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हुलसी के तुलसी

23 जनवरी 2022

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(हुलसी के तुलसी )

 
हिंदी साहित्य का   प्रत्येक  काल, अपने विशिष्ट, अनमोल  रत्न  रूपी  कवियों से  युगों उपरांत भी अपनी अमिट आभा से  सभी को आलोकित कर रहा है ।
प्रत्येक कवि की अपनी विशिष्ट प्रतिभा है और सभी के शब्दों और भावों में ऐसा आकर्षण है कि पाठक उसकी गहराई में ही समा जाता है ।
तुलसी के राम की कथा  के अमृत पान के लिए जहां देवता भी लालायित रहते हैं ,उस कथा के प्रवाह में साधारण पाठक अपने को स्वयं प्रवाहित होता देख स्वयं को चिरकाल के लिए आनंद रस में भिगो लेता है। 
रामचरितमानस में शिव पार्वती संवाद की हर पंक्ति, क्या हर शब्द का चुंबक हमें अपने में ही समाहित कर लेता है। असंख्य बार पढ़ने पर भी प्यास कभी नहीं बुझती ।
पार्वती का शिव के साथ विवाह प्रसंग जहां हम सब को आमंत्रित करता है ,वही पार्वती की मां मैना का पुत्री के प्रति स्नेह वर्णन हम सबकी आंखें नम कर देता है ।
तुलसी की रामचरितमानस का पाठ करना और स्वाध्याय कर मनन करना स्वयं में ही विलक्षण है ।
तुलसी का नाम उन कवियों में सर्वोपरि है जिन्होंने कविता को जन-जन की कविता बनाया ।
अपने को अल्पज्ञ कह रामचरितमानस के अनमोल मोती हमारे लिए शब्दों में पिरो देना एक विलक्षण काम है ,सदियां बीती जा रही है पर पाठक आज भी  रामचरितमानस  को पढ़कर अपने को आनंद रस में निमग्न पाते हैं  ।
तुलसीदास ने अपनी रामचरितमानस की कथा के माध्यम से जनता के बीच राम भक्ति का प्रचार किया, गुरु रामानंद के शिष्य गोस्वामी तुलसीदास ने ,दशरथ पुत्र मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का शक्ति ,शील, सौंदर्य से परिपूर्ण रामचरितमानस महाकाव्य की रचना की ।
राम भक्ति की  पावन मंदाकिनी है, जो अनेकलोगों के कलुषित मन की कलुस्ता को दूर करने वाली सिद्ध हुई। तुलसीदास द्वारा स्थापित लोक आदर्श और रामराज की महिमा की महान कल्पना करना, भारतीय समाज को ही नहीं संपूर्ण विश्व के लिए एक अनमोल ज्योति है ।
इस महाकाव्य में जीवन का पूर्ण प्रतिबिम्ब है।
रचना कौशल ,प्रबंध पटुता ,भाव प्रवणता रस, रीति , अलंकार ,छंद आदि सभी दृष्टि से यह उत्कृष्ट काव्य है ।
तुलसी की रामचरितमानस लोकमंगल की साधना है। तुलसीदास ने मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचंद्र के लोक संग्रह चरित्र को काव्य का विषय बना कर भारतीय संस्कृति समाज और साहित्य को शक्ति प्रदान की है।
जहां तुलसी ने अलौकिक अलौकिकता का समावेश अपनी कविता में पिरोया है ,वहीं जब सुंदरकांड में मरुत उनचास कहकर अपने  भौगोलिक ज्ञान का भी परिचय दिया है। संजीवनी बूटी का प्रकरण और मार्ग की दूरी का माप  उनके भौगोलिक ज्ञान का भी परिचायक है  ।
आज जो हम अपने मानकों से दूरी माप रहे हैं ,वही हमारी धरती को पवित्र करने वाले  विभिन्न क्षेत्रों के  विभिन्न विषयों का सटीक ज्ञान अपने भीतर समाए तुलसी ने हमें अपनी कविता के माध्यम से आनंदित करने के लिए इस धरती पर जन्म लिया  और हमें पवित्र किया।
 राम जब  सीता को वन वन में खोजते हुए लोगों से पूछ रहे थे तब सभी अपनी अपनी दिव्य दृष्टि से सरोवरों 1और पर्वतों को बाकायदा दूरी के माप के साथ बताते हुए बीच-बीच में मिलने वालों  से मिलने वाली जानकारी प्राप्त करने के लिए निर्देश देते हैं ।
 यह तुलसी की राजनीति ज्ञान का भी परिचायक है। प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण मानस ,हमारे मानस को प्रभावित करता है ।मानस का हर चरण चित्त पर छा जाता है और तुलसी के प्रति मेरी श्रद्धा को प्रतिष्ठित करता है। रामचरितमानस की एक-एक पंक्ति या यूं कहें एक-एक शब्द अमूल्य है ।
 राम की शक्ति और स्वरूप का ,विहंगम स्वरूप चित्रित करने वाले ,तुलसी राम के शत्रु रावण के शक्ति, वैभव और सम्पन्नता का भी वर्णन करते हैं ।
 तुलसी के काव्य में रस, छंद और अलंकारों का जो समायोजन है ,वह अन्यत्र दुर्लभ है ।तुलसी की पूर्ण कविता पढ़ी नहीं जाती, अपितु गाई जाती है ।
 तुलसी के पूर्ण साहित्य में जहां राग है वही विराग भी है। जहां तुलसी की कविता में सुख प्रफुल्लित होता है ,वहां दुख भी तुलसी के हाथों काव्य में आकर अपने को धन्य समझता होगा ।
 तुलसी की कविता में जीव जंतुओं के साथ प्रकृति भी चिरयौवन प्राप्त कर निखर उठती है ।
 तुलसी की कविता को कविता की आधारशिला कहना अतिशयोक्ति ना होगा ।
 मानस में संस्कृत श्लोकों से प्रारंभ करना जहां तुलसी को भाषा का मर्मज्ञ घोषित करता है ,वही लोकाचार से परिपूर्ण अवधी भाषा में लेखन कर राम की कथा को जन-जन तक पहुंचाना तुलसी की दूरदर्शिता का द्योतक है ।रामचरितमानस के साथ साथ तुलसी के अन्य ग्रंथ भी रस, छंद अलंकार के लिए साक्षात  श्रृंगार ही तो है ।
 कवितावली में सुशोभित तुलसी की पंक्तियां 

 पुर तें निकसी रघुवीर वधू ,धरी -धीर दये मग में डग द्वै ।झलकी भरि भाल कनी जल की, पुट सुख गए मधुराधर वै।
 
जब सीता पति अपने पति श्री राम भगवान राम नहीं के साथ बनवास के लिए अभी नगर से निकली हुई है और सीता जी के द्वारा अब और कितनी दूर चल कर पढ़ कुटीर बनाने का पूछना सीता की सुकुमारता को देख कुलभूषण श्रीराम की आंखों को अश्रुपूरित कर देते हैं ।इस पंक्ति के भाव का सौंदर्य मुझे आह्लादित कर देता है, और मेरा चित्त तुलसी के काव्य  के सौंदर्य के प्रति पूर्णतया समर्पित हो जाता है ।तुलसी की विनय पत्रिका ,गीतावली ,दोहावली आदि के साथ तुलसी के संपूर्ण ग्रंथ भारतीय संस्कृति के अनमोल रत्न है।

मेरे कुछ शब्द मेरे प्रिय कवि तुलसी के लिए सादर ।।

जया शर्मा (प्रियंवदा )
Diwa Shanker Saraswat

Diwa Shanker Saraswat

उत्तम वैचारिक लेख

23 जनवरी 2022

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रचनाएँ
हम और हमारे अहसास
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हमारे आंगन की शान रही चारपाई ,शान चारपाई से नहीं उस पर बैठी हमारी अम्माजी से बढ़ती थी। 95 साल की उम्र में भी अम्माजी को दिनभर बिस्तर पर लेटे पड़े रहना पसंद ना था ,और ना ही दिन भर अपने बिस्तर बिछे रहने देती । अरे हां सच में आज की तरह दिनभर बिस्तर बिछे नहीं रहते थे और ना ही बिस्तरों पर सुबह दरे तक पड़े रहने का रिवाज था अपने आप सभी लोग सवेरे जल्दी उठ जाते। आजकल के बच्चों को स्कूल के लिए जगाने का रिवाज ना था ,और ना ही माता-पिता को उनके आगे पीछे नाचने की जरूरत होती ,प्यारे हम भी थे पर आजकल की तरह आकर्षण का केंद्र नहीं थे । सब लोग उठे बिस्तर तह कर के साइड में रखतेें और सभी चारपाई एक साइड में लगा दी जाती, हां बैठक जिसको आज का नाम बैठक नहीं ड्राइंग रूम कहते हैं जहां कलात्मक चीजों के साथ खुद भी मैनर्स फॉलो करते हुए कलात्मक बन कर बैठना पड़ता है ,मजाल क्या बैड या सोफे के कवर हिल जाएं,तुरंत मैडम के प्रवचन शुरू याद है, मिस्टर ढिल्लन का ड्राइंग रूम, एक एक चीज की कितने करीने से सजी हुई थी,  एक एक चीज लाजवाब और एन्टिक, हमारे यहां तो घर मेन्टेन करने का सलीका ही नहीं । अरे मैं भी कहां पहुंच गई, तो हमारे यहां बैठक में हीं पलंग बिछा होता ,और कुर्सियां पड़ी होती ,लोग हमसे मिलने आते थे हमारे ड्राइंग रूम के शोपीस से नहीं । अम्मा जी की चारपाई पर हम सभी बच्चे जगह बनाने की कोशिश करते ,हमारी यह कोशिश ही अम्माजी को चरम सुख प्रदान करती। अम्माजी बीचोंबीच आंगन में चारपाई पर बैठती ,जहां से सब उनकी निगाह में रहते, पर कभी किसी को रोकना टोकना उनका स्वभाव ना रहा, और सभी उनके पास आकर बैठने की कोशिश किए रहते । अम्माजी की चारपाई के पास चौकियां मूड्ढी पड़ी रहतीं, जमीन पर चटाई बिछाकर बैठने में हमारे घुटने जवाब ना देते । अम्माजी का स्वभाव सबको सुनने का था, उस समय बड़ों का कहना मानना अनिवार्यता होती और सबके लिए होती। आज भी अम्मा जी को याद करती हूं तो अम्मा जी को आंगन में चारपाई पर बैठे-बैठे महसूस करती हूं ।कभी-कभी जब फोटोग्राफर किसी खास मौके पर बुलाया जाता तो फैमिली फोटोग्राफ के लिए अम्माजी को कुर्सी पर बैठाकर अम्मा जी के दोनों तरफ दो दो करके उनके चारों बेटे और पीछे बहू खड़ी हो जातीं, औरआगे फर्श पर हम सब उनके पोते पोती बैठ जाते । यह होता हमारा फोटो सेशन, ना कोई सजने संवरने का तामझाम, ना ही रीटेक का झंझट । आज

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