क्यों बढ़ रही दिलों में दूरियां,
क्या हो गई ऐसी मजबूरियां ।
क्यों दिलों की बात कोई सुनता नहीं,
क्यों स्वार्थ बन रहा कमजोरियां।
भावनाओं को यूं दिल में दफन न करो,
दिल की आवाज यूं अनसुनी न करो।
यूं अकेले सफर कट सकता नहीं,
अकेले रहने का यूं दिखावा न करो।
दिल मुरझा गया तो कैसे जी पाओगे,
जिंदगी का बोझ न इसतरह ढो पाओगे।
दिल से दिल तार गर जुड़ जाएंगे,
जिंदगी का तब ही लुत्फ उठा पाओगे।
दिल को बंधनों में बांध कर क्या पाओगे,
खुद ही जिंदगी से रूसवा हो जाओगे।
दिल की मासूमियत को ऐसे मरने न दो,
दिल जिंदा रहा तो ही खिलखिला पाओगे।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक