गिद्ध ये नाम सुनते ही वह पक्षी स्मरण हो
आता है,जो मृत प्राणियों को अपना आहार
बनाता है।पर अब सुना है कि गिद्धों की
संख्या कम हो गई है या यूं कहें कि आदमी में
गिद्ध की प्रवृति ने जन्म ले लिया है,जो जिंदा
इंसानों को भी अपना शिकार बना लेती है।
शायद यही कारण है कि गिद्ध अब नहीं दिखते।
हो सकता है ,आप सहमत न हों कि भई
ये मैं क्या कह रही हूं....! लेकिन ये सच है,
आप स्वयं ही निर्णय करिए।
गांव-कूचों में, गली-मोहल्ले में, शहरों की
सड़कों पर आपको ऐसे गिद्ध देखने को मिल
जाएंगे,जो राह चलती लड़कियों-औरतों पर
ऐसे नजर गड़ाते है,जैसे वे उनका शिकार हो,
छोटी बच्चियां इन गिद्धों का पसंदीदा भोजन है,
आपकी आंखें जब तक उन्हें देखेगी तब तक
वे अपना शिकार कर चुके होते हैं।
ऐसे ही गिद्ध धन-संपत्ति के लिए अपने माता-पिता ,अपने भाई-बहनों,पत्नी को नोंचते-खसोटते नजर आते हैं।ये गिद्ध हर कहीं हैं..सरकारी दफ्तरों में, अस्पतालों में
राजनीति में कानून के रक्षकों में...ये कब
आप पर झपट्टा मारकर दें....यह आपकी सोच से परे है।
इनके कारण समाज में अपराधों की दीमक
लग गई है।जिसको रोकने के उपाय नाकाम
हो रहे हैं। गिद्धों की संख्या दिनों-दिन बढ़
रही है... समाचार पत्र और दूरदर्शन पर रोज
इन गिद्धों के चर्चे होते हैं।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक