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वीरों के वीर राणा सांगा

23 नवम्बर 2021

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राणा सांगा के जीवन की चंद झलकियां आल्हा छंद में चित्रित करने का प्रयास

सबका वंदन मैं करुँ,सबको करूँ प्रणाम।
गुरुजन के आशीष से,सँवरे बिगड़े काम।।

.
राणा कुल की शान बढ़ायी,
वीर प्रतापी थे संग्राम।
रायमल पितु नाम था न्यारा,
मेवाड़ सदा से निज धाम।।

मातृभूमि रज हिय को प्यारी,
चंदन बनके शोभित भाल।
उसकी रक्षा करने के हित,
बनकर रहते जैसे ढ़ाल।।


छोटे सुत वे थे राणा के,
गुण उनके पहचाने तात।
सत्ता सौंपी वीर लला को
समझी सारी उनकी बात।।


अग्रज बैरी बनकर बैठे,
प्राणों पर करते आघात।
शौर्य बसा रग-रग में उनके,
कैसे खाते फिर वे मात।।


सिसोदिया कुलभूषण राणा,
सांगा जिनका नाम महान।
स्वर्णाक्षर में शोभित जग में,
चहुँदिश करती इनका गान।।


सूरज बनकर चमके जग में,
और बढ़ाया सबका मान।
रजपूती मर्यादा रक्षक,
नींव रखी सुख देकर दान।।

.
धीर पराक्रम और चतुरता
बाहुबल का कर उपयोग।
अरिदल उनसे थर-थर कांँपे,
भय का लगता उनको रोग।


शोभित है मेवाड़ी धरती,
वीरों से पाकर संस्कार ।
बलिदानों की गाथा गाती,
जिसमें जन्मे रत्न हजार।।
१०.
अपने तन की भूलें सुध-बुध,
कर्तव्यों का रखते ध्यान।
अरि दल आँख उठाकर देखे,
बन जाते थे वे चट्टान।।

अग्रज पृथ्वीराज चिढ़े थे,
क्योंकर ये बनता सम्राट।
हक मेरा है गद्दी ऊपर,
कबसे देखूं इसकी बाट।

हाथ कटारी उनके थी फिर,
साँगा पर करते थे वार।
एक नयन को फोड़ दिया था,
बैरी निकला वो खूँखार।

ज्योतिष कहता साँगा होगा,
राजा गद्दी का हकदार।
जयमल पृथ्वी उस पर करते,
तलवारों से कितने वार।

राठौरी शासक बीदा ने,
साँगा का रक्खा था मान।
प्राण गँवाए अपने उसने,
रक्षा का था उसको ध्यान।

करमचंद ने शरणागत को,
दिया सुरक्षा का वरदान।
छुपकर रहते राणा साँगा,
संकट में थी उनकी जान।

पृथ्वी जयमल का अंत हुआ,
शासक निकले वे कमजोर।
जैसी करनी वैसी भरनी
रात गई अब आती भोर।

पंद्रह सौ नौ में भाग्य जगे
साँगा थामे सत्ता डोर।
हर्ष मनाते सब मेवाड़ी,
भीग उठे नयनों के कोर।

स्वाधीनता प्रिय बनी उनकी
करते कोशिश वे पुरजोर।
मातृभूमि की रक्षा होगी,
हिंदूपत का आया दौर।

११.
बाला वीर यहाँ की जग में,
अपनी उनकी है पहचान।
त्याग बसा रग-रग में उनके,
बोल रहे गढ़ के पाषाण।।
१२.
राज करें राणा नरबध्दू,
बूँदी उनका था निज धाम।
जन्म लिया सुंदर तनया ने,
कर्णावती सुता का नाम।।
१३.
मात-पिता हर्षित होते थे,
बिटिया उनकी थी गुणवान।
तेज भरा मुखमंडल दीपित,
हाड़ा कुल का थी वो मान।।
१४.
योग्य मिले वर इस चिंता में,
व्याकुल होते उसके तात।
पाकर राणा का संदेशा,
हिय सर फूल उठे जलजात।।
१५.
मित्र बने बूँदी मेवाड़ी,
मन राणा के थी यह बात।
संधि करें संबंध बनाएँ,
फिर देवें अरिदल को मात।।
१६.
कर्णावती रूपसी बाला,
करते सब उसका सम्मान।
बनी परिणिता राणा जी की,
रखती थी क्षत्राणी आन।।
१७.
झूम उठा मेवाड़ खुशी से,
नाच उठा था गढ़ चित्तौड़।
ड्योढ़ी पर पग रक्खे रानी,
एक कथा लिखती बेजोड़।
१८.
राणा की बनकर परछाँई,
राजनीति की लेती थाह।
वीरों के हे वीर सुनो तुम
पूरी करना अपनी चाह।।
१९.
काल सदा कब सम रहता है,
दिन बीते तो आती रात
साँगा युद्ध करें अरि दल से
बिन बादल ज्यों हो बरसात।।
२०.
धर्म ध्वजा थामी कर्मा ने,
कर्म बना जीवन का सार।
लिखती जाती लेख अनोखे,
कर्तव्यों का लेकर भार।।
२१.
साँगा एक ध्वजा के नीचे,
करें संगठन का विस्तार।
मातृभूमि प्रति प्रेम जगाते,
देख समय की पैनी धार।।
२२.
लोधी खिलजी बाबर मिलकर,
ललचाए सब गिद्ध समान।
मोहक मेवाड़ी धरती पर,
राज करें बस इसका ध्यान।।
२३.
देख रही क्षत्राणी कर्मा,
साँगा के पुरजोर प्रयास।
आन हमारी सबसे ऊपर,
प्राण मिटे पूरी हो आस।।
२४.
दो -दो फूल खिले गढ़ आँगन,
विक्रम और उदय जिन नाम।
साहस शौर्य पराक्रम धारो,
कर्मा शिक्षा दे निज धाम।।
२५.
सामंतों सरदारों में अब,
खूब जमी कर्मा की धाक।
सोए भाव जगे फिर मन के,
सबको प्यारी अपनी नाक।।
२६.
सूई नोंक बराबर धरती,
लेकर देखे देंगे चीर।
आँख उठाकर देखे कोई,
रखने वाले हम न धीर।।
२७.
चहुँदिश मान बढ़ा मेवाड़ी,
गाते चारण उनका गान।
वीर पताका फहराते नभ,
शीश कटे रखते सम्मान।।
२८.
राणा हिंदूपत मन जागी,
ऐसी ज्वाला ऐसी प्यास।
हिंदूछत्र बने निज धरती,
अरिदल की टूटे हर आस।।
२९.
बागड मालव मारवाड़ को,
छलबल से बंधन में बाँध।
खेले फिर वे खेल निराले,
शेर छुपा कब बैठा माँद।।
३०
गूँज उठे जयकारे जग में
साँगा शासक एक महान।
घाव असी ले तन पर डोले,
फूँक रहा था मृत में जान।।
३१.
शौर्य क्षमा गुण कार्य कुशलता,
साँगा के आभूषण नेक।
गागरोन का युद्ध लड़ा जब,
जीता मालव संग विवेक।
३२.
खिलजी को फिर धूल चटायी,
पूर्ण किया अपना सब काज।
दान क्षमा का देकर उसने
सौंपा वापस मालव राज।
३३
बाबर दिल्ली जीत चुका जब,
साँगा खटका उसकी आँख।
मन पंछी विचलित सा रहता,
कब दाबूँ मैं इसको काँख।।
३४
महिमा मंडन करने वाले,
बोल रहे मिश्री से बोल।
मन में विषधर थे फुंकारे
स्वार्थ रहा था उनको तोल।।
३५
अच्छे पन का ढोंग रचाकर,
जीत लिया उनका विश्वास।
मन ही मन में ढाह जलाती,
जैसे जलती सूखी घास।।
३६
शासन सत्ता लोभ बढ़ाए,
बदले मानव का व्यवहार।
कायर भ्रष्ट बने वह पल में
गिरगिट सा बदले आचार।।
३७
घर में ही जब छुपे भेदिए,
अवसर देखें करते घात।
वीर धुरंधर योगी ज्ञानी,
इनसे खाते अक्सर मात।।
३८

दुर्ग बयाना जीत लिया था
बाबर  के सपनों को तोड़
और मुगलिया सोच रहा था,
इसको कैसे दूँ मैं छोड़।
३९
कंटक बनकर खटके साँगा,
छाती पर लोटे फिर साँप।
ढूँढ रहा था छेद कहीं पर,
दुर्बलता को लूँ मैं भाँप।।
४०
रानी कर्मा चिंतित होती,
पुत्रों के लक्षण को देख।
पिता पुत्र के गुण में अंतर,
काली खींच रही थी रेख।।
४१
चील शकुन से शत्रु अनेकों,
ढूँढ रहे थे अपना ठाँव।
संकट के बादल छाए थे
पूत पालने दिखते पाँव।।
४२
सोच विचार करे यूँ कर्मा,
उठते मन में प्रश्न अनेक
कौन बनेगा उनके जैसा
मुझे न दिखता कोई एक।।
४३
राणा साँगा जैसे राजा,
होते हैं लाखों में एक।
प्राण हथेली पर रखते हैं,
सदा निभाते अपनी टेक।।
४४
साक्षी है इतिहास सदा से,
होते साँगा जैसे वीर।
कोई विदेशी कैसे आकर
हरता भारत माँ का चीर।।
४५
वीर अमर रहते हैं जग में,
लिखते अपना वे इतिहास।
कायर स्वार्थी के कारण ही,
अरिदल मन में जगती प्यास।।
४६
मंथन मन का करते-करते,
क्षत्राणी के खाली हाथ।
शीश नहीं मैं झुकने दूँगी,
ये रज चंदन सजती माथ।।
४७
काल पलटता पाँसा अपना,
लिखता भाग्य विधाता लेख।
रात अमावस की वह काली,
घिर कर आई खींचे रेख।।
४८
पंद्रह सौ सत्ताइस में फिर,
बाबर साँगा का संग्राम।
एक भूल राणा ने कर दी,
बिगड़े जिससे सारे काम।।
४९
युद्ध बयाना जीत लिया जब,
भुसावर में किया विश्राम।
खानव में तब तक कर डाला,
सैन्य मुगल ने अपना काम।।
५०
पाती परवन पाकर सारे,
रण मैदान डटे रजपूत।
मुगलों को सब धूल चटाएँ,
वीर यहाँ पर शौर्य अकूत।
५१

मुगलों की तोपें बंदूँके,
वीरों के भाले तलवार।
युद्ध विकट भीषण होता था,
अरिदल मचता हाहाकार।
५२
सैन्य मुगल भयभीत भयंकर,
काँप रहे ज्यूँ देखे शेर।
वार करें धड़ शीश कटें जब,
मुगलों के शव लगते ढेर।
५३
अनहोनी होकर रहती है,
जाना किसने उसका खेल।
तीर लगा राणा के मस्तक,
और मची फिर रेलमपेल।
५४
मूर्छित राणा की रक्षा हो,
युद्ध करो सब हो संहार
ओखल शीश दिए हैं अब तो
कैसे माने अपनी हार।।
५५
अखेराज राणा को लेकर,
जा पहुँचे थे दौसा राज।
झाला अज्जा गज पर बैठे,
रजपूतों की रखते लाज।
५६
देख मनोबल टूटा था फिर,
सेना भी हो गई निराश।
लड़ते-लड़ते हार चले जब,
और विजय की टूटी आस।
५७
काला दिन वह था ऐसा जो,
काला ही लिखता इतिहास।
एक विदेशी भारत भू को,
आज जकड़ता अपने पाश।।
५८
बर्बर बाबर युद्ध विजय कर
सारी हद को करता पार।
वीर गति पाए रजपूतों के
शीशों से बनती मीनार।।
५९
गाजी गर्वित कहलाता वह,
पामर नीच अधम लो जान।
लालच मद में डूबा-डूबा,
रौंद रहा भारत का मान।।
६०
साँगा स्वस्थ हुए दौसा में,
मन में लेते यह संकल्प।
बाबर को अब धूल चटाएँ,
काल बचा है देखो अल्प।।
६१
चाह कहाँ होती है पूरी,
काल चले जब उल्टी चाल।
कायर लोभी के कारण ही
अरिदल की गलती है दाल।।
६२
रणथंभौर चले फिर राणा,
रानी कर्मा का ये धाम।।
विचलित तन-मन से होते थे,
कब उनको आए आराम।।
६३
बाबर जीत रहा रजवाड़े,
साम्राज्य का किया विस्तार।
बढ़ती जाती ताकत उसकी,
युद्ध बिना सब माने हार।।
६४
मदनराय चंदेरी राजा,
बाबर पहुँचा उसके देश।
युद्ध करो या प्राण बचा लो,
संकट घोर कठिन परिवेश।।
६५
राणा ले संकल्प चले फिर,
चंदेरी का देंगे साथ।
लोहे के अब चने चबाए
बाबर लौटे खाली हाथ।।
६६
ईरिच गाँव रुके जब राणा,
सामंतों से करने बात।
अपने बनकर जो बैठे थे,
पीठ छुरे का करने घात।।
६७
युद्ध नहीं करना था जिनको,
मुगलों से जो थे भयभीत।
मातृभूमि की रक्षा कारण,
कैसे बनते सच्चे मीत।।
६८
मन में विष पलता था जिनके,
करने लगे थे वे षड़यंत्र।
भोजन में विष देकर मारो
सामंतों का बस ये मंत्र।।
६९
और हुई उस अनहोनी से,
भारत भाग्य हुआ फिर अस्त।
शेर समान गरजता था जो,
छल छंदों से पड़ता पस्त।।
७०
अपने पैरों मार कुल्हाड़ी,
गर्वित भूपति रिपु सामंत।
योद्धा हिंदूपत साँगा का,
किसने सोचा ऐसा अंत।।
७१
कल्पी के काले पन्नों में,
खोया मेवाड़ी वो रत्न।
वार दिया जिसने निज जीवन,
भरसक उसने किए प्रयत्न।।
७२
रतनसिंह गद्दी पर बैठा,
राणा का घोषित युवराज।
क्लेश मचा सत्ता को लेकर,
शासन के सब ढ़ीले काज।।
७३
मेवाड़ी धरती की चिंता,
कर्मा को करती बैचेन।
सत्ता योग्य नहीं था कोई,
कैसे कटते वे दिन-रैन।।
७४
पंद्रह सौ इकतीस छिड़ा था,
रजपूतों में ही संघर्ष।
रत्नसिंह के प्राणाहत से,
शासन का होता अपकर्ष।।
७५
राजतिलक होता विक्रम का,
जिसको शासन का कम ज्ञान।
कैसे राज सम्हाले बालक,
कैसे रखता सबका मान।।
७६
घोर कलह मेवाड़ छिड़ा फिर,
रुष्ट हुए थे रिपु सामंत।
कर्मा करती बात सभी से,
राज कलह का हो अब अंत।।
७७
फूट पड़ी थी लूट मची थी,
टूट रहा मेवाड़ महान।
प्रश्न विकट कर्मा के आगे,
कुल का भी रखना था मान।।
७८
विक्रम कैसे राज चलाता,
नीति नियम से था अनजान।
बहादुर शाह किया आक्रमण
गढ़ चित्तौड़ लगा था ध्यान।।
७९
रणथंभौर दिया कर्मा ने,
और दिए ढेरों उपहार।
मेवाड़ नहीं सौंपूं तुमको,
संधि करो ये लो स्वीकार।।
८०
सबके मन में चाह यही बस
बूँदी राज कुँवर विश्राम।
साथ तभी सब सामंतों का
बन जाएंगे बिगड़े काम।।
८१
पन्ना धात्री अति विश्वासी,
विक्रम और उदय के संग।
भेज दिया कर्मा ने बूँदी,
सामंतों के देखे ढंग।।
८२
मेवाड़ी धरती की पीड़ा,
बढ़ता जाता उसका ताप।
वीर कहाँ ऐसे थे जन्मे,
कुंभा साँगा और प्रताप।।
८३
राज कलह सत्ता के लोभी,
लड़-लड़ करते प्राणाघात।
इनकी दुर्बलता के कारण,
शत्रु विदेशी देते मात।।
८४
पंद्रह सौ पैंतीस हुआ फिर,
शाह युद्ध को था तैयार।
संकट के थे छाए बादल
गढ़ चित्तौड़ दोहरी मार।।
८५
बाबर पुत्र हुमायूं अब तो,
जीत रहा था सारे प्रांत।
आँख गड़ी मेवाड़ी धरती ,
फिर वह कैसे रहता शांत।
८६
संकट समक्ष चिंतित रानी,
करती रहती सोच विचार।
कोई वीर बचा ले नैया,
हो मेवाड़ का बेड़ा पार।।
८७
पत्र हुमायूं को भेजा फिर,
रख रेशम का धागा एक।
शाह करे मनमानी अपनी,
वीर प्रयास करो तुम नेक।।
८८
सेना तत्पर अरि दल की थी,
गढ़ चित्तौड़ करें कब वार।
नाक कटेगी युद्ध बिना अब,
लड़ने को सब थे तैयार।।
८९
कर्मा नेतृत्व करे सभी का,
प्राण हथेली रख लो वीर।
आँख उठाकर देखे अरि दल,
छाती उसकी देना चीर।
९०
मारेंगे या मर जाएंगे,
प्रण सबका ही था बस एक।
मातृभूमि की रक्षा करना,
आज निभाना अपनी टेक।।
९१
जौहर कुंड सजा गढ़ भीतर,
प्राणों की किसको परवाह।
चीर बसंती तन पर धारे,
सीने में जलती थी दाह।।
९२
गढ़ चित्तौड़ घिरा अरिदल से,
कूद पड़े रण वीर जवान।
तलवारें भाले बर्छी से,
रखने अपने कुल की आन।
९३
गाजर मूली से अरिदल को
काट रहे थे वीर अनेक
मुट्ठी भर सैनिक थे लेकिन
आज निभाते अपनी टेक।
९४
शाह बहादुर की सेना से,
लड़ते कब तक वीर सुवीर।
डूब रहा था सूर्य चमकता,
टूट रहा था सबका धीर।।
९५
तेरह सहस्त्र वीर नारियाँ,
मुख मंडल पर जिनके तेज।
मर्यादा की रक्षा करने,
सोने जाती पावक सेज।।
९६
गढ़ के पाषाणों ने देखी,
कुंड हवन की धधकी आग।
एकलिंग जयकार करें सब,
खेल रहीं थी ललना फाग।।
९७
लिखता है मेवाड़ सदा से,
स्वर्णाक्षर में अपना नाम।
वीर सपूत यहाँ पर जन्मे,
बलिदानों का है यह धाम।
९८
वीर अमर राणा साँगा की,
गाथा गाए सब संसार।
बाबर ने भी माना लोहा,
जीते जी कब मानी हार।।
९९
धन्य सदा मेवाड़ी धरती,
जिसने पाए ऐसे लाल।
प्राण हथेली पर जो रखते,
डरकर भागे जिनसे काल।।
१००
बप्पा रावल कुंभा साँगा,
हीर कनी से वीर प्रताप।
भाल तिलक भारत के गौरव,
उनको कौन सका है माप।

त्याग समर्पण पूरित ललना,
बलिवेदी पर चढ़ती आप।
शौर्य नहीं देखा उन जैसा
दिनकर जैसा उनका ताप।।

अभिलाषा चौहान'सुज्ञ'





































































































































































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जिंदगी सिगरेट-सी

27 जुलाई 2019
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धीमे-धीमे सुलगती,जिंदगी सिगरेट-सी।तनाव से जल रही,हो रही धुआं-धुआं।जिंदगी सिगरेट-सी,दुख की लगी तीली !भभक कर जल उठी,घुलने लगा जहर फिर!सांस-सांस घुट उठी,जिंदगी सिगरेट- सी ।रोग दोस्त बन गए,फिज़ा में जहर मिल गए।ग़म ने जब जकड़ लिया,खाट को पकड़ लिया।मति भ्रष्ट हो चली,जिंदगी सिगरेट- सी।धीमे-धीमे जल उठी,फूंक

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आखिर क्यों..???

27 जुलाई 2019
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2
4

तुम कभी कुछ नहीं कर सकते,क्या किया है आज तक !तुम्हारे बच्चों के खर्चे भी हम उठाएं...क्या सुख दिए है,अपने बूढ़े मां-बाप को..!छोटे को देखो...सीखो उससेकुछ..?ठाकुर साहब अपने बेटे पर बेतहाशा चिल्ला रहे थे।ये उनकीआदत में शुमार था...जब भी उनका बड़ा बेटा घर में घुसताउनकी चिल्ल-पों चालू हो जाती...जितना बेइज्

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बूढ़ी औरत

29 जुलाई 2019
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वो बूढ़ी औरत बड़ी देर से व्याकुल सी स्टेशन पर किसी को ढूंढ रही थी। मालती बड़ी देर से उसे देख रही थी ,उसकी ट्रेन एक घंटा लेट थी । उसने महसूस किया कि वृद्धा का मानसिक संतुलन भी ठीक नहीं था ।दुबली-पतली, झुर्रियों से भरा चेहरा,उलझे हुए से बाल ,अजीब सी चोगे जैसी पोशाक पहने ,हाथ में एक पोटली थामे जमीन पर

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हूं मैं एक अबूझ पहेली

31 जुलाई 2019
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भीड़ से घिरी लेकिनबिल्कुल अकेली हूं मैंहां, एक अबूझ पहेली हूं मैंकहने को सब अपने मेरेरहे सदा मुझको हैं घेरेपर समझे कोई न मन मेराखामोशियो ने मुझको घेराढूंढूं मैं अपना स्थान...जिसका नहीं किसी को ज्ञानक्या अस्तित्व है घर में मेरा?क्या है अपनी मेरी पहचान?अपने दर्द में बिल्कुल अकेलीहूं मैं एक अबूझ पहेली

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गिद्ध

6 अगस्त 2019
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गिद्ध ये नाम सुनते ही वह पक्षी स्मरण होआता है,जो मृत प्राणियों को अपना आहारबनाता है।पर अब सुना है कि गिद्धों की संख्या कम हो गई है या यूं कहें कि आदमी मेंगिद्ध की प्रवृति ने जन्म ले लिया है,जो जिंदाइंसानों को भी अपना शिकार बना लेती है।शायद यही कारण है कि गिद्ध अब नहीं

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कीमो

20 अगस्त 2019
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आज-कल मुझे अस्पतालों के चक्कर काटने पड़ रहे हैं,क्योंकि मेरी मां को कैंसर हुआ है और उनकी कीमोथेरेपीचल रही है,जीवन को बचाने की जद्दोजहद में लगी हूं। मैंआपको यह सब बता रही हूं,इसका ये मतलब बिल्कुलनहीं कि मैं अपना दुखड़ा रो रही हूं,बल्कि वहां जो मुझेअनुभव हुआ,उसे आपसे बा

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एहसास है मुझे

28 अगस्त 2019
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एहसास है मुझे,वह दर्द जो तूने जिया...वह जख्म जो तुझे ,दुनिया ने दिया।एहसास है मुझे,उस अकेलेपन का..उस तड़पते दिल का..जिसे चाह थी,बूंद भर प्यार की..परिवार के दुलार की..!एहसास है मुझे,उन आंसुओं का..जो तेरी आंख से बहे..उस टूटे हृदय का..उस वेदना का..उस तड़प का..।तेरा एहसास,जो दर्द बनकर,जख्म के रूप में जि

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दिल जिंदा रहा तो...!!

27 सितम्बर 2019
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क्यों बढ़ रही दिलों में दूरियां,क्या हो गई ऐसी मजबूरियां ।क्यों दिलों की बात कोई सुनता नहीं,क्यों स्वार्थ बन रहा कमजोरियां।भावनाओं को यूं दिल में दफन न करो,दिल की आवाज यूं अनसुनी न करो।यूं अकेले सफर कट सकता नहीं,अकेले रहने का यूं दिखावा न करो।दिल मुरझा गया तो कैसे जी पाओगे,जिंदगी का बोझ न इसतरह ढो प

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कल,आज और कल

29 सितम्बर 2019
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तीक्ष्ण वाणी के प्रहार,झेलता वह मासूम।सुबकता,सिसकता,आंसू पौंछता।खोजता अपने अपराध,शनै-शनै मरता बचपन!आक्रोश का ज्वालामुखी,उसके अंदर लेता आकार।शरीर पर चोटों की मार,बनाती उसे पत्थर!पनपता एक विष-वृक्षजलती प्रतिशोध की ज्वाला!पी जाती उसकी मासूमियत।वक्त से पहले ही होता बड़ा,समझता शत्रु समाज को,चल पड़ता पाप

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लेखक का मौत से साक्षात्कार

22 अक्टूबर 2019
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प्रकाश एक बेहतरीन लेखक था,पाठक उसकी रचनाओ की प्रतीक्षा करते थे। कहानी हो या उपन्यास या फिर कविता उसकी लेखनी कमाल की थी और पात्र-चयन तो और भी उत्तम।पिछले कुछ दिनों से वित्तीय समस्या के कारण वह तनाव में चल रहा था ,इससे उसका लेखन भी अछूता नहीं रहा था।वह एक कहानी लिख रहा

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बूढ़ा दरख्त

30 दिसम्बर 2019
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5 मििजाने कितने वर्षों से वह बरगद का वृक्ष उस चौपड पर खड़ा अतीत की न जाने कितनी घटनाओं का साक्षी था, न जाने कितने जीव-जंतुओं, पथिकों की शरणस्थली था। आज उदासी से घिरा था, वर्तमान परिवेश में उसे अपने ऊपर आने वाले संकट का एहसास था, लोगों की बदली हुई मानसिकता ने उसे हिला

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'अभि'की कुण्डलियाँ

30 दिसम्बर 2019
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टूटा कुनबा देख के, मुखिया हुआ निराश।तिनके जैसा उड़ गया,जीवन से विश्वास।जीवन से विश्वास,प्रेम जब उसका हारा।जीत गया है स्वार्थ,कहाँ अब रहा सहारा।कहती 'अभि' निज बात,पटाखा जैसे फूटा।उड़ी घृणा की धुंध,और फिर कुनबा टूटा।प्यारी पीहर की लगे ,मुझको सारी बात।पक्षी जैसी मैं उड़ी, छूटे भगिनी-भ्रात।छूटे भगिनी-भ्

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हिंदी भाषा और अशुद्धिकरण की समस्या

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हिन्दी भाषा का मानक रूप आज अशुद्ध शब्दों के प्रयोग के कारण लुप्त सा होता जा रहा है।यह चिंतनीय विषय है।हिंदी विस्तृत भू-भाग की भाषा है। क्षेत्रीय बोलियों के संपर्क में आने से शुद्ध शब्दों का स्वरूप बदल जाता है।अहिंदी भाषियों के द्वारा भी हिंदी का प्रयोग संपर्क भाषा के रूप में किया जाता हैजिसके कारण श

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हिंदी भाषा और अशुद्धिकरण की समस्या-2

9 फरवरी 2020
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आदरणीय मार्गदर्शक और प्रेरणास्रोत श्री संजय कौशिक'विज्ञात'जी और सखी नीतू ठाकुर'विदुषी'जी चाहते हैं कि मैं इस समस्या पर और कार्य करूँ।करना भी चाहती हूँ,पर सोचती हूँ क्या मेरे लिख देने मात्र से कोई क्रांति संभव है??मेरे विचार से इसका उत्तर"नहीं"है।आज लाखों लोग सोशल मीडिया पर साहित्य सेवा में लीन हैं।क

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जैसे सब कुछ भूल रहा था

31 मार्च 2020
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नेत्र प्रवाहित नदिया अविरल,नेह हृदय कुछ बोल रहा था।तिनका-तिनका दुख में मेरे,जैसे सबकुछ भूल रहा था।अम्बर पर बदरी छाई थी,दुख की गठरी लादे भागे।नयनों से सावन बरसे थाप्यासा मन क्यों तरस रहा था।खोया-खोया जीवन मेराचातक बन कर तड़प रहा था।तिनका-तिनका दुख में मेरेजैसे सब कुछ भ

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शब्द संपदा-कुछ दोहे

27 अप्रैल 2020
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गीतापार्थ उठाओ शस्त्र तुम,करो अधर्म का अंत।रणभूमि में कृष्ण कहे,गीता ज्ञान अनंत।।कर्मयोग के ज्ञान का,अनुपम दे संदेश।गीता जीवन सार है,जिससे कटते क्लेश।।पतवारसाहस की पतवार हो,संकल्पों को थाम।पाना अपने लक्ष्य को,करना अपना नाम।।अक्षरअक्षर अच्युत अजर हैं, कण-कण में विस्तार।वही अनादि अनंत हैं,इस जीवन का स

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कोरोना 'महामारी'

4 मई 2020
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विज्ञात छंदमुक्तक एक प्रयासदेख लगे न कोरोनाहाथ हमें सदा धोनादूर रहो करो बातेंजान कभी नहीं खोना।देख बड़ी महामारीजीवन पे पड़े भारीचूक गया जहाँ कोईसाथ चली नहीं हारी।अभिलाषा चौहान'सुज्ञ'स्वरचित मौलिक

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शब्द संपदा -दोहावली

15 मई 2020
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*वक्तवक्त-वक्त की बात है,सबके बदले ढंग।वक्त पड़े ही बदलते,खरबूजे के रंग।*कविताकविता कवि की कल्पना,जन-मन की है आस।समय भले ही हो बुरा,कविता रहती खास।*भावभाव बिना जीवन नहीं,नीरस होते प्राण।ढोते बोझा व्यर्थ का,कैसे हो परित्राण।*प्रेम प्रेम समर्पण माँगता,जैसे चातक चाह।स्वाति बूँद की आस में,कितनी भरता आह

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शिव वंदना

19 मई 2020
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अक्षर अच्युत चंद्र शिरोमणिविष्णुवल्लभ योगी दिगंबरत्रिलोकेश श्रीकंठ शूल्पाणिअष्टमूर्ति शंभू शशिशेखर।ॐ प्रणव उदघोष अभ्यंतरऊर्जित परम करे उत्साहितअनादि अनंत अभेद शाश्वतकण-कण में वह सदा प्रवाहित।।अज सर्व भव शंभू महेश्वरनीलकंठ हे भीम पिनाकीत्रिलोकेश कवची गंगाधरपरशुहस्त हे जगद्वयापीॐ निनाद में शून्य सनातन

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अणु कोरोना हार चलेगा

21 मई 2020
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हाहाकार मचा है जग मेंकैसे बेड़ा पार लगेगामन में आशा आस जगाएजीवन का ये पुष्प खिलेगालाशों के अंबार लगे हैंबिछड़ रहे अपनों से अपनेसाँसों की टूटी डोरी मेंटूट रहें हैं सपने कितनेबंदी जीवन भय का घेरालेकिन सुख का सूर्य उगेगामन में आशा आस जगाएजीवन का ये पुष्प खिलेगा।।काल कठोर भयंकर भारीनिर्धन को अब भूख निगल

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और गांव की याद आई

27 मई 2020
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एक रोग सारी दुनिया कीदिखलाता है सच्चाई।जिन शहरों को अपना मानाउनमें ही ठोकर खाई।ऐसे उसने पैर पसारेकाम-धाम सब बंद हुएलोगों ने तेवर दिखलाएरिश्ते सारे मंद हुए।और गांव के कच्चे घर कीहूक हृदय में लहराई।जिन शहरों को अपना मानाउनमें ही ठोकर खाई।प्रेम फला-फूला करता थागाँव गली-घर-आँ

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शब्द संपदा-दोहावली

14 जून 2020
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पावस*पावस बूंँदों से हुई,शीतल धरती आज।चंचल चपला दामिनी,मेघों का है राज।*मानसून*मानसून ने कर दिया,जग जीवन खुशहाल।कृषक खेत में झूमता,बदला उसका काल।*वारिद*नभ में वारिद छा गए,देख नाचते मोर।विरहिन के नयना झरे,देख घटा घनघोर।*पछुआ*पछुआ ले बादल उड़ी,देख टूटती आस।हलधर बैठा खेत में,होता बड़ा निराश।*कृषक*ऋण के

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वो कली मासूम सी

26 दिसम्बर 2020
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बेड़ियों ने रूप बदलेरख दिया तन को सजाकरवो कली मासूम सी जोदेखती सब मुस्कुराकर।शूल बोए जा रहे थेरीतियों की आड़ में जबखेल सा लगता उसे थाजानती सच ये भला कबछिन रहा बचपन उसी कापड़ रहीं थीं सात भाँवर।।छूटता घर आँगना अबनयन से नदियाँ बहीं फिरहाथ में गुड़िया लिए थीबंधनों से अब गई घिरआज नन्हें पग दिखाएँघाव सा

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विश्व गुर्दा दिवस पर विशेष

10 मार्च 2021
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कल विश्व गुर्दा दिवस है।इसका उद्देश्य है लोगों में गुर्दे और गुर्दे से संबंधित बीमारियों को लेकर जागरूकता पैदा करना। ईश्वर न करे कभी किसी को गुर्दे से संबंधित बीमारियों का सामना करना पड़े और यदि ऐसा हो जाए तो अपनों के जीवन को बचाने के लिए हमें गुर्दा प्रत्यारोपण से पीछे नहीं हटना चाहिए।आज के इस युग

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वीरों के वीर राणा सांगा

23 नवम्बर 2021
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<p>राणा सांगा के जीवन की चंद झलकियां आल्हा छंद में चित्रित करने का प्रयास</p> <p>सबका वंदन मैं करुँ,

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शाश्वत सत्य

24 नवम्बर 2021
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<p><br> <br> जीवन ईश्वर की दी अनुपम कृति है और मनुष्य मन, वाणी और कर्म की एकरूपता रखने के कारण इस सृ

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