत सभी विद्यार्थियों को एक नज़र से देखना पड़ा ।
रिजल्ट का दिन भी आ ही गया । रोहन इस बार फिर क्लास में फर्स्ट आया था । उसके रिजल्ट से पहले वो खुश होते थे लेकिन इस बार उनकी रूह कांप गई थी । लेकिन रोहन वाकई में फर्स्ट आने वाला स्टूडेंट ही था । उसकी समझ सभी बच्चों से बहुत आगे की थी ।
सेकेंड आई थी मुक्ता, जो मेहनत करने के बावजूद हर साल फिफ्थ पोजीशन से नीचे आती थी । श्याम सर से कोचिंग पढ़ने वाले अधिकतर बच्चों के मार्कस पहले के मुकाबले बहुत ज़्यादा कम थे । इन सब बातों से बड़ा आश्चर्य था अनिल का थर्ड आना । अनिल बहुत खुश था लेकिन फिर उसे कुछ याद आया और वो थोड़ा उदास हो गया ।
"कांग्रेचुलेशन्स मेरे दोस्त ।" रोहन ने अनिल को गले लगाते हुए कहा ।
"थैंक यू दोस्त ।" बुझे स्वर में अनिल बोला ।
"इतना थका हुआ थैंक्स ?"
"हां यार मैं तुझसे किया वादा पूरा नहीं कर सका ।"
"तूने कर तो दिया ।"
"बट मैं फर्स्ट नहीं आया ।"
"तू अपनी पोजीशन से खुश है ?"
"बहुत ज़्यादा यार । ये किसी सपने के सच हो जाने से कम नहीं है ।"
"बस यही तो मैं चाहता था । मैं हमेशा अपनी पहुंच से ऊपर का एम सेट करता हूं । जिससे कि मेरी मेहनत का लेवल बढ़ सके । मैंने तेरे साथ भी यही किया । तुझे फर्स्ट आने जितनी मेहनत करने को कहा और देख भाई तू थर्ड आ गया । अब तू फर्स्ट से बस दो कदम दूर है । मुझे यकीन है बोर्ड एग्ज़ाम तक तू फर्स्ट के लायक हो जाएगा ।" रोहन ने अनिल को समझाया ।
"सच में तू ग्रेट है यार ।"
"हां वो तो मैं हूं ।" रोहन की इस बात पर दोनों हंसने लगे ।
आज शाम ही अनिल रोहन के घर गया । रोहन के पापा ने उसे गले लगा कर उसे शुभकामनाएं दीं । उसकी मम्मी ने दोनों के लिए खूब टेस्टी खाना बनाया । खाना खाने के बाद अनिल ने रोहन को एक गिफ्ट दिया । जब रोहन ने पैक खोला तो पाया कि उसमें एक खूबसूरत पेन है । अनिल ने इस पेन पर अपनी पूरी गुल्लक कुर्बान कर दी थी ।
"ये तो बहुत महंगा पेन है । मुझे ये क्यों दिया ।" रोहन ने हैरान हो कर पूछा ।
"रोहन तू मेरा दोस्त बाद में है, पहले मेरा टीचर है । तू ना होता तो मैं कभी इतना पढ़ नहीं पाता । सोचा था तुझे ये टीचर्स डे पर दूंगा पर मैं इतने दिन वेट नहीं कर सकता । और ये महंगा नहीं है मेरे भाई । सबसे महंगी है तेरी दोस्ती जिसने मुझे इतना अमीर बना दिया ।"
नौवीं के बच्चे के मुंह से इतने भारी शब्द सुन कर रोहन के मम्मी पापा हैरान थे लेकिन अनिल और रोहन के इस प्यार ने उनकी आंखों के कोर गीले कर दिए । रोहन ने अनिल को गले लगा लिया ।
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मैंने एक बार एक स्वीपर से सीखा था कि काम चाहे जो भी हो उसे इतनी शिद्दत से करो कि लोग पूछने पर मजबूर हो जाएं कि इतना शानदार काम किसने किया ।
शिक्षक सिर्फ़ वही नहीं जो स्कूल में पढ़ाते हैं । बल्कि हमारी ज़िंदगी में आने वाला हर शख्स शिक्षक है जो कोई ना कोई सबक सिखा कर जाता है । शिक्षक दिवस पर आप आब्के लिए यही प्रार्थना रहेगी कि आपको हमेशा अच्छे शिक्षक मिलें और आप हमेशा अच्छा सीखते रहें ।
धीरज झा