*वक्त
वक्त-वक्त की बात है,सबके बदले ढंग।
वक्त पड़े ही बदलते,खरबूजे के रंग।
*कविता
कविता कवि की कल्पना,जन-मन की है आस।
समय भले ही हो बुरा,कविता रहती खास।
*भाव
भाव बिना जीवन नहीं,नीरस होते प्राण।
ढोते बोझा व्यर्थ का,कैसे हो परित्राण।
*प्रेम
प्रेम समर्पण माँगता,जैसे चातक चाह।
स्वाति बूँद की आस में,कितनी भरता आह।
*मानव
मानव तब मानव बने,करे जगत कल्याण।
मानवता के धर्म पर,वारे अपने प्राण।
*शीतलता
शीतलता तन-मन बसे,सुखद लगे संसार।
माटी घट में नीर ज्यों,बनता जीवन सार।
*लीला
लीलाधर लीला करें,तीनों लोक निहाल।
गोपी बनकर घूमते,कैसा मचा धमाल।
*हुलिया
भोले बाबा चल पड़े,जा पहुँचे ससुराल।
उनका हुलिया देखकर,सभी हुए बेहाल।
*माँ
लाल कभी बिलखे नहीं,रखती माता ध्यान।
संतति का उत्कर्ष हो,करती विष का पान।
माँ की बाँहें स्वर्ग हैं,सुख का हैं भंडार।
कष्ट कभी छूता नहीं,यम भी माने हार।
*वीर
वीर कभी थकते नहीं,भरते हैं हुंकार।
कैसा भी रणक्षेत्र हो, नहीं मानते हार।
*वीरता
बिना वीरता के क्षमा, नहीं शोभती मित्र।
डटकर करना सामना,परिस्थिति हो विचित्र।
*अनुराग
सुरभित मंद पवन बही,छलक उठा अनुराग।
आया भँवरा झूम के,कलियाँ खिलती बाग।
*शाश्वत
धरती अंबर का मिलन,सुंदर शाश्वत सत्य।
प्रेम चराचर जगत का,कारण बनता नित्य।
अभिलाषा चौहान'सुज्ञ'
स्वरचित मौलिक