बीसवीं सदी से आए हुए हम ,जब 21वीं सदी के लोगों को नववर्ष मनाते देखते हैं, तो बहुत कुछ क्या सब कुछ नया नया ही पाते हैं ,।
बच्चे बच्चे के हाथ में फोन की संस्कृति पुरानी तो नहीं। हमारी सदी में दिल के उद्गार होठों के माध्यम से अपने लोगों के बीच मिठास घोलते थे ,अब होंठ चुप है अब फोन के कीबोर्ड पर चलती अंगुलियां बोलती हैं ,और आपसी संबंधों को औपचारिकता के तराजू में तोल देती हैं ।
चरण स्पर्श ,प्रणाम ,नमस्ते शब्द दुर्लभ हो चुके हैं ,महानगरों में पैर छूने के नाम पर घुटने तक अंगुलियां पहुंच जाएं तो अपने को धन्य समझने में कतई देर नहीं करनी चाहिए।
सुबह उठने के फायदे और कारण हमारी अम्मा जी की बातों में विराजते थे ,सुबह नहा कर बड़ों को सूरज को जल चढ़ाने की परंपरा बच्चे बखूबी निभाते किसी बच्चे की उत्सुकता बेमतलब प्रश्न करने की ना होती, बड़े कर रहे हैं तो हमें करना ही है ,यह सोच सभी धार्मिक परंपराओं को हम सींचते रहते थे ।
नए साल के पहले दिन हम जितनी जल्दी उठेंगे ,तो साल भर जल्दी उठेंगे ,अम्माजी की इस बात को हमारा पूरा परिवार फॉलो करता ,आजकल नए साल का स्वागत आधी रात तक चली न्यू ईयर पार्टी के द्वारा होता है और आधी रात तक न्यू ईयर की वेलकम पार्टी होती है ,तो इन पार्टी कार्यकर्ताओं का ब्रह्म मुहूर्त तो दोपहर में अंगड़ाई तोड़ते हुए गुड मॉर्निंग बोलते हुए होता है, फिर सबसे पहले फोन का चरण स्पर्श कर न्यू ईयर विश करने का आदान-प्रदान मैसेज से शुरू होता है ।
घर में कुछ आलतू फालतू लोग हैं जिनके पास फोन नहीं है या किचन संभालने में ही अपने को सौभाग्यशाली समझती रहती है ,वह इनके चेहरे पर फोन पर आई मंद सी मुस्कुराहट देख अनुमान लगाती है कि जरूर कोई फनी मैसेज है । मम्मीयों को वीडियो कॉल करता देख नई पीढ़ी मुफ्त की सलाह दे देती है मम्मी को , ईयर फोन लगाने की।
एक हमारे जमाने में व्हाट्सएप तो था नहीं व्हाट्सएप के बारे में सपने में भी ना सोचा था, फोन ही हमारी कल्पना में ना था ,कभी सोचा ही ना था कि कभी फोन हमारे हाथ में होगा ,हम इसको लिए इधर-उधर इतराते में घूमेंगे ,।
हमारे जमाने में न्यू ईयर ग्रीटिंग कार्ड होते थे, हफ्ते भर पहले कार्ड खरीद कर टीचर्स के नाम लिखकर ,और कुछ भी छोटा सा सम्मान भरा संदेश लिखकर टीचर्स को कार्ड देना बहुत सुखद अनुभूति वाला होता ।
आपस में हम बच्चे भी अपने खास दोस्तों को ग्रीटिंग कार्ड दे कर खुशी का इजहार करते ।
विंटर वेकेशन जैसी छुट्टियों की जरूरत हमारी पीढ़ी के बच्चों को ना थी ,क्योंकि हम मजबूत जो थे ।ए सी का नाम ना सुना था मैंने ।
घर में बैठक में लगा कूलर गौरव की बात होती, गर्मियों में तेज धूप परेशान ना करती, हाथ के पंखों से भी गर्मी दूर हो जाती ।
घर में रखा फ्रिज पड़ोसियों को भी ठंडा पानी पिला देता। कितनी मनमोहक है वह सुनहरी याद जब 1984 में हमारे घर टीवी आया था ,उससे पहले बहुत बड़े-बड़े एंटीना होते थे घर की छत से गिन सकते थे शहर के टीवी ,1984 में हमारे शहर शाहजहॉनपुर में दूरदर्शन का टावर लगा ,अधिकतर लोगों ने टीवी खरीदें छोटे छोटे एन्टीने वाले।नई पीढ़ी के पास उसकी कल्पना भी नहीं ,यहां तो घर-घर लगी डिस को ही पहचानते हैं।
दूरदर्शन टावर लगने पर सबके घर ब्लैक एंड व्हाइट टीवी आए ,पहले टीवी केबल शाम 5:00 बजे से रात 11:30 बजे तक ही आता था ,
बुधवार और शुक्रवार को रात 8:00 बजे आधा घंटा वाला चित्रहार का इंतजार हम सबको रहता गुरूवार और रविवार को शाम की पिक्चर देखने के लिए पूरा मोहल्ला इकट्ठा होता था हमारे आंगन में ,हम बहुत छोटे थे पर उन सब का उन सब का उल्लास आज भी आनन्दित करता है।
आज जब एक एक घर में चार चार टीवी हो ,घर के लोगों की मनोरंजन की पसंद ही एक न हो तो ,ऐसी पीढ़ी से उस मोहल्ला संस्कृति की बात करना अपने आप अपना उपहास उड़ाना सरीखा है