*मुझे पंछी बन उड़ जाने दो*
मुझे पंछी बन उड़ जाने दो
हवा के संग बह जाने दो
आसमान के इन रंगों मे
मुझे भी अब रंग जाने दो
मुझे पंछी बन उड़ जाने दो
डाल डाल पर बैठ-बैठ कर
संगीत मधुर अब गाने दो
फूलो की खुशबू जो महके
उस महक मे अब खो जाने दो
मुझे पंछी बन उड़ जाने दो
उड़ती रहूं मैं गगन तले जब
सुबह की लाली पढ़ती रहे तब
ओस की बूंदे टपक-टपक कर
पंखो पर अब पड़ जाने दो
मुझे पंछी बन उड़ जाने दो
ना कोई रोके ना कोई टोके
ना कोई धर्म ना जात पूछे
पंछी की तरह पंख फैला कर
दूर तलक तक अब जाने दो
मुझे पंछी बन उड़ जाने दो।
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संजय कुमार यादव (निर्मल )दिल्ली