मन
का हो तो अच्छा और न हो तो और भी अच्छा? क्या यह सुन कर दिल में हज़ारों सवाल नहीं आते.
आखिर मन की बात पूरा होना कौन नहीं चाहता . जब मन की कोई बात पूरी होती है तोह हम आन्नदित होते है प्रसन्नचित होते हैं.
लेकिन जब मन का न हो तब भी क्या हमें ऐसा अनुभव होता है. नहीं कदापि नहीं. तब यह क्यों की मन का न हो