shabd-logo

वर दे वीणावादिनी शब्द-शक्ति संकल्प

13 मई 2016

555 बार देखा गया 555
featured image

वर दे वीणावादिनी शब्द-शक्ति संकल्प;

देना मुक्तक काव्य के नूतन,नवल विकल्प,

ज्ञानसुधार रसखान हो भाव-भूमि आलोक,

अक्षर-अक्षर मनुजता बुने मुक्तिका कल्प॥ 


प्रथम नमन माँ दीप्ति के चरणों में'अनुराग';

ज्ञान और विज्ञान का गूंजे अनुपम राग,

गूंजे अनुपम राग चतुर्दिश हो प्रकाशमय,

शब्द मंजरी पुष्प लताएं जन्में मधुर पराग॥ 

1

गीता -काव्य

19 अप्रैल 2016
0
5
0

लेखक- राजीव सक्सेना 

2

मुक्तक

10 मई 2016
0
5
1

मुक्तक पुतलियाँ फिर गईं,तितलियों के नाम पर,भटका है कारवां,नहीं पंहुचा मुकाम पर,मस्त मौसम की हवाएं,रास्तों में मिल गईं,   सो गया है आदमीं निकला था काम पर।। -१  टूटकर बिखरा नहीं तो क्या हुआ है दोस्तों,दिल में इक ज्वालामुखी पिघला हुआ है दोस्तों,कैसे बुझेगी आग जो फैली है हर तरफ,सारा समंदर ही यहां लावा ह

3

वर दे वीणावादिनी शब्द-शक्ति संकल्प

13 मई 2016
0
1
0

वर दे वीणावादिनी शब्द-शक्ति संकल्प;देना मुक्तक काव्य के नूतन,नवल विकल्प,ज्ञानसुधार रसखान हो भाव-भूमि आलोक,अक्षर-अक्षर मनुजता बुने मुक्तिका कल्प॥ प्रथम नमन माँ दीप्ति के चरणों में'अनुराग';ज्ञान और विज्ञान का गूंजे अनुपम राग,गूंजे अनुपम राग चतुर्दिश हो प्रकाशमय,शब्द मंजरी पुष्प लताएं जन्में मधुर पराग॥

4

मुक्तक

13 मई 2016
0
2
0

भावों का हो मिलन मधुर सम्बन्धों में,कब तक घुट-घुट जियूं कुटिल प्रतिबन्धों में, बह निकला अनुराग समय की धारा में, नहीं बचा कुछ स्वाद प्रेम के रंगों में। -१अपनेपन की बेचैनी को ढूंढ रहा है मेरा मन,टूट गईं पानी की परतें बिखर गई कतरन-कतरन,धूप उठकर छाँव में रख दी हाथों में लेकर दर्पन,दूर छिटक कर चले गए घर

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए