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आखिर क्यों..???

27 जुलाई 2019

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तुम कभी कुछ नहीं कर सकते,क्या किया है आज तक !

तुम्हारे बच्चों के खर्चे भी हम उठाएं...क्या सुख दिए है,

अपने बूढ़े मां-बाप को..!छोटे को देखो...सीखो उससे

कुछ..?


ठाकुर साहब अपने बेटे पर बेतहाशा चिल्ला रहे थे।ये उनकी

आदत में शुमार था...जब भी उनका बड़ा बेटा घर में घुसता

उनकी चिल्ल-पों चालू हो जाती...जितना बेइज्जत कर सकते,करते... बेचारे की भूख-प्यास सब मर जाती।दो

बच्चों का बाप रतन बहुत ही सीधा-साधा था...एक निजी

स्कूल में शिक्षक था.. जितना बन पड़ता करता था परिवार

के लिए ... लेकिन ठाकुर साहब ... उन्हें तो बेटे को बड़े

सरकारी अफसर के रूप में देखना था...अपनी इसी चाह

के पूरा न होने की खुन्नस वे बेटे पर निकालते।


गजब की सहनशक्ति थी रतन में...पिता को कभी पलटकर

जबाव नहीं दिया... लेकिन अपने बच्चों के सामने पिता की

डांट खाना उसके लिए मुश्किल हो रहा था...घर में और भी

लोग थे...सब हंसते...रतन की मां ..रतन को कई बार कह

चुकी थी...बेटा!तुम किराए का मकान ले लो.. परिवार के

साथ वहां रहने लगो... तुम्हारे बाप को समझाना मेरे बस

में नहीं.... जितनी मदद होगी मैं चुपचाप कर दूंगी...बस

तुम चैन से रहो। रतन तैयार था लेकिन...?


जब वह अपनी पत्नी से कहता तो वह कहती...हम क्यों

अलग रहें..?...इस घर को क्यों छोड़ दें....तुम ज्यादा

कमाने की कोशिश करो .... मैं तो ये घर छोड़ कर नहीं

जाने वाली... पापाजी का क्या है...वो तो बोलते रहते हैं।


बेचारा रतन..! त्रिकोण में उलझा हुआ जीवन में सुकून

के पल ढूंढ़ता रहता..घर की किचकिच ने उसके दिमाग

को प्रभावित करना शुरू कर दिया....इस किचकिच से

बचने के लिए उसने ट्यूशन लेना शुरू कर दिया...पर

घर तो जाना ही होता था...घर में मां के अलावा कोई

उसे अपना हमदर्द न दिखाई देता...पत्नी बच्चों में और

घर के काम इतनी उलझी रहती कि दो घड़ी पास बैठना

तो दूर...कोई बात भी ध्यान से न सुनती।


भरे-पूरे परिवार में अकेलेपन के अहसास ने रतन को

अंदर ही अंदर खाना शुरू कर दिया...अपने कमरे में

बंद रहना...गुस्से में खाना न खाना..उसका स्वभाव

बन गया..वह सबसे कटा-कटा रहने लगा... उसके

इस बदलाव पर सबकी प्रतिक्रिया और नकारात्मक

हो गई...इसी बीच वह बीमार पड़ा...शरीर से कमजोर

स्नेह के लिए तड़पता रतन.. अवसाद से ग्रस्त हो गया।


उसे देख कर बड़ा दुख होता था...लंबी कद-काठी का

हृष्ट-पुष्ट..लड़का कंकाल सम दिखने लगा था..सबकी

मदद को खड़ा रहने वाला.. अंधेरे की दुनिया में खोता

जा रहा था... परिवार उसकी मनोदशा को समझने के

स्थान पर उसकी हालत का जिम्मेदार उसे ही ठहरा

रहा था...हताशा पूरी तरह से हावी हो रही थी। मैं उसे

भाई से भी बढ़कर मानती थी...जब भी वह दुखी होता,

मेरे पास आकर अपना दुख हल्का कर लेता... मैंने उसे

बहुत समझाया...कि अपनी सेहत का ध्यान रखो ..

मन पर किसी बात को हावी न होने दो... लेकिन एक

ही बात वह मुझसे कहता...मुझे ही क्यों..दी !छोटे की

कितनी गलतियां पापा माफ़ करते हैं... उससे एक शब्द

नहीं कहते..मुझसे ही क्यों...और किसके लिए...उसे

तो मेरी पड़ी ही नहीं है.. बच्चों में मगन रहती है रात-दिन,

या पापाजी जो कहें ..वह करती है...दी! किसके लिए..,

ठीक रहूं?


खुद के लिए भाई! जिंदगी तुम्हारी है ...उसे बर्बाद मत

करो.. बार-बार नहीं मिलती ये जिंदगी!!


पर उस पर कोई असर नहीं हुआ...एक दिन मैंने आंटीजी

को समझाया..उसकी हालत के बारे...अंकल से भी बात

की...थोड़े दिन दिन सब ठीक रहा.... लेकिन आदतें कहां

बदलती हैं...और आज ..... मैं ये क्या सुन रहीं हूं..!!

कानों पर विश्वास नहीं हो रहा....रतन अब इस दुनिया में

नहीं ...क्यों...? कैसे...? आंखों से अविरल अश्रुधारा बह

रही है...क्या हुआ होगा...? मैं एक महीने से शहर से बाहर

थी...ओह!रतन... अब कौन दी कहेगा.…..तुमने तो मुझे

बड़ी बहन का पूरा सम्मान दिया था....ये उम्र तो नहीं थी

तुम्हारे जाने की... आखिर क्यों????


अभिलाषा चौहान

स्वरचित मौलिक

(सत्य घटना पर आधारित)


अभिलाषा चौहान

अभिलाषा चौहान

सहृदय आभार रेणु बहन,सब आपके स्नेह का फल है

31 जुलाई 2019

प्रियंका शर्मा

प्रियंका शर्मा

बहुत ही दुःखदाई , ये सत्य घटना पर आधारित न होती काश

28 जुलाई 2019

रेणु

रेणु

प्रिय अभिलाषा जी , सबसे पहले तो आपको शब्दनगरी पर देखकर जो ख़ुशी हो रही है , मैं बता नहीं सकती | मैंने जनवरी 2017 से इसी मंच से लिखने की शुरुआत की थी , और मेरे लिए ये बहुत ही शुभता भरा साबित हुआ | आशा करती हूँ आप भी जल्द ही इस मंच के पाठकों में अपनी पहचान बना | लेंगी | और आपकी कहानी के बारे में क्या लिखूं ? अवसाद और अकेलापन यूँ ही लील जता है किसी अभागे इन्सान को जैसा रतन के साथ हुआ \ मार्मिक कहानी मन को छू गयी और मन उदास हो गया | नए लेखन के लिए आपको हार्दिक शुभकामनायें | आपकी ये नयी यात्रा शुभता भरी हो यही कामना करती हूँ | मेरा हार्दिक स्नेह आपके लिए

27 जुलाई 2019

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जिंदगी सिगरेट-सी

27 जुलाई 2019
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धीमे-धीमे सुलगती,जिंदगी सिगरेट-सी।तनाव से जल रही,हो रही धुआं-धुआं।जिंदगी सिगरेट-सी,दुख की लगी तीली !भभक कर जल उठी,घुलने लगा जहर फिर!सांस-सांस घुट उठी,जिंदगी सिगरेट- सी ।रोग दोस्त बन गए,फिज़ा में जहर मिल गए।ग़म ने जब जकड़ लिया,खाट को पकड़ लिया।मति भ्रष्ट हो चली,जिंदगी सिगरेट- सी।धीमे-धीमे जल उठी,फूंक

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आखिर क्यों..???

27 जुलाई 2019
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तुम कभी कुछ नहीं कर सकते,क्या किया है आज तक !तुम्हारे बच्चों के खर्चे भी हम उठाएं...क्या सुख दिए है,अपने बूढ़े मां-बाप को..!छोटे को देखो...सीखो उससेकुछ..?ठाकुर साहब अपने बेटे पर बेतहाशा चिल्ला रहे थे।ये उनकीआदत में शुमार था...जब भी उनका बड़ा बेटा घर में घुसताउनकी चिल्ल-पों चालू हो जाती...जितना बेइज्

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बूढ़ी औरत

29 जुलाई 2019
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वो बूढ़ी औरत बड़ी देर से व्याकुल सी स्टेशन पर किसी को ढूंढ रही थी। मालती बड़ी देर से उसे देख रही थी ,उसकी ट्रेन एक घंटा लेट थी । उसने महसूस किया कि वृद्धा का मानसिक संतुलन भी ठीक नहीं था ।दुबली-पतली, झुर्रियों से भरा चेहरा,उलझे हुए से बाल ,अजीब सी चोगे जैसी पोशाक पहने ,हाथ में एक पोटली थामे जमीन पर

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हूं मैं एक अबूझ पहेली

31 जुलाई 2019
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भीड़ से घिरी लेकिनबिल्कुल अकेली हूं मैंहां, एक अबूझ पहेली हूं मैंकहने को सब अपने मेरेरहे सदा मुझको हैं घेरेपर समझे कोई न मन मेराखामोशियो ने मुझको घेराढूंढूं मैं अपना स्थान...जिसका नहीं किसी को ज्ञानक्या अस्तित्व है घर में मेरा?क्या है अपनी मेरी पहचान?अपने दर्द में बिल्कुल अकेलीहूं मैं एक अबूझ पहेली

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गिद्ध

6 अगस्त 2019
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गिद्ध ये नाम सुनते ही वह पक्षी स्मरण होआता है,जो मृत प्राणियों को अपना आहारबनाता है।पर अब सुना है कि गिद्धों की संख्या कम हो गई है या यूं कहें कि आदमी मेंगिद्ध की प्रवृति ने जन्म ले लिया है,जो जिंदाइंसानों को भी अपना शिकार बना लेती है।शायद यही कारण है कि गिद्ध अब नहीं

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कीमो

20 अगस्त 2019
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आज-कल मुझे अस्पतालों के चक्कर काटने पड़ रहे हैं,क्योंकि मेरी मां को कैंसर हुआ है और उनकी कीमोथेरेपीचल रही है,जीवन को बचाने की जद्दोजहद में लगी हूं। मैंआपको यह सब बता रही हूं,इसका ये मतलब बिल्कुलनहीं कि मैं अपना दुखड़ा रो रही हूं,बल्कि वहां जो मुझेअनुभव हुआ,उसे आपसे बा

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एहसास है मुझे

28 अगस्त 2019
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एहसास है मुझे,वह दर्द जो तूने जिया...वह जख्म जो तुझे ,दुनिया ने दिया।एहसास है मुझे,उस अकेलेपन का..उस तड़पते दिल का..जिसे चाह थी,बूंद भर प्यार की..परिवार के दुलार की..!एहसास है मुझे,उन आंसुओं का..जो तेरी आंख से बहे..उस टूटे हृदय का..उस वेदना का..उस तड़प का..।तेरा एहसास,जो दर्द बनकर,जख्म के रूप में जि

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दिल जिंदा रहा तो...!!

27 सितम्बर 2019
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क्यों बढ़ रही दिलों में दूरियां,क्या हो गई ऐसी मजबूरियां ।क्यों दिलों की बात कोई सुनता नहीं,क्यों स्वार्थ बन रहा कमजोरियां।भावनाओं को यूं दिल में दफन न करो,दिल की आवाज यूं अनसुनी न करो।यूं अकेले सफर कट सकता नहीं,अकेले रहने का यूं दिखावा न करो।दिल मुरझा गया तो कैसे जी पाओगे,जिंदगी का बोझ न इसतरह ढो प

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कल,आज और कल

29 सितम्बर 2019
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तीक्ष्ण वाणी के प्रहार,झेलता वह मासूम।सुबकता,सिसकता,आंसू पौंछता।खोजता अपने अपराध,शनै-शनै मरता बचपन!आक्रोश का ज्वालामुखी,उसके अंदर लेता आकार।शरीर पर चोटों की मार,बनाती उसे पत्थर!पनपता एक विष-वृक्षजलती प्रतिशोध की ज्वाला!पी जाती उसकी मासूमियत।वक्त से पहले ही होता बड़ा,समझता शत्रु समाज को,चल पड़ता पाप

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लेखक का मौत से साक्षात्कार

22 अक्टूबर 2019
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प्रकाश एक बेहतरीन लेखक था,पाठक उसकी रचनाओ की प्रतीक्षा करते थे। कहानी हो या उपन्यास या फिर कविता उसकी लेखनी कमाल की थी और पात्र-चयन तो और भी उत्तम।पिछले कुछ दिनों से वित्तीय समस्या के कारण वह तनाव में चल रहा था ,इससे उसका लेखन भी अछूता नहीं रहा था।वह एक कहानी लिख रहा

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बूढ़ा दरख्त

30 दिसम्बर 2019
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5 मििजाने कितने वर्षों से वह बरगद का वृक्ष उस चौपड पर खड़ा अतीत की न जाने कितनी घटनाओं का साक्षी था, न जाने कितने जीव-जंतुओं, पथिकों की शरणस्थली था। आज उदासी से घिरा था, वर्तमान परिवेश में उसे अपने ऊपर आने वाले संकट का एहसास था, लोगों की बदली हुई मानसिकता ने उसे हिला

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'अभि'की कुण्डलियाँ

30 दिसम्बर 2019
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टूटा कुनबा देख के, मुखिया हुआ निराश।तिनके जैसा उड़ गया,जीवन से विश्वास।जीवन से विश्वास,प्रेम जब उसका हारा।जीत गया है स्वार्थ,कहाँ अब रहा सहारा।कहती 'अभि' निज बात,पटाखा जैसे फूटा।उड़ी घृणा की धुंध,और फिर कुनबा टूटा।प्यारी पीहर की लगे ,मुझको सारी बात।पक्षी जैसी मैं उड़ी, छूटे भगिनी-भ्रात।छूटे भगिनी-भ्

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हिंदी भाषा और अशुद्धिकरण की समस्या

3 फरवरी 2020
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हिन्दी भाषा का मानक रूप आज अशुद्ध शब्दों के प्रयोग के कारण लुप्त सा होता जा रहा है।यह चिंतनीय विषय है।हिंदी विस्तृत भू-भाग की भाषा है। क्षेत्रीय बोलियों के संपर्क में आने से शुद्ध शब्दों का स्वरूप बदल जाता है।अहिंदी भाषियों के द्वारा भी हिंदी का प्रयोग संपर्क भाषा के रूप में किया जाता हैजिसके कारण श

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हिंदी भाषा और अशुद्धिकरण की समस्या-2

9 फरवरी 2020
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आदरणीय मार्गदर्शक और प्रेरणास्रोत श्री संजय कौशिक'विज्ञात'जी और सखी नीतू ठाकुर'विदुषी'जी चाहते हैं कि मैं इस समस्या पर और कार्य करूँ।करना भी चाहती हूँ,पर सोचती हूँ क्या मेरे लिख देने मात्र से कोई क्रांति संभव है??मेरे विचार से इसका उत्तर"नहीं"है।आज लाखों लोग सोशल मीडिया पर साहित्य सेवा में लीन हैं।क

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जैसे सब कुछ भूल रहा था

31 मार्च 2020
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नेत्र प्रवाहित नदिया अविरल,नेह हृदय कुछ बोल रहा था।तिनका-तिनका दुख में मेरे,जैसे सबकुछ भूल रहा था।अम्बर पर बदरी छाई थी,दुख की गठरी लादे भागे।नयनों से सावन बरसे थाप्यासा मन क्यों तरस रहा था।खोया-खोया जीवन मेराचातक बन कर तड़प रहा था।तिनका-तिनका दुख में मेरेजैसे सब कुछ भ

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शब्द संपदा-कुछ दोहे

27 अप्रैल 2020
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गीतापार्थ उठाओ शस्त्र तुम,करो अधर्म का अंत।रणभूमि में कृष्ण कहे,गीता ज्ञान अनंत।।कर्मयोग के ज्ञान का,अनुपम दे संदेश।गीता जीवन सार है,जिससे कटते क्लेश।।पतवारसाहस की पतवार हो,संकल्पों को थाम।पाना अपने लक्ष्य को,करना अपना नाम।।अक्षरअक्षर अच्युत अजर हैं, कण-कण में विस्तार।वही अनादि अनंत हैं,इस जीवन का स

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कोरोना 'महामारी'

4 मई 2020
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विज्ञात छंदमुक्तक एक प्रयासदेख लगे न कोरोनाहाथ हमें सदा धोनादूर रहो करो बातेंजान कभी नहीं खोना।देख बड़ी महामारीजीवन पे पड़े भारीचूक गया जहाँ कोईसाथ चली नहीं हारी।अभिलाषा चौहान'सुज्ञ'स्वरचित मौलिक

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शब्द संपदा -दोहावली

15 मई 2020
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*वक्तवक्त-वक्त की बात है,सबके बदले ढंग।वक्त पड़े ही बदलते,खरबूजे के रंग।*कविताकविता कवि की कल्पना,जन-मन की है आस।समय भले ही हो बुरा,कविता रहती खास।*भावभाव बिना जीवन नहीं,नीरस होते प्राण।ढोते बोझा व्यर्थ का,कैसे हो परित्राण।*प्रेम प्रेम समर्पण माँगता,जैसे चातक चाह।स्वाति बूँद की आस में,कितनी भरता आह

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शिव वंदना

19 मई 2020
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अक्षर अच्युत चंद्र शिरोमणिविष्णुवल्लभ योगी दिगंबरत्रिलोकेश श्रीकंठ शूल्पाणिअष्टमूर्ति शंभू शशिशेखर।ॐ प्रणव उदघोष अभ्यंतरऊर्जित परम करे उत्साहितअनादि अनंत अभेद शाश्वतकण-कण में वह सदा प्रवाहित।।अज सर्व भव शंभू महेश्वरनीलकंठ हे भीम पिनाकीत्रिलोकेश कवची गंगाधरपरशुहस्त हे जगद्वयापीॐ निनाद में शून्य सनातन

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अणु कोरोना हार चलेगा

21 मई 2020
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हाहाकार मचा है जग मेंकैसे बेड़ा पार लगेगामन में आशा आस जगाएजीवन का ये पुष्प खिलेगालाशों के अंबार लगे हैंबिछड़ रहे अपनों से अपनेसाँसों की टूटी डोरी मेंटूट रहें हैं सपने कितनेबंदी जीवन भय का घेरालेकिन सुख का सूर्य उगेगामन में आशा आस जगाएजीवन का ये पुष्प खिलेगा।।काल कठोर भयंकर भारीनिर्धन को अब भूख निगल

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और गांव की याद आई

27 मई 2020
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एक रोग सारी दुनिया कीदिखलाता है सच्चाई।जिन शहरों को अपना मानाउनमें ही ठोकर खाई।ऐसे उसने पैर पसारेकाम-धाम सब बंद हुएलोगों ने तेवर दिखलाएरिश्ते सारे मंद हुए।और गांव के कच्चे घर कीहूक हृदय में लहराई।जिन शहरों को अपना मानाउनमें ही ठोकर खाई।प्रेम फला-फूला करता थागाँव गली-घर-आँ

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शब्द संपदा-दोहावली

14 जून 2020
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पावस*पावस बूंँदों से हुई,शीतल धरती आज।चंचल चपला दामिनी,मेघों का है राज।*मानसून*मानसून ने कर दिया,जग जीवन खुशहाल।कृषक खेत में झूमता,बदला उसका काल।*वारिद*नभ में वारिद छा गए,देख नाचते मोर।विरहिन के नयना झरे,देख घटा घनघोर।*पछुआ*पछुआ ले बादल उड़ी,देख टूटती आस।हलधर बैठा खेत में,होता बड़ा निराश।*कृषक*ऋण के

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वो कली मासूम सी

26 दिसम्बर 2020
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बेड़ियों ने रूप बदलेरख दिया तन को सजाकरवो कली मासूम सी जोदेखती सब मुस्कुराकर।शूल बोए जा रहे थेरीतियों की आड़ में जबखेल सा लगता उसे थाजानती सच ये भला कबछिन रहा बचपन उसी कापड़ रहीं थीं सात भाँवर।।छूटता घर आँगना अबनयन से नदियाँ बहीं फिरहाथ में गुड़िया लिए थीबंधनों से अब गई घिरआज नन्हें पग दिखाएँघाव सा

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विश्व गुर्दा दिवस पर विशेष

10 मार्च 2021
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कल विश्व गुर्दा दिवस है।इसका उद्देश्य है लोगों में गुर्दे और गुर्दे से संबंधित बीमारियों को लेकर जागरूकता पैदा करना। ईश्वर न करे कभी किसी को गुर्दे से संबंधित बीमारियों का सामना करना पड़े और यदि ऐसा हो जाए तो अपनों के जीवन को बचाने के लिए हमें गुर्दा प्रत्यारोपण से पीछे नहीं हटना चाहिए।आज के इस युग

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वीरों के वीर राणा सांगा

23 नवम्बर 2021
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<p>राणा सांगा के जीवन की चंद झलकियां आल्हा छंद में चित्रित करने का प्रयास</p> <p>सबका वंदन मैं करुँ,

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शाश्वत सत्य

24 नवम्बर 2021
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<p><br> <br> जीवन ईश्वर की दी अनुपम कृति है और मनुष्य मन, वाणी और कर्म की एकरूपता रखने के कारण इस सृ

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