shabd-logo

हम और हमारे एस्ट्रोनॉट बजरंग बली

23 अक्टूबर 2021

23 बार देखा गया 23
कहानी एस्ट्रोनॉट की हो तो अपने इष्ट को याद करके बडा गर्व अनुभव हो रहा है ।मेरे इष्ट बजरंग बली से भी बडा कोई एस्ट्रोनॉट होगा जिन्होंने सम्पूर्ण अन्तरिक्ष को क्रीडांगन बना रक्खा है तेजस्वी सूर्य को मधुर फल समझ कर मुँह में रक्ख सम्पूर्ण जगत् को अंधकारमय करके  स्रष्टि विचलित करदी ,गतिवेग और शक्ति इतनी प्रबल की सहस्र योजन दूर सुमेरू पर्वत पर संजीवनी लेने भेजा ,खोजने पर कुछ समझ नहीं आया तो पर्वत ही उठा लाये ।भक्तों के सुमिरन करने पर तत्काल सहायक बन रूके काम को संवार दे ।भगवान श्री राम के दूत  हमारे रक्षक बजरंग बली की महिमा अद्वितीय है ।
हमारे वैदिक संस्कृति में बहुत से ऐसे पात्र हैं जो सम्पूर्ण बम्हांड में कहीं भी आ जा सकते थे रावण द्वारा अपहरण की गई सीता का पता देने वाले जटायु के भाई सम्पाती तो सूरज तक पहुंचने के चक्कर में अपने पंख जलवा बैठे ।
सभी अन्तरिक्ष के ग्रहों के नाम देवताओं के नाम पर हैं जो प्रतीक हैं वह ग्रह उन देवताओं के साम्राज्य रहे हैं ।हमारी वैदिक संस्कृति अक्षुण्ण गौरव से सुसज्जित है ।

4
रचनाएँ
हम और हमारे अहसास
0.0
हमारे आंगन की शान रही चारपाई ,शान चारपाई से नहीं उस पर बैठी हमारी अम्माजी से बढ़ती थी। 95 साल की उम्र में भी अम्माजी को दिनभर बिस्तर पर लेटे पड़े रहना पसंद ना था ,और ना ही दिन भर अपने बिस्तर बिछे रहने देती । अरे हां सच में आज की तरह दिनभर बिस्तर बिछे नहीं रहते थे और ना ही बिस्तरों पर सुबह दरे तक पड़े रहने का रिवाज था अपने आप सभी लोग सवेरे जल्दी उठ जाते। आजकल के बच्चों को स्कूल के लिए जगाने का रिवाज ना था ,और ना ही माता-पिता को उनके आगे पीछे नाचने की जरूरत होती ,प्यारे हम भी थे पर आजकल की तरह आकर्षण का केंद्र नहीं थे । सब लोग उठे बिस्तर तह कर के साइड में रखतेें और सभी चारपाई एक साइड में लगा दी जाती, हां बैठक जिसको आज का नाम बैठक नहीं ड्राइंग रूम कहते हैं जहां कलात्मक चीजों के साथ खुद भी मैनर्स फॉलो करते हुए कलात्मक बन कर बैठना पड़ता है ,मजाल क्या बैड या सोफे के कवर हिल जाएं,तुरंत मैडम के प्रवचन शुरू याद है, मिस्टर ढिल्लन का ड्राइंग रूम, एक एक चीज की कितने करीने से सजी हुई थी,  एक एक चीज लाजवाब और एन्टिक, हमारे यहां तो घर मेन्टेन करने का सलीका ही नहीं । अरे मैं भी कहां पहुंच गई, तो हमारे यहां बैठक में हीं पलंग बिछा होता ,और कुर्सियां पड़ी होती ,लोग हमसे मिलने आते थे हमारे ड्राइंग रूम के शोपीस से नहीं । अम्मा जी की चारपाई पर हम सभी बच्चे जगह बनाने की कोशिश करते ,हमारी यह कोशिश ही अम्माजी को चरम सुख प्रदान करती। अम्माजी बीचोंबीच आंगन में चारपाई पर बैठती ,जहां से सब उनकी निगाह में रहते, पर कभी किसी को रोकना टोकना उनका स्वभाव ना रहा, और सभी उनके पास आकर बैठने की कोशिश किए रहते । अम्माजी की चारपाई के पास चौकियां मूड्ढी पड़ी रहतीं, जमीन पर चटाई बिछाकर बैठने में हमारे घुटने जवाब ना देते । अम्माजी का स्वभाव सबको सुनने का था, उस समय बड़ों का कहना मानना अनिवार्यता होती और सबके लिए होती। आज भी अम्मा जी को याद करती हूं तो अम्मा जी को आंगन में चारपाई पर बैठे-बैठे महसूस करती हूं ।कभी-कभी जब फोटोग्राफर किसी खास मौके पर बुलाया जाता तो फैमिली फोटोग्राफ के लिए अम्माजी को कुर्सी पर बैठाकर अम्मा जी के दोनों तरफ दो दो करके उनके चारों बेटे और पीछे बहू खड़ी हो जातीं, औरआगे फर्श पर हम सब उनके पोते पोती बैठ जाते । यह होता हमारा फोटो सेशन, ना कोई सजने संवरने का तामझाम, ना ही रीटेक का झंझट । आज

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए