पावस*
पावस बूंँदों से हुई,शीतल धरती आज।
चंचल चपला दामिनी,मेघों का है राज।
*मानसून*
मानसून ने कर दिया,जग जीवन खुशहाल।
कृषक खेत में झूमता,बदला उसका काल।
*वारिद*
नभ में वारिद छा गए,देख नाचते मोर।
विरहिन के नयना झरे,देख घटा घनघोर।
*पछुआ*
पछुआ ले बादल उड़ी,देख टूटती आस।
हलधर बैठा खेत में,होता बड़ा निराश।
*कृषक*
ऋण के बढ़ते भार से,कृषक गंवाता जान।
देखी उनकी दुर्दशा,हुआ बड़ा हैरान।
*हरीतिमा*
बिखरी हुई हरीतिमा,देख हुआ आनंद।
शीतल आँखें हो गई,पलकें कर ली बंद।
*दामिनी*
चंचल चपला दामिनी,करे भयंकर शोर।
विरहिन काँपी जोर से,भीगे नयना कोर।
*चातक*
चातक प्यासा ही रहे,देखे वारिद ओर।
स्वाति बूंद को ढूंढता,करता रहता शोर।
*दादुर*
दादुर बोले जोर से,देख घटा घनघोर।
रिमझिम वर्षा हो रही,वन में नाचे मोर।
*वृक्षारोपण*
वृक्षारोपण सब करो,समझो इसका मोल।
इनके बिन जीवन नहीं,देखो आँखें खोल।
अभिलाषा चौहान'सुज्ञ'
स्वरचित मौलिक