मुक्तक
पुतलियाँ फिर गईं,तितलियों के नाम पर,
भटका है कारवां,नहीं पंहुचा मुकाम पर,
मस्त मौसम की हवाएं,रास्तों में मिल गईं,
सो गया है आदमीं निकला था काम पर।। -१
टूटकर बिखरा नहीं तो क्या हुआ है दोस्तों,
दिल में इक ज्वालामुखी पिघला हुआ है दोस्तों,
कैसे बुझेगी आग जो फैली है हर तरफ,
सारा समंदर ही यहां लावा हुआ है दोस्तों॥