मारीच संग मिल रावण ने मायाजाल बिछाया था
स्वर्ण मृग का भेष बदल सीता को ललचाया था
राम के क्षत होने का उसने स्वांग रचाया था
विप्र बन छल से सीता को लक्ष्मण-रेखा पार कराया था
वर्तमान में भी रावण जैसे कपटी पाए जाते है
स्वर्ण मृग और साधु बन सीता को हर ले जाते है
इन कपटियो के अंत हेतु अब प्रत्यंचा को कसना है
अब तुम्हे सीता नहीं दुर्गा स्वरुप बनना है।
पांडवो की मति भ्रष्ट कर उसको दांव पे लगवाया था
भरी सभा में दुर्योधन ने केशो से खिचवाया था
जंघा पर बैठाने का पाप मन में लाया था
दुश्शासन से बोल उसका चीर हरण करवाया था
वर्तमान में भी दुर्योधन जैसे विक्षिप्त पाए जाते है
मर्यादाएं लाँघ कर द्रौपदियो का चरित्र हनन कर जाते है
इन विक्षिप्तों के नाश हेतु अब गदा-गांडीव को धरना है
अब तुम्हे द्रौपदी नहीं चंडी स्वरुप बनना है।
बनना है अन्नपूर्णा तुम्हे और रौद्रमुखी भी बनना है
चण्ड-मुंडो के नाश हेतु तुमको चामुंडा भी बनना है
बनना है जगदम्बा तुम्हे और काल-जयी भी बनना है
अरुणासुरो के अंत हेतु तुमको भ्रामरी भी बनना है
बनना है लक्ष्मी तुम्हे और नारायणी भी बनना है
रक्तबीजो के संहार हेतु तुमको काली भी बनना है।
तुमको काली भी बनना है।